हेल्थ इंश्योरेंस की इन पांच आम परेशानियों से कैसे बचा जा सकता है
|एक हेल्थ इंश्योरेंस कवर का मकसद अच्छे-से-अच्छे अस्पताल में आपके मेडिकल इलाज का खर्च उठाना और आपको आर्थिक परेशानी या तनाव से मुक्त रखना है। लेकिन, व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण थोड़ी-बहुत विपत्ति का सामना करना पड़ सकता है और ऐसी परिस्थितियों का सामना करना बहुत कठिन होता है। इसके अलावा, यदि आप आप विधिवत तरीके से अपना हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम दे रहे हैं और कभी किसी समय आपको अपेक्षित सहायता न मिले तो इससे आपको मानसिक और आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है। इस तरह के संकट के कारणों को पहले से समझकर और समझदारी के साथ अपने हेल्थ इंश्योरेंस की प्लानिंग करके आप इस तरह की परिस्थिति से बच सकते हैं। तो आइए देखते हैं कि आप हेल्थ इंश्योरेंस संकट से कैसे बच सकते हैं…
कैशलेस क्लेम न मिलना
लोग इस उम्मीद में एक हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी ले लेते हैं कि मेडिकल इमरजेंसी में उन्हें पैसा देना नहीं पड़ेगा। यह कुछ हद तक सच भी है, लेकिन कैशलेस सुविधा के साथ कुछ चेतावनियां भी दी गई होती हैं जिनके बारे में व्यक्ति को जान लेना चाहिए। आप सिर्फ तभी कैशलेश हॉस्पिटलाइजेशन बेनिफिट के लिए क्लेम कर सकते हैं, यदि आप नेटवर्क अस्पताल में इलाज करवाते हैं जिसका उल्लेख पॉलिसी डॉक्युमेंट्स लिस्ट में किया गया होता है। इसके अलावा, ऐसी परिस्थितियां भी पैदा हो सकती हैं जब इंश्योरेंस कंपनी, समय पर बीमित व्यक्ति की पहचान करने में सक्षम नहीं हो पाती है। तब अस्पताल उस बीमित व्यक्ति को अपनी जेब से बिल भरने के लिए कह सकता है। इस मामले में, अस्पताल का भारी-भरकम बिल आपके लिए तनाव का कारण बन सकता है।
ऐसी परिस्थितियों से बचने के लिए आपको यह जरूर देख लेना चाहिए कि अस्पताल को कैशलेश फसिलिटी के लिए पॉलिसी डॉक्युमेंट्स में सूचीबद्ध किया गया है या नहीं। ऑथराइजेशन में देरी से बचने के लिए हमेशा इंश्योरेंस कंपनी से प्री-अप्रूवल लेने की सलाह दी जा सकती है। सारी सावधानियां बरतने के बावजूद यदि आप कैशलेश फसिलिटी का लाभ उठाने में असमर्थ होते हैं तो भी इसमें कोई बड़ी चिंता की बात नहीं होनी चाहिए। इंश्योरेंस कंपनी निर्धारित प्रक्रिया को पूरा करने के बाद आपको पैसे वापस कर सकती है। आम तौर पर एक आवेदन करने के 15 से 30 दिन के भीतर पैसे वापस मिल जाते हैं।
प्रीमियम में वृद्धि
