राजनीति के लिए फिल्मों से ब्रेक नहीं लेंगी कंगना रनोट:संसद सत्र के बाद ‘इमरजेंसी’ का प्रोमोशन करेंगी, जल्द कर सकती है अगली फिल्म की भी अनाउंसमेंट
|एक्ट्रेस और सांसद कंगना रनोट ने लोकसभा सदस्य के तौर पर शपथ ले ही है। पुराने इंटरव्यू में कंगना ने कहा था कि अगर वो चुनाव जीतती हैं, तो फिल्म इंडस्ट्री छोड़ देंगी, हालांकि वह आगे फिल्मी पारी भी जारी रखेंगी। उनके करीबियों ने इस पर कन्फर्मेशन दे दी है। उन्होंने कंगना की अपकमिंग रिलीज ‘इमरजेंसी’ से जुड़ी अहम जानकारी दी है। फिल्म तो ‘चंदू चैंपियन’ के साथ ही रिलीज होनी थी पर चुनावी व्यस्तताओं के चलते उस डेट पर फिल्म नहीं आ सकी। हालांकि फिल्म को जल्द ही रिलीज करने की तैयारियां चल रही हैं। राजनीतिक और फिल्मी करियर में बैठाएंगी तालमेल कंगना से जुड़े करीबी सूत्रों ने कहा, ‘एक बार संसद सत्र खत्म हो जाए तो फिल्म रिलीज पर तस्वीर स्पष्ट हो सकेगी। कोशिश तो फिल्म को 25 जून को ही रिलीज करने की थी, क्योंकि उसी डेट को 1975 में इमरजेंसी लगाई गई थी। हालांकि वह डेट भी टल गई। अब ये 6 सितंबर को रिलीज होगी। कंगना राजनीति के मैदान में अपनी पहली पारी के साथ ही फिल्मी जर्नी को भी जारी रखेंगी। अगली फिल्म पर तो बहुत जल्द अनाउंसमेंट आ सकती है। चर्चा है कि कंगना के पास आनंद एल राय की ‘तनु वेड्स मनु 3’ और अलौकिक देसाई की माइथोलॉजिकल ड्रामा ‘सीता- द इनकार्नेशन’ जैसी फिल्में भी हैं। इन पर हाल-फिलहाल में कोई अपडेट सामने नहीं आया है। रिसर्च वर्क और कमर्शियल वैल्यू में सटीक बैलेंस रखा गया है- राइटर जंयत फिल्म इमरजेंसी के एसोसिएट राइटर जयंत सिन्हा बताते हैं, ‘फिल्म में काफी रिसर्च वर्क है, पर इसका मतलब यह नहीं है कि इसकी कमर्शियल वैल्यू को किनारे पर रख दिया गया है। दोनों पहलुओं में सटीक संतुलन साधा गया है। इंदिरा गांधी से जुड़ी कई ऐतिहासिक जरूरी जगहों पर रिसर्च के लिए लोग गए, जैसे इंदिरा गांधी मेमोरियल, फिर लखनऊ विधानसभा की लाइब्रेरी। वहां बुक फॉर्म में तत्कालीन लोकसभा की प्रोसिडिंग रखी हुई हैं। हमने 1975 से 77 तक और फिर जिस पीरियड में इमरजेंसी लगी थी तब तक की लोकसभा में बहस क्या होती थीं, वह सारी रिसर्च वहां से ली है।’ वसंत साठे और अटली जी की बहस खंगाली गई जयंत आगे बताते हैं, ‘उस जमाने के जो दिग्गज लीडर थे, वसंत साठे और अटल बिहारी बाजपेयी। उनकी आपस में क्या बहस होती थीं, वह खंगाली गईं। उसका सार निकालकर हमने फैक्ट्स के साथ मैच किया। लखनऊ विधानसभा के अध्यक्ष रहे हैं ब्रजेश पाठक जी के साथ मेरा पर्सनल कॉन्टैक्ट हुआ था और फिर उन्होने मुझे लखनऊ लाइब्रेरी जाने की इजाजत दी थी, क्योंकि वहां किसी को जाने की इजाजत नहीं है, वो सरकारी लाइब्रेरी है। तो हमने वहां से फैक्ट्स निकाले और डिटेल्स मैच कीं और तब