राजकोषीय मजबूती के बजाय वृद्धि दर पर जोर देने से हो सकता है नुकसान: एचएसबीसी
|सरकार के राजकोषीय मजबूती को दांव पर लगाकर आर्थिक वृद्धि दर को प्राथमिकता देने की संभावित पहल का फायदे के बजाय नुकसान हो सकता है। यह बात एचएसबीसी ने कही। एचएसबीसी ने एक रिपोर्ट में कहा कि भारत की संभावना के प्रति ज्यादा उत्साहित नहीं है।
ब्रोकरेज कंपनी ने कहा कि भारतीय शेयर बाजार में हालिया बिकवाली के मद्देनजर उम्मीद और वास्तविकताओं के बीच फर्क है। कंपनी ने कहा कि नीति-निर्माताओं के लिए सबसे अच्छा यह रहेगा कि वे चुनिंदा वृद्धि पहलों के लिए फंड मुहैया कराते हुए राजकोषीय पुनर्गठन के लक्ष्य पर कायम रहें।
रिपोर्ट में कहा गया, ‘हमारा मानना है कि राजकोषीय मजबूती के मुकाबले आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने से फायदे के बजाय नुकसान हो सकता है। इससे बाजार का भरोसा प्रभावित हो सकता है क्योंकि ज्यादा बड़े राजकोषीय घाटे से सरकारी कर्ज बढ़ेगा और बॉन्ड प्रतिफल बढ़ेगा जिससे नीतिगत दरों में कटौती की गुंजाइश कम हो सकती है।’
एचएसबीसी के मुताबिक वित्त मंत्री अरुण जेटली अगले वित्त वर्ष के लिए फिस्कल डेफिसिट के लक्ष्य को 3.8 प्रतिशत रख सकते हैं जबकि इससे पहले इसे 2016-17 में 3.5 प्रतिशत पर लाने का लक्ष्य तय किया गया था। एचएसबीसी इंडिया के मुख्य अर्थशास्त्री प्रांजुल भंडारी ने एक नोट में कहा है, ‘हमारा मानना है कि सरकार पर खर्च का काफी दबाव है। सातवें वेतन आयोग को अमल में लाने से वेतन खर्च बढ़ने से सरकार राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.8 प्रतिशत रखने का लक्ष्य रख सकती है।’ अगले वित्त वर्ष का बजट 29 फरवरी को पेश किया जायेगा।
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