लैंड बिल पर रुख बदल सकती है सरकार
| भूमि अधिग्रहण बिल, 2015 पर संसद की संयुक्त समिति के चर्चा करने से पहले मोदी सरकार के एक सीनियर कैबिनेट मंत्री ने इस विधेयक के विवादित संशोधनों का विरोध कर रही कांग्रेस और किसान संगठनों के सामने सुलह का पासा फेंका है। कांग्रेस के संयुक्त समिति का बहिष्कार करने के संकेतों के बीच कानून एवं न्याय मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने कहा कि इस बात की ‘काफी संभावना’ है कि यूपीए ने 2013 में जो कानून पास किया था, उसका एक प्रावधान सरकार स्वीकार कर ले। उस प्रावधान में कहा गया था कि अगर जमीन का पांच वर्षों में उपयोग न किया जाए तो वह किसानों को लौटा दी जाएगी। गौड़ा ने कहा, ‘एटॉमिक प्लांट जैसे कुछ मामलों में प्रोजेक्ट पूरा होने में ही 10 साल लग जाते हैं, तो ऐसे मामलों में यह प्रावधान नहीं लगाया जा सकता, लेकिन दूसरे मामलों में इसे लागू किया जा सकता है।’ राम मंदिर, अनुच्छेद 370 और यूनिफॉर्म सिविल कोड के बीजेपी के प्रिय एजेंडे पर गौड़ा ने कहा कि इन मुद्दों को भुलाया नहीं गया है। गौड़ा ने कहा, ‘हमें कोई जल्दी नहीं है। शीर्ष प्राथमिकता पर विकास है। हालांकि हमें राम मंदिर निर्माण और संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म करने पर भी ध्यान देना चाहिए। ये वादे हमने 2014 के इलेक्शन मैनिफेस्टो में किए थे।’ लैंड बिल पर गौड़ा की टिप्पणी इस बात का पहला साफ संकेत है कि मोदी सरकार अपना रुख बदल सकती है। गौड़ा ने कहा, ‘यह ईगो का मुद्दा नहीं है। संसदीय समिति जो सुझाव देगी, उसका हम सम्मान करेंगे।’ गौड़ा ने कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों से अनुरोध किया कि वे संयुक्त समिति में शामिल हों और हर मुद्दे पर चर्चा करें। उन्होंने कहा, ‘बीजेपी ने भी यूपीए के बिल का समर्थन किया था, लेकिन उसके बाद कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों सहित कई सीएम ने केंद्र से कहा था कि यह कानून लागू करने में दिक्कत है। कांग्रेस ने बदलाव नहीं किए तो अब हम कर रहे हैं।’ गौड़ा ने कहा कि किसी प्रोजेक्ट के लिए जमीन लेने पर रोजी-रोटी के लिए उस भूमि पर निर्भर लोगों की जिंदगी पर पड़ने वाले असर के आकलन के प्रावधान से प्रोजेक्ट्स में कम से कम एक साल की देर होती। यूपीए शासन के कानून में इसका प्रावधान था, लेकिन मोदी सरकार के बिल में इसे कई तरह के अधिग्रहणों के लिए खत्म कर दिया गया।
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