सोनचिरैया में को-एक्टर रहे दिवाकर ने खोला राज, कहा- लकड़ी के ताबूत में सुशांत अपने अवॉर्ड रखते थे ताकि शोहरत दिमाग पर हावी न हो
|सुशांत सिंह राजपूत की मौत की वजह दो महीने बाद भी साफ नहीं हो पाई है। आए दिन नए दावे और नए राज खुल रहे हैं। इस बीच, फिल्म सोन चिरैया में काम करने वाले राम नरेश दिवाकर ने बताया कि सुशांत सिंह राजपूत का किरदार असल जिंदगी में कैसा था। दिवाकर ने कहा कि सुशांत अपने घर में एक लकड़ी का ताबूत रखते थे। इस ताबूत में उनके अवॉर्ड रहते थे।
एक दिन दिवाकर ने सुशांत से पूछा कि अवॉर्ड इस ताबूत में क्यों रखते हो तो सुशांत ने जवाब दिया कि इसलिए ताकि शोहरत दिमाग पर हावी ना हो।
दिवाकर ने यह बात इंस्टाग्राम पर साझा की
दिवाकर ने लिखा- आज दो महीने हो गए हैं सुशांत। मैं आपको बहुत मिस करता हूं मेरे भाई। मुझे बहुत अच्छे से बोलना नहीं आता, मेरे शब्द भी इधर-उधर हो जाते हैं। थोड़ा अटक जाता हूं। लेकिन फिर कोशिश करता हूं सबको तुझसे जुड़े छोटे-बड़े एक्सपीरियंस बताऊं। मैं उम्मीद करता हूं कि आप मेरे शब्दों से ज्यादा भावनाओं को समझोगे। उसकी क्रब वाले डब्बे की बात मुझे छू गई थी। मैंने आज तक किसी को ऐसा करते नहीं देखा है। मैं उम्मीद करता हूं उसके इस किस्से को सुनकर हम सब बहुत कुछ अच्छा सीखेंगे और जीवन को एक अलग नजरिए से देखेंगे। मिस यू सुशांत।
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रान नरेश दिवाकर ने बताईं ये बातें भीं
दिवाकर ने कहा- आज मैं बहुत ही इंट्रेस्टिंग बात आप सबसे शेयर करने जा रहा हूं। आप लोगों को ये बात निश्चित तौर पर नहीं पता होगी। आपने देखा होगा कि स्टार्स के अवॉर्ड के लिए अलग रूम होता है, गैलरी होती है, म्यूजियम बनाते हैं, कोई जगह रहती है। मैं जब सुशांत के घर गया तो उसके घर में कब्र की शेप का एक वुडन बॉक्स था, जिसमें वो अपने सारे अवॉर्ड डालता था। मैंने पूछा तो सुशांत ने बताया कि ऐसा इसलिए करता हूं ताकि शोहरत कभी उसके सिर पर ना चढ़े इसलिए सारे अवॉर्ड इस कब्र में डाल देता हूं।
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"लूडो खेलना सुशांत को पसंद था, सुबह-सुबह फोन करके बुला लिया था'
दिवाकर ने आगे कहा- सुशांत की यह बात मेरे लिए काफी सीखने वाली थी कि अंत में इंसान के साथ केवल उसके अच्छे कर्म ही जाते हैं। दौलत-शोहरत बस टेम्परेरी है। उसके अच्छे कर्म ही हैं, वरना मरते तो बहुत लोग हैं दुनिया में। एक दिन की बात बताता हूं कि सुबह सुशांत का फोन आया कि आधा घंटा है तो आओ घर पर। मैं उसके घर पहुंचा। उसने पूछा कि क्या लोगे चाय-पानी। मैंने कहा कि तुम ये बताओ कि किसलिए आधे घंटे में बुलाया? उसने कहा कि हां लूडो खेलेंगे। मैंने पूछा कि भाई तुम ठीक हो? सुबह-सुबह लूडो खेलने के लिए कौन बुलाता है। इस पर सुशांत ने कहा कि इतनी टेंशन काहे लेते हैं भैया। लूडो खेेलेंगे, जिंदगी है, मजे लो। लूडो खेलने का बहुत शौक था उसे।
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"जो सुशांत का फैन नहीं भी था, वो आज उसका फैन हो गया है'
उन्होंने बताया कि हमारे साथी हैं अंकुर त्रिपाठी। उनसे बात हुई तो वो उदास थे। उनके पास एक हुडी थी, जिस पर नासा लिखा हुआ था। एक बार सुशांत ने उनसे पूछा था कि आपने ये कहां से ली और क्या ये आप मुझे गिफ्ट करोगे। ये दिखाता है कि सुशांत के पास कोई अहम नहीं था, कोई स्टारडम नहीं था। वो सामान्य इंसान था। जो उसके फैंस नहीं भी थे, वो आज उसके फैन हो गए हैं। ऐसा लग रहा है, जैसे परिवार का भाई और दोस्त चला गया। ऐसा लग रहा है, जैसे वो कोई जादू सा करके चला गया हो।