हमें अपने ड्रैग फ्लिक डिस्पेशन पर और मेहनत की जरूरत है: सिरिलो

बेंगलुरु
कॉमनवेल्थ खेलों के पिछले दो संस्करणों में भारतीय हॉकी टीम अगर गोल्ड से चूकी, तो ऑस्ट्रेलिया के दिग्गज ड्रैग-फ्लिक क्रिस सिरिलो दीवार बनकर खड़े रहे। लेकिन इस बार बात कुछ अलग होगी और क्रिस अब ऑस्ट्रेलिया के लिए नहीं बल्कि टीम इंडिया के लिए अपना अनुभव झोकेंगे। हाल ही में हॉकी से संन्यास ले चुके डिफेंडर क्रिस टीम इंडिया के विश्लेषक कोच हैं और वे गोल्ड कोस्ट में होने वाले कॉमनवेल्थ खेलों में भारतीय टीम को सफलता के सूत्र सिखाएंगे।

33 वर्षीय क्रिस भारतीय पुरुष सीनियर टीम में कोई जादुई सफलता की उम्मीद न करके टीम की छोटी-बड़ी खामियों को सुधारने की योजना पर काम कर रहे हैं। क्रिस सीनियर खिलाड़ियों की खामियां उजागर कर उन्हें दूर करने और खिलाड़ियों का आत्मविश्वास जगाने के साथ-साथ उनकी स्किल्स को बढ़ाने की नीति पर काम कर रहे हैं, ताकि जूनियर खिलाड़ियों के लिए उत्कृष्ट मानक तय हो सकें।

टीम इंडिया की मौजूदा ड्रैग फ्लिक बैटरी, जिसमें रुपिंदर पाल सिंह, हरमनप्रीत सिंह, वरुण कुमार और अमित रोहिदास के साथ-साथ मनप्रीत सिंह, कोठजीत सिंह और चिंगलेनसाना सिंह को क्रिस के अनुभव का लाभ मिलेगा।

सिरिलो का अनुबंध टीम इंडिया के साथ ओलिंपिक 2020 तक है। इस मौके पर उन्होंने कॉमनवेल्थ खेलों को लेकर भारतीय टीम की तैयारियों और ड्रैग फ्लिक की कला पर बात की। यहां प्रस्तुत हैं उनसे बातचीत के खास अंश…

ड्रैग फ्लिक को सही से अंजाम देने के लिए…
यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप एक सही रूटीन, स्थिरता और दबाव में खेलने की क्षमता रखते हों। यह तब आसान होता है, जब आपकी टीम के पास 1 या 2 गोल की लीड हो, लेकिन जब आप एक गोल से पीछे हों और खेल समाप्ति से सिर्फ 5 मिनट दूर हो, तो आपको अपनी एक्जीक्यूशन पर विश्वास लाना जरूरी होता है। यह सिर्फ ड्रैग फ्लिकर्स के लिए ही जरूरी नहीं है। बॉल निश्चिततौर इतनी सही दिशा में जानी चाहिए, जैसे सुई में धागा पिरोया जाता है। फ्लिकर्स का ट्रैप 100 फीसदी क्लीन होना चाहिए। इसके अलावा हम खिलाड़ियों की वेरिएशन और मूवमेंट पर भी काम कर रहे हैं।

अगर भारतीय ड्रैग फ्लिकर्स का मूल्यांकन करें, तो…
हर खिलाड़ी हमेशा ही इंप्रूवमेंट की गुंजाइश होती है। बॉबी (रुपिंदर पाल सिंह) और हरमनप्रीत के पास अच्छी स्पीड है। हम कुछ और डिस्पेशन पर भी काम कर रहे हैं। फ्लिकिंग के दौरान हम कुछ अलग-अलग टारगेट सेट करते हैं, जहां उन्हें गेंद अपने टारगेट पर पहुंचानी होती है। इससे उन्हें दबाव में बेहतर करने का कॉन्फिडेंस मिलेगा, जब वह बड़े टूर्नमेंट में उतरेंगे तो उनका फोकस बॉल पर रहेगा।

गोलकीपर को समझने का क्या महत्व है…
यही वो जगह है, जहां ड्रैग फ्लिकर्स अपना सारा काम करते हैं। वर्ल्ड कप से पहले मुझे याद है। मैं मैच से 4 घंटे तक कंप्यूटर के सामने बैठा था। मैं तब यह देख रहा था कि डिफेंडर्स कहां भाग रहे हैं और गोलकीपर कहां खड़ा हो रहा है। मैच से पहले सभी हार्डवर्क करते हैं और हमारे पास किलर बैटरी है।

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