साउथ कोरिया ने पादरी, धर्मगुरुओं पर भी टैक्स लगाया

सीओल

अक्सर साधू, संत, संन्यासी बनने के बाद लोग भौतिक दुनिया से मुक्त होने की बात करने लगते हैं। लेकिन साउथ कोरिया में ऐसा नहीं है। साउथ कोरिया ने अपने देश के पादरी और धर्मगुरुओं को भी टैक्सपेयर की श्रेणी में ला खड़ा किया है। 40 सालों से चल रहे डिबेट को खत्म करते हुए साउथ कोरिया की संसद ने उस बिल को पास कर ही दिया जिससे देश के सर्वाधिक प्रभावशाली धर्मगुरुओं को भी टैक्स अदा करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। बुधवार को संसद में ये बिल 195 वोट से पास हो गया।

साउथ कोरिया की संसद के लिए इस बिल को पास करना इतना आसान नहीं रहा। वर्षों से कोशिश की जा रही थी कि पादरियों, प्रभावशाली धर्मगुरुओं को नैशनल टैक्स फोल्ड में शामिल किया जाए। लेकिन पादिरयों के उग्र विरोध और राजनीतिक कमजोरी की वजह से सरकार इस बिल को पास नहीं करा पा रही थी। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए नए बिल को भी एक निश्चित टाइम फ्रेम में लागू किया जाएगा। ये बिल 2018 की शुरुआत से प्रभाव में आएगा।

साउथ कोरिया की रूलिंग सायनूरी पार्टी के सदस्य कांग सिओग-हू ने कहा कि बीच के समय का इस्तेमाल धार्मिक समूहों से बातचीत के लिए किया जाएगा। ताकि इस नीति को बिना किसी समस्या के लागू कराया जा सके। साउथ कोरिया में तकरीबन 3 लाख 60 हजार धर्माचार्य हैं। अब इनकी इनकम को ‘रिलिजस इनकम’ के तौर पर पुनर्परिभाषित किया जाएगा। फिलहाल इसे ऑनरेरीअम (honorarium) माना जाता है। टैक्स की जो नई नीति बनाई गई है उसके तहत जिनकी कमाई एक साल में 40 मिलियन वॉन (34 हजार 500 डॉलर) या इससे कम है, उनकी केवल 20 फीसदी इनकम पर ही टैक्स लगेगा। अपर इंड पर जिनकी कमाई 150 मिलियन वॉन से ज्यादा है उनकी 80 फीसदी कमाई टैक्स के दायरे में होगी।

पब्लिक ओपीनियन भी काफी लंबे समय से धार्मिक समूहों को टैक्स के दायरे में लाने की मांग करती रही है। कोरियन क्रिस्चन अलायंस के महासचिव किम आई-ही ने कहा, ‘ऐसे धर्मगुरु जो अपने मंथली इनकम के अतिरिक्त गिफ्ट और दूसरी सुविधाएं हासिल करते हुए भी टैक्स नहीं दे रहे उन्हें समाज में अपनी ड्यूटी नहीं पूरा करने वालों में से समझा जाना चाहिए।’

2005 में हुई साउथ कोरिया की जनगणना के मुताबिक 30 फीसदी आबादी क्रिस्चन और 23 फीसदी बौद्ध की है। साउथ कोरिया में कैथोलिक पादरी 1990 के दशक के मध्य से ही स्वतः टैक्स का भुगतान करते चले आ रहे हैं। ये ग्रुप टैक्स की नई नीति का विरोध करने वाले ग्रुप्स में सर्वाधिक मुखर है और इनकी राजनीतिक ताकत भी अच्छी खासी है। साउथ कोरिया में कुछ इंडिविजुअल प्रोटेस्टेंट चर्च के पास अकूत संपत्ति है। इनके पादरियों में चर्च और इसके बिजनेस को अपने बच्चों में हस्तांतरित करने की परंपरा रही है।

पिछले साल सीओल के योइदो फुल गॉस्पल चर्च के पादरी को मिलियन डॉलर की संपत्ति के गबन के आरोप में निलंबन सहित 3 साल के जेल की सजा भी मिल चुकी है। लेकिन धार्मिक समूहों पर टैक्स लागू करने के विरोधी इस मामले का सिद्धांतों के आधार पर विरोध कर रहे हैं। कोरिया के कंजरवेटिव प्रोटेस्टेंट ग्रुप के कमीशन ऑफ चर्च का कहना है कि धार्मिक कार्यों में शामिल लोगों पर टैक्स लगाने से धार्मिक गतिविधियां और व्यवसायिक गतिविधियां दोनों ही बराबर हो जाएंगी। कमीशन के प्रवक्ता चोई क्वी-सू इस संबंध में एक और तर्क देते हैं। उनका कहना है कि दूसरे धर्मगुरुओं और कैथोलिक पादरियों की तुलना में प्रोटेस्टेंट पादरी सामान्यतया शादी नहीं करते और उनका परिवार भी नहीं होता। उनका मानना है कि टैक्स की बात करते वक्त इसपर भी ध्यान देना चाहिए।

साउथ कोरिया में धार्मिक गुरुओं को टैक्स के दायरे में लाने के लिए वर्षों से कोशिश की जा रही है। 1968 में नैशनल टैक्स सर्विस के पहले हेड ली नाक-इयॉन ने तर्क दिया था कि धार्मिक गतिविधियों में शामिल लोगों को बेसिक सिविक ड्यूटी से मुक्त नहीं रखना चाहिए। यानी उन्होंने सबको टैक्स के दायरे में लाने की बात कही थी। ली के इस तर्क को कई बार प्रभावी बनाने की कोशिश हुई। हाल के दौर में यानी 2013 में सरकार ने विधिक तौर पर टैक्स को प्रभावी करने के लिए कदम उठाया। लेकिन ताकत धार्मिक लोगों के विरोध की वजह से सरकार ऐसा नहीं कर पाई।

अगले साल अप्रैल में साउथ कोरिया में संसदीय चुनाव होने हैं। 2017 के अंत में प्रेजिडेंशियल वोटिंग भी होनी है। समीक्षकों का मानना है कि नई टैक्स नीति के लिए 2 साल का समय इन्हीं चुनावों को ध्यान में रखकर दिया जा रहा है। प्रोटेस्टेंट चर्च कुछ क्षेत्रों में अच्छा खासा राजनीतिक हस्तक्षेप रखता है। ऐसे में कंजरवेटिव पार्टी सायनूरी को डर है कि विरोध की स्थिति में उसे सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। वहीं टैक्स के समर्थकों का मानना है कि 2018 में ऐसी स्थिति बन सकती है कि राजनीतिक बदलाव देखने को मिलें। ऐसे में नई नीति को प्रभावी करने में देर हो सकती है।

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