रफाल डीलः सरकार ने इस तरह किया समझौता

मनु पब्बी

पिछले कई सालों से सौदेबाजी के पेंच में फंसे लड़ाकू विमान रफाल के सौदे पर शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के बीच बातचीत के बाद आखिरकार सहमति बन गई। अब भारत सीधे फ्रांस सरकार से ही 36 रफाल विमान खरीदेगा।

मोदी ने फ्रांस की यात्रा पर रवाना होने से पहले ही फ्रांसीसी रक्षा कंपनी डैसल्ट रफाल और हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के बीच पिछले 3 सालों से जारी सौदे से जुड़ी बातचीत को दरकिनार कर सीधे सरकार से विमान सौदे के बारे में बात करने का निर्णय लिया था। यह बातचीत विमानों की कीमत और गारंटी को लेकर अधर में लटकी हुई थी। सूत्रों के अनुसार यह निर्णय इसलिए लिया गया, क्योंकि इन विमानों की सीधी खरीद के लिए फ्रांस की ओर से आकर्षक प्रस्ताव दिया गया था। साथ ही सरकार वायु सेना की रणनीतिक जरूरतों को काफी महत्व और प्राथमिकता दे रही है।

इस डील को लेकर बातचीत 2007 में शुरू हुई थी, उस वक्त ठेका हासिल करने लिए 6 प्रतियोगी मैदान में थे और 2012 में डैसल्ट ने इसमें बाजी मार ली। लेकिन, दो कारणों से यह डील अटकी हुई थी। एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद पहली बार पिछले सप्ताह इस बात के संकेत मिले थे कि यदि नई दिल्ली को कोई बड़ी छूट नहीं देनी पड़ी तो एनडीए सरकार दूरियां कम करने की इच्छुक है।

यूपीए सरकार के शासनकाल के अंतिम साल में इस कॉन्ट्रैक्ट को हासिल करने के लिए डैसल्ट काफी हाथ-पैर मार रहा था लेकिन रक्षा क्षेत्र में खरीदारी में यूपीए सरकार की सुस्ती के कारण डैसल्ट को यह कॉन्ट्रैक्ट नहीं मिला था। दिल्ली में नई सरकार आने के बाद पैरिस की ओर से मजबूत राजनयिक दबाव ने डैसल्ट के लिए कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने का रास्ता खोल दिया। इस ऑर्डर को व्यापक तौर पर लड़ाकू विमानों के लिए दुनिया का सबसे बड़ी खुली निविदा कहा गया है।

हालांकि बीते समय में डील से संबंधित बहुत से मतभेदों का समाधान कर लिया गया था लेकिन 2 बड़ी चीजों को लेकर करीब 2 साल से गतिरोध बना हुआ था। दोनों के लिए इनोवेटिव सलूशन की जरूरत थी। इस दिशा में एनडीए सरकार ने मजबूत इच्छाशक्ति का प्रमाण देते हुए बात आगे बढ़ाई।

इन दोनों शर्तों में क्वॉलिटी की जिम्मेदारी और प्रॉडक्शन में देरी वाली शर्त का हल आसान था। पहले की शर्त के मुताबिक, लड़ाकू विमान की समय पर डिलिवरी और तकनीकी खराबियां फ्रेंच मैन्युफैक्चरर डैसल्ट की जिम्मेदारी थी। लेकिन जैसे ही अंतिम दौर की बातचीत शुरू हुई फ्रेंच कंपनी ने यह बात उठाई कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लि. (जिसे भारत में लड़ाकू विमान तैयार करने के लिए नामित किया गया) द्वारा देर करने के मामले में जुर्माना अनुचित होगा।

दूसरी शर्त कीमत को लेकर थी। पहले की शर्त के मुताबिक डैसल्ट को कॉन्ट्रैक्ट का आधा मूल्य भारत में निवेश करना जरूरी था। इसके अलावा एचएएल को टेक्नॉलजी ट्रांसफर करनी थी। लेकिन, जब इस पर गौर किया गया तो लगा कि इस तरह से सौदा भारत को महंगा पड़ेगा और इस शर्त को हटा दिया गया।

जरूरत इस बात की थी दोनों पक्ष कुछ शर्तों को छोड़ें तभी बात आगे बढ़ सकती है। अब जो पीएम मोदी ने डील की है उससे दोनों पक्षों का फायदा है जहां डैसल्ट को इससे प्रॉफिट होगा वहीं भारतीय वायु सेना को नई विमान मिलने से एक नई ऊर्जा प्राप्त होगी।

इस डील को लेकर एक आलोचना यह है कि इसे भारत में मैन्युफैक्चरिंग और नौकरियों के अवसर नहीं पैदा होंगे। सरकार के पास इसका तर्क यह है कि फ्रेंच कंपनी भारत में कॉन्ट्रैक्ट के मूल्य का 30-50 फीसदी निवेश करेगी और भारत के प्राइवेट सेक्टर डैसल्ट और इसकी सहयोगी कंपनियों को बड़े ग्लोबल चेन सप्लायर के रूप में उभर सकता है। सरकार का यह भी कहना है भारत में बड़ी संख्या में इन विमानों की मैन्युफैक्चरिंग की बात को पूरी तरह से खारिज नहीं किया गया है और इसको लेकर अगले कुछ महीनों तक बातचीत जारी रह सकती है।

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Navbharat Times

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