मैराथन रेसर किरन गांधी ने छेड़ी दुनिया भर में पीरियड्स पर बहस

नई दिल्ली

लंदन मैराथन में पीरियड्स के बावजूद बिना पैड के दौड़ने वाली किरन गांधी ने दुनिया भर में इस मामले पर बहस छेड़ दी है। भारतीय मूल की किरन हार्वर्ड बिजनस स्कूल से ग्रैजुएट हैं और पेशे से एक प्रफेशनल ड्रमर हैं।

किरन गांधी का कहना है कि लोग इस मुद्दे यानी पीरियड्स पर मुंह खोल रहे हैं। वह काफी खुश हैं कि इंटरनेट पर दुनिया भर के लोग इस मामले पर बहस कर रहे हैं।

वॉल स्ट्रीट इनवेस्टमेंट बैंकर विक्रम गांधी और सोशल ऐक्टिविस्ट मीरा गांधी के घर जन्मीं किरन का कहना है कि उनकी इस मैराथन दौड़ के बाद उन्हें दुनिया भर से लोगों के खत आ रहे हैं। उन्हें ईरान, भारत, पाकिस्तान और क्रोएशिया आदि देशों से कई लोगों के खत आए हैं।

एक ड्रमर के तौर पर दुनिया घूम चुकीं किरन का मानना है कि अब दुनिया भर में लोग पीरियड्स पर बात करते हैं। इस दौरान औरत के खामोशी से दर्द सहने पर भी बात की जाने लगी है। वह मानती हैं कि उनकी दौड़ से इस मामले पर ऐसी जागरूकता फैली है कि जिसकी उन्हें भी उम्मीद नहीं थी।

उन्होंने बताया, ‘कल ही मेरे पास एक बहादुर महिला का ई-मेल आया। उसने मुझे अपने वॉट्सऐप का स्क्रीनशॉट भेजा था। यह उसके और उसके ट्रेनर की बातचीत थी, जिसमें उसने कहा था कि वह अपने ट्रेनर को कभी नहीं बता पाई थी कि वह हर महीने में कुछ दिन क्यों छुट्टी ले लेती थी। अब उसमें यह बताने की हिम्मत आ गई कि ऐसा वह अपने पीरियड्स के कारण करती थी।’ किरन ने बताया कि अब उस लड़की के ट्रेनर ने ऐसी प्लानिंग की है कि पीरियड्स के दौरान ट्रेनिंग में उसे तकलीफ न हो और उसे छुट्टियां भी न लेनी पड़े।

एक साल से लंदन मैराथन की तैयारी कर रही किरन को मैराथन से ठीक एक दिन पहले पीरियड्स शुरू हो गए थे। किरन का कहना था कि उनके पास दो ऑप्शन थे, या तो वह इसमें हिस्सा न लें या फिर ऐसे ही दौड़ें। उन्होंने दूसरा रास्ता चुना और 41.95 किमी लंबी दौड़ अपने दो करीबी दोस्तों के साथ दौड़ीं और इसे 4 घंटे 49 मिनट में पूरा किया।

किरन का कहना है कि उन्होंने यह नहीं सोचा कि लोग उनके बारे में क्या कहेंगे या वह कैसी दिखेंगी। उन्होंने बस यह सोचा था कि मैराथन में दौड़ना बड़ी चीज है। हालांकि काफी तारीफों के बीच कुछ लोगों ने उनकी आलोचना भी की। कुछ लोगों ने उनके इस कदम को घृणित और अस्वास्थ्यकर बताया। इस पर उनका कहना है कि यह सिर्फ यह बताता है कि लोग एक प्राकृतिक और स्वाभाविक प्रक्रिया से कितने असहज हो जाते हैं। किरन ने इस बात पर काफी खुशी जताई कि उनके परिजनों ने इस फैसले में उनका साथ दिया था।

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