आयु सीमा में परिवर्तन के कारण या इंश्योरेंस कंपनी की लागत संरचना में परिवर्तन होने के कारण प्रीमियम में वृद्धि हो सकती है। लम्बे समय तक हेल्थ पॉलिसी को जारी रखने के बाद इंश्योरेंस सहायता बढ़ जाती है, लेकिन प्रीमियम भी कई गुना बढ़ जाता है तो यह संकट का कारण बन सकता है। आम तौर पर, इंश्योरेंस रेग्युलेटर, इंश्योरेंस कंपनियों को इंश्योरेंस प्रीमियम को बहुत ज्यादा बढ़ाने से रोकता है। लेकिन, एक मामूली सी वृद्धि भी बीमित व्यक्ति पर एक बोझ बन सकती है। ऐसी स्थिति में आप पोर्टिंग विकल्प का इस्तेमाल कर सकते हैं और पॉलिसी को किसी अन्य इंश्योरेंस कंपनी में स्विच कर सकते हैं जो इसी तरह का कवरेज देता हो और कम प्रीमियम लेता हो। आम तौर पर सभी फायदे, जैसे नो क्लेम बोनस, पहले से मौजूद बीमा का कवरेज पाने के लिए बीता हुआ समय इत्यादि सुविधाएं स्विच की गई पॉलिसी के साथ जारी रहती हैं।
नियम एवं शर्तों में परिवर्तन
कभी-कभी हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां अपने पॉलिसी डॉक्युमेंट में नियमों एवं शर्तों में परिवर्तन कर देती हैं। यह अपनी सूची में किसी विशेष रोग को शामिल भी कर सकती है या उसे निकाल भी सकती है या नेटवर्क सूची में से किसी अस्पताल को शामिल भी कर सकती है या उसे हटा भी सकती है। यदि आपको नियमों एवं शर्तों में हुए परिवर्तन को स्वीकार करने में कठिनाई हो रही है तो आप पोर्टिंग विकल्प का इस्तेमाल करके इंश्योरेंस कंपनी को स्विच कर सकते हैं। कभी-कभी इंश्योरेंस कंपनियां ऐसे-ऐसे रोगों का कवरेज भी देने लगती हैं जो पहले नहीं दी जाती थीं, लेकिन तब प्रीमियम में भी उसी अनुपात से वृद्धि हो सकती है। ऐसी परिस्थिति में आपको एक बार फिर से बाजार में उपलब्ध अन्य पॉलिसियों के साथ अपनी पॉलिसी की तुलना करनी चाहिए और उपलब्ध आंकड़ों और फायदे-नुकसान के आधार पर फैसला लेना चाहिए।
इलनेस क्लॉज की पेचीदगी
पहले से मौजूद बीमारियों को कुछ साल तक कवर नहीं किया जाता है। यदि बीमित व्यक्ति इस क्लॉज को भूल जाता है तो उसे पहले से मौजूद बीमारियों के इलाज का सारा खर्च अपनी जेब से भरना पड़ सकता है। इसलिए हेल्थ पॉलिसी खरीदते समय पहले से मौजूद बीमारियों का साफ-साफ उल्लेख करना जरूरी है। यदि आप 45 साल की उम्र के बाद हेल्थ पॉलिसी खरीद रहे हैं तो भविष्य में क्लेम सेटलमेंट में विवाद से बचने के लिए आवेदन के साथ हेल्थ स्क्रीनिंग रिपोर्ट अटैच करना बेहतर होता है।
एक्सक्लूजन लिस्ट
अलग-अलग इंश्योरेंस कंपनी की एक्सक्लूजन लिस्ट अलग-अलग हो सकती है। यदि आपने पोर्टिंग विकल्प के माध्यम से एक कंपनी से किसी दूसरी कंपनी में इंश्योरेंस पॉलिसी को स्विच किया है तो आपकी एक्सक्लूजन लिस्ट भी बदल सकती है। मान लीजिए, आपकी पिछली इंश्योरेंस कंपनी 2 साल की प्रतीक्षा अवधि के बाद दांत की समस्या के इलाज के खर्च को कवर कर सकती है, लेकिन पोर्टिंग के बाद नई इंश्योरेंस कंपनी दांत के इलाज को बिल्कुल भी कवर नहीं कर सकती है। इसलिए पॉलिसी को पोर्ट करने से पहले अपवर्जन सूची को जरूर देख लेना चाहिए और अपनी मौजूदा पॉलिसी को रीन्यू करने से पहले उसकी अपवर्जन सूची को भी जरूर देख लेना चाहिए। इस तरह, हेल्थ पॉलिसी खरीदने से पहले उचित सावधानी बरतने से आपको संकट की संभावना को कम करने में मदद मिल सकती है।
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