रिजर्व बैंक के सर्वे के मुताबिक मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों के प्रति बढ़ी निराशा
|भारतीय रिजर्व बैंक के सर्वे के मुताबिक केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से लोग अपनी अपेक्षाएं पूरी होते नहीं देख रहे हैं। सर्वे की मानें तो अच्छे दिन के अपने चुनावी नारे के बावजूद उपभोक्ताओं में मौजूदा आर्थिक स्थिति को लेकर निराशा की स्थिति है और यह बढ़ रही है। आरबीआई की ओर से मई 2018 में कराए गए कन्जयूमर कॉन्फिडेंस सर्वे के मुताबिक नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने थे, उस वक्त के मुकाबले इन दिनों उपभोक्ताओं में निराशा की स्थिति पैदा हुई है।
हालिया सर्वे की जून 2014 में कराए गए सर्वे से तुलना की जाए तो इकॉनमी को लेकर उपभोक्ताओं का दृष्टिकोण उत्साहजनक नहीं दिखता है। तब पीएम मोदी को देश की सत्ता संभाले एक महीना भी नहीं बीता था। हालिया सर्वे के मुताबिक 48 फीसदी उपभोक्ता यह मानते हैं कि बीते एक साल में देश की आर्थिक परिस्थिति खराब हुई है। हालांकि 31.9 फीसदी उपभोक्ता यह मानने वाले भी हैं कि आर्थिक स्थिति में सुधार आया है।
आर्थिक नीतियों पर सरकार की रेटिंग -16.1
इस तरह से देखें तो मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों को लेकर सरकार की रेटिंग -16.1 है। हालांकि जून में हुए सर्वे का नतीजा -14.4 था, जो आज के मुकाबले कुछ बेहतर था। इन आंकड़ों से पता चलता है कि 2014 के मुकाबले ऐसे लोगों की संख्या बढ़ी है, जो यह मानते हैं कि आर्थिक स्थितियां पहले से ज्यादा खराब हुई हैं।
नौकरियों के मोर्चे पर भी लोगों में बढ़ी है निराशा
यही नहीं नौकरियों के मोर्चे पर भी निराशा की स्थिति बढ़ी है। रोजगार को लेकर अवधारणा और उम्मीदें भी ऐसे ही ट्रेंड की ओर इशारा करती हैं। जून 2014 के सर्वे में 30.8 फीसदी लोग यह मानते थे कि नौकरियों के सृजन को लेकर स्थितियों में सुधार हुआ है, जबकि 30.2 फीसदी मानते थे कि परिस्थितियां बिगड़ी हैं। इस तरह नेट रेस्पॉन्स 0.6 फीसदी था। लेकिन, अब मई 2018 के सर्वे का परिणाम -12.6 है। सर्वे में शामिल 44.1 फीसदी लोगों ने माना कि नौकरियों के सृजन में इजाफा हुआ है, जबकि 44.1 फीसदी लोग मानते हैं कि कोई सुधार नहीं हुआ है।
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