जाकर यह फिल्म बनी है। फिल्म का पहला रिसर्च 500 पन्नों में सिमट पाया जयंत के शब्दों में, ‘पहला ड्राफ्ट 130 पन्नों का था, जिसे हमने कम करके 100 पन्नों के अंदर लाया था, लेकिन बायोपिक जब आप लिखते हो और ऐसी चीजें करते हो, तो उसका फाइनल ड्राफ्ट से कुछ करना नहीं होता है। जैसे 100 पेजेस से आपकी 2 घंटे की फिल्म बनेगी या डेढ़ घंटे की बनेगी, उसमें आपको सभी असल चीजों को देखना पड़ता है। हमारा जो रिसर्च डॉक्यूमेंट था वो 500 पन्नों से ज्यादा का था और उस पर मैने अपनी एक किताब भी लिखी हुई है, ‘डॉटर ऑफ इंडिया’।’ डेढ़ सालों की रिसर्च रही, कई किताबों को पढ़कर निकाला सार बकौल जयंत, ‘रिसर्च में हमें डेढ़ साल का समय लगा। मतलब डेढ़ से दो साल तो प्रॉपर हमारी रिसर्च चली। इंदिरा जी की सबसे पहली बायोग्राफी कैथरीन फ्रैंक ने लिखी थी। बुक का नाम था ‘इंदिरा- द लाइफ ऑफ इंडिया नेहरू गांधी’। वो बहुत मोटी किताब थी। जनरल लैंग्वेज में कहें तो पूरी किताब को पढ़कर उसका निचोड़ निकालना। फिर कूमी कपूर की बुक ‘द इमरजेंसी: ए पर्सनल हिस्ट्री’ पढ़ना, इसके बाद में कुलदीप नायर ने जो बुक ‘इमरजेंसी की इनसाइड स्टोरी’ लिखी थी। फिर खुशवंत सिंह ने जो लिखी थी। वहीं एंटी इमरजेंसी के जो राइटर थे उन्हें भी पढ़ना और जो प्रो इमरजेंसी थीं उन्हें भी पढ़ना था। जर्मन राइटर और पुपुल जयकर का भी पहलू फिल्म में दिखेगा कैथरीन फ्रैंक एक जर्मन राइटर थीं और उन्होंने उस जमाने में बुक लिखी थी। उसके अलावा पुपुल जयकर ने भी बुक लिखी थी, वह इंदिरा जी की निजी सहायक थीं। कहा जाए तो इंदिरा जी की नजदीकी मित्र थीं, उनकी भी एक किताब है। हमारे पास जो ऑफिशियल राइट्स थे वो कूमी कपूर की बुक के थे। इसके अलावा किताबें तो बहुत सारी थीं। फिल्म के डीओपी तेत्सुओ नगाटा थे। यह जापान के हैं, जिन्होंने कंगना की ‘धाकड़’ भी की थी। फिल्म में एक्शन निक पॉवेल का है। वह हॉलीवुड से हैं। फिल्म पर रितेश शाह भी राइटर, पहला ड्राफ्ट उन्होंने लिखा जयंत के मुताबिक ‘इसका पहला ड्राफ्ट रितेश शाह ने लिखा था। जब मैं ‘मणिकर्णिका’ में ऑन बोर्ड था, तब मैं एक एसोसिएट राइटर था। इसमें मेरा स्क्रीनप्ले और डायलॉग भी है। स्टोरी कंगना मैम की है और स्क्रीनप्ले और डायलॉग में रितेश शाह और मैं भी हूं। जयंत दावा करते हैं कि कंगना जी एमपी बन गई हैं तो आलोचकों को लग रहा होगा कि यह एक प्रोपेगेंडा है टारगेट करने के लिए, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। हमारी फिल्म अनाउंस हुई थी 2021 में और उनको टिकट मिला था 2024 में। तो तब तो हमको पता नहीं था। ऐसा सवाल आता है कि क्या यह एंटी इंदिरा फिल्म है या एंटी कांग्रेस फिल्म। तो कोई भी किसी को एंटी दिखाने के लिए अपना करिअर दांव पर नहीं लगा सकता है। कंगना आगे भी फिल्म करेंगी।’