हॉस्पिटल, रेस्ट्रॉन्ट की नौकरी छोड़कर डिलिवरी बॉय बनने का ट्रेंड
|हर दिन 3 से 4 घंटा काम करने वाले रवि को स्टार्टअप में मंथली 18,000 रुपये मिलते हैं। 33 साल के रवि ने कहा, ‘मुझे बताया गया था कि दो तरह के काम में अच्छा पैसा है। एक टैक्सी ड्राइवर और दूसरी डिलिवरी बॉय।’ अस्पताल में उन्हें हर दिन 12 घंटे तक काम करना पड़ता था। इसके बावजूद उन्हें सिर्फ 15,000 रुपये ही मिलते थे। रवि की तरह ऐसे कई लोग हैं, जो हेल्थकेयर इंडस्ट्रीज और आईटी इनेबल्ड सर्विसेज सेक्टर छोड़कर अच्छी सैलरी के लिए डिलिवरी बॉय या रोड रनर्स के तौर पर तेजी से उभरते ऑनलाइन मार्केटप्लेस या थर्ड पार्टी लॉजिस्टिक्स कंपनियों के साथ जुड़ रहे हैं। ऐसे में ऑफलाइन सेक्टर्स से टैलंट इस नई इंडस्ट्री में तेजी से आ रहा है।
इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स के मुताबिक, टेलिकॉम, हेल्थकेयर और कन्जयूमर कंपनियों में लोअर लेवल के कर्मचारी नौकरी छोड़ रहे हैं। वहीं, रिटेल, क्विक सर्विस रेस्ट्रॉन्ट्स और रेस्ट्रॉन्ट्स के डिलिवरी स्टाफ के नौकरी छोड़ने की दर 20 फीसदी से 40 फीसदी तक है। एक टॉप क्विक सर्विस रेस्ट्रॉन्ट चेन के एक अधिकारी ने कहा, ‘रेस्ट्रॉन्ट्स पर काफी दबाव है, क्योंकि हम लोग ऐसे स्टाफ को ट्रेनिंग देने पर काफी खर्च करते हैं। वहीं, ई-कॉमर्स कंपनियां ज्यादा सैलरी देकर इन्हें छीन रही हैं।’ नाम जाहिर न करने की शर्त पर उन्होंने बताया, ‘ट्रेनिंग और इन्हें साथ जोड़े रखने का खर्च ज्यादा है। पीपल सेंट्रिक प्रैक्टिस के बावजूद डिलिवरी बॉयज नौकरी छोड़ रहे हैं, जिससे हम पर काफी दबाव है।’
एक लीडिंग प्राइवेट हॉस्पिटल चेन के एक एग्जिक्युटिव ने भी ऐसी ही बात कही। उन्होंने बताया, ‘अब अटेंडेंट खोजने में मुश्किल हो रही है। लोग 3-6 महीने तक ही रुकते हैं। हम उनमें काफी इन्वेस्टमेंट करते हैं और वे कुछ महीने के बाद नौकरी छोड़कर चले जाते हैं।’ केस कॉर्प के चेयरमैन और एमडी अजीत आइजैक ने कहा कि उन्हें आने वाले साल में अट्रिशन रेट और बढ़ने का डर है क्योंकि अभी ई-कॉमर्स इंडस्ट्री डिवेलपमेंट फेज से गुजर रही है। केस कॉर्प, थॉमस कुक इंडिया की इंटिग्रेटेड बिजनस सर्विस प्रोवाइडर कंपनी है। दरअसल, ऑनलाइन मार्केटप्लेस और थर्ड पार्टी लॉजिस्टिक्स कंपनियों ने डिलिवरी बॉय की सैलरी डबल करके औसतन 12,000 रुपये कर दी है। इसमें इंसेंटिव शामिल नहीं है। सैकड़ों स्टूडेंट्स भी पार्ट-टाइम जॉब के तौर पर रोड रनर्स के तौर पर काम करते हैं। वर्किंग टाइम फ्लेक्सिबिलिटी और इंसेंटिव के कारण स्टूडेंट्स यह काम करते हैं।
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