मेक इन इंडिया में ‘रुकावट’ बन रहे सरकारी विभाग, PMO ने लगाई फटकार
|प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने देसी कंपनियों से बहुत ज्यादा भेदभाव करने वाली शर्तें लगाकर ‘मेक इन इंडिया’ प्रोग्राम में बाधा डालने वाले विभागों, मंत्रालयों और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को फटकार लगाई है। ऐसे नियमों पर लार्सन ऐंड टूब्रो और सरकारी कंपनी बीईएमएल जैसी कंपनियों ने ऐतराज जताया था। डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी ऐंड प्रमोशन (DIPP) ने जब यह मुद्दा उठाया तो पीएमओ ने एक लेटर में कहा, ‘यह बहुत विचलित करने वाली बात है कि विभिन्न विभागों ने एक बड़ा संदेश ग्रहण नहीं किया।’ ईटी ने इस लेटर की कॉपी देखी है।
पीएमओ के निर्देश पर डीआईपीपी ने सभी विभागों को एक सख्त संदेश में कहा कि वे ‘यह पक्का करें कि टेंडर की शर्तें पब्लिक प्रोक्योरमेंट ऑर्डर के मुताबिक ही हों। जो भी टेंडर मेक इन इंडिया के मेसेज के मुताबिक न हो, उसकी जांच की जाए।’
ग्रोथ रिवाइव करने के लिए देश में नौकरियों के करोड़ों मौके बनाने होंगे। इसके लिए ही सरकार मेक इन इंडिया के जरिए मैन्युफैक्चरिंग पर जोर लगा रही है। सरकार ने इस पहल के तहत ऑटोमोबाइल्स, टेक्सटाइल्स, कंस्ट्रक्शन और एविएशन सहित 25 फोकस सेक्टर्स चुने हैं ताकि भारत ग्लोबल सप्लाइ चेन का हिस्सा बन जाए। नेशनल मैन्युफैक्चरिंग पॉलिसी में जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग का योगदान अभी के 18 पर्सेंट से बढ़ाकर साल 2025 तक 25 पर्सेंट करने का लक्ष्य रखा गया है।
देसी कंपनियों ने पब्लिक प्रोक्योरमेंट ऑर्डर 2017 को लागू करने के लिए बनी स्टैंडिंग कमेटी की हालिया बैठक में बोली की शर्तों को अनुचित करार दिया था। डीआईपीपी ने यह बात पीएमओ के सामने रखी थी। रेल कोच बनाने वाली बीईएमएल एक शर्त के कारण मुंबई मेट्रो के एक प्रॉजेक्ट के लिए बोली नहीं लगा सकी थी। शर्त यह थी कि बिडर ने पांच वर्षों में 130 कोच बनाए हों। बीईएमएल ने 1200 कोच बनाए हैं, लेकिन यह काम वह तीन साल से ही कर रही है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने ईटी से कहा, ‘ये तो मनमानी शर्तें हैं। इन खास आंकड़ों को संबंधित विभाग ने जस्टिफाई नहीं किया है। ऐसी हरकतें वर्षों से चल रही हैं। पहली बार सरकार ने ये बड़ी समस्याएं दूर करने के लिए तुरंत समीक्षा करने को कहा है।’
एलऐंडटी ने तलचर फर्टिलाइजर्स के लिए इंजिनियरिंग, प्रोक्योरमेंट ऐंड कंस्ट्रक्शन (EPC) कॉन्ट्रैक्ट को फाइनल करने वाले एक टेंडर के संबंध में सवाल उठाया था। इसमें शर्त रखी गई थी कि बिडर के पास पिछले 20 वर्षों में एक अमोनिया और यूरिया फर्टिलाइजर प्रॉजेक्ट लगाने का अनुभव होना चाहिए। हाल यह है कि इस अवधि में भारत में ऐसा कोई नया प्रॉजेक्ट लगा ही नहीं। फर्टिलाइजर डिपार्टमेंट ने स्टैंडिंग कमेटी को बताया कि प्रॉजेक्ट का टेंडर नई शर्तों के साथ दोबारा जारी किया जाएगा।
इसी तरह मेडिकल उपकरणों की खरीद में केंद्र सरकार के नियंत्रण वाले कई अस्पतालों ने टेंडर डॉक्युमेंट्स में अमेरिकी फूड ऐंड ड्रग अथॉरिटी से अप्रूवल को अनिवार्य बना दिया। अधिकारी ने कहा, ‘इसे अनिवार्य बनाना ठीक बात नहीं है।’
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