रखाइन में रोहिंग्याओं पर हुए अत्याचार की जांच करेगी म्यांमार सेना
|म्यांमार की सेना ने कहा है वह बीते महीने छिड़ी हिंसा के बाद से रखाइन राज्य में रोहिंग्या मुस्लिमों पर हुए अत्याचारों की जांच करेगी। संयुक्त राष्ट्र ने म्यांमार की सेना पर रखाइन से रोहिंग्याओं के ‘नस्लीय सफाए’ के मकसद से सुनियोजित अभियान चलाने का आरोप लगाया था, जिसके बाद सेना ने जांच की घोषणा की है। बीते 7 हफ्तों में 5 लाख से ज्यादा रोहिंग्या मुस्लिम रखाइन छोड़ बांग्लादेश भाग गए हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, रखाइन राज्य में सेना और बौद्धों की भीड़ ने बड़ी संख्या में रोहिंग्याओं को मारा, महिलाओं के साथ बलात्कार की वारदातों को अंजाम दिया है। इतना ही नहीं, रोहिंग्या बहुल गांवों को जला दिया गया। रखाइन में बीते 25 अगस्त से हिंसा जारी है। सेना का कहना है कि रोहिंग्या चरमपंथियों ने इसी दिन पुलिस पोस्ट्स को निशाना बनाते हुए हमले किए थे, जिसके बाद सेना ने कार्रवाई शुरू की।
संयुक्त राष्ट्र की हालिया जांच के बाद म्यांमार की सेना पर सुनियोजित तरीके से अल्पसंख्यक समुदाय को देश से बाहर करने और उनके वापसी के सभी द्वार बंद करने का आरोप लगाया था। हालांकि, इस आरोप को सेना ने हमेशा खारिज किया। म्यांमार ने रखाइन राज्य में विदेशी सहायता एजेंसियों की पहुंच पर भी रोक लगा दी है। अब म्यांमार की सेना हिंसाग्रस्त इलाके पर अपनी जांच रिपोर्ट प्रकाशित करने की तैयारी कर रही है।
सेना की न्यूज टीम की ओर से जारी बयान में कहा गया है, ‘इंस्पेक्टर जनरल-लेफ्टिनेंट जनरल आय विन को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है। जांच के दौरान देखा जाएगा कि सैनिकों और सेना की टुकड़ियों को जो काम दिए गए थे, उन्होंने किए या नहीं।’ बयान के मुताबिक, ‘जब पूरी जानकारी इकट्ठी कर ली जाएगी तो इस मामले से जुड़ी प्रेस विज्ञप्ति जारी होगी।’
म्यांमार सेना प्रमुख मिंग ह्लेंग के फेसबुक पेज पर एक पोस्ट के मुताबिक सैनिकों पर बुरे व्यवहार का कोई आरोप नहीं रहेगा। पोस्ट में लिखा गया है, ‘ऐसा पाया गया है कि सेना ने सभी ऐक्शन कानून के अनुरूप लिए। बहुत से गवाहों से पूछताछ की गई। यह भी जांच की गई कि ऐसी वारदातें कैसे हुईं, कितनी मौतें हुईं और क्या ये सभी घटनाएं कानून के अनुरूप नहीं थीं।’ बता दें कि म्यांमार के आर्मी चीफ लगातार इस तरह के पोस्ट फेसबुक पर डालते रहते हैं। उन्होंने एक पोस्ट में रोहिंग्यओं को बंगाली बताया और कहा था कि उन्हें रखाइन में रहने का कोई अधिकार नहीं है। जिसके बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने उन्हें आलोचना झेलनी पड़ी थी।
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