महबूब खान ने नरगिस से कर्ज लेकर बनाई ‘मदर इंडिया’:हॉलीवुड के फिल्ममेकर्स ने भेजा था इनविटेशन, अंग्रेजी न आने पर उड़ाया था मजाक

‘मदर इंडिया’ जैसी कल्ट फिल्म बनाने वाले प्रोड्यूसर-डायरेक्टर महबूब खान की आज 60वीं डेथ एनिवर्सरी है। यह फिल्म 1940 में महबूब खान के ही डायरेक्शन में बनी ‘औरत’ की रीमेक थी। इस फिल्म का निर्माण करना महबूब खान के लिए किसी चुनौती से कम नहीं था। महबूब खान जब ‘मदर इंडिया’ की स्टारकास्ट फाइनल कर रहे थे तो उनके दिमाग में पहला नाम दिलीप कुमार का था, लेकिन फिल्म की एक्ट्रेस नरगिस ने इस पर आपत्ति जता दी थी। फिल्म का बजट बढ़ गया तो महबूब खान ने नरगिस से कर्ज लेकर शूटिंग पूरी की। इस फिल्म ने ऑस्कर की राह दिखाई, लेकिन मात्र एक वोट से पिछड़ गई। महबूब खान ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे। इसलिए अंग्रेजी में उनका हाथ बहुत तंग था। ‘मदर इंडिया’ के बाद एक बार उन्हें अमेरिका से इनविटेशन आया था कि हॉलीवुड के कुछ बड़े फिल्मकार उनसे मिलना चाहते हैं। अमेरिका जाने के नाम पर उनके हाथ-पांव फूलने लगे। उन्होंने दिलीप कुमार को साथ चलने के लिए कहा। अमेरिका में हॉलीवुड के कुछ बड़े डायरेक्टर्स महबूब खान से मिलने आए। वो महबूब से सवाल पूछते, जवाब दिलीप कुमार देते। थोड़ी देर बाद महबूब खान को लगने लगा कि ये अंग्रेज लोग इन्हें सीरियसली नहीं ले रहे और इनका मजाक बना रहे हैं। वो गुस्सा हो गए और दिलीप कुमार को साथ लेकर फौरन वहां से बाहर निकल गए। इसके बाद उन्होंने तय किया कि हॉलीवुड वालों के साथ कभी काम नहीं करेंगे। 16 साल की उम्र में वे घर से भागकर हीरो बनने मुंबई (बॉम्बे) पहुंच गए 9 सितंबर 1907 को गुजरात के बिलिमोरा में जन्मे महबूब खान का असली नाम रमजान खान था। बचपन से ही महबूब को एक्टर बनने का शौक था, लेकिन पिता इसके सख्त खिलाफ थे। फिल्मों से इतना लगाव था कि 16 साल की उम्र में वे घर से भागकर हीरो बनने मुंबई (बॉम्बे) पहुंच गए। उनके पिता उन्हें मुंबई से वापस बिलिमोरा ले आए और शादी करवा दी ताकि हीरो बनने का सपना छोड़कर घर बसा लें, लेकिन उनकी किस्मत में कुछ और ही लिखा था। मुंबई आने के बाद अस्तबल में घोड़े की नाल ठोकने का काम मिला शादी के बाद के बाद महबूब खान जब दोबारा मुंबई आए तो उन्हें अस्तबल में घोड़े की नाल ठोकने का काम मिला, लेकिन एक्टर बनने का सपना अभी उन्होंने छोड़ा नहीं था। एक दिन घोड़े की नाल ठीक करने महबूब खान साउथ की एक फिल्म की शूटिंग पर गए। वहां पर उन्होंने फिल्म के निर्देशक चंद्रशेखर से एक्टिंग की बात की। चंद्रशेखर ने महबूब को बॉम्बे फिल्म स्टूडियो में छोटा सा काम दे दिया। चंद छोटे-मोटे काम करने के बाद महबूब को साइलेंट फिल्मों के दौर में फिल्में असिस्ट करने का भी मौका मिला। ‘अलीबाबा एंड फोर्टी थीफ्स’ में चालीस चोरों में से एक चोर की भूमिका निभाई जिन दिनों महबूब खान एक्टिंग के लिए स्ट्रगल कर रहे थे, उन दिनों पहली बार फिल्म ‘अलीबाबा एंड फोर्टी थीफ्स’ में चालीस चोरों में से एक चोर की भूमिका निभाई थी। यह फिल्म 1927 में रिलीज हुई थी। ‘आलम आरा’ में हीरो के रोल के लिए चुने गए 1931 में इंडियन सिनेमा की पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ के लिए महबूब खान का सिलेक्शन हीरो के रोल के लिए हुआ था, लेकिन फिल्म के प्रोड्यूसर-डायरेक्टर आर्देशिर ईरानी ने सोचा कि फिल्म की सफलता के लिए किसी नए कलाकार को मौका देने के बजाय किसी स्थापित एक्टर को ही यह भूमिका देना सही रहेगा। उन्होंने महबूब खान की जगह मास्टर विट्ठल को इस फिल्म में काम करने का अवसर दिया। इसके बाद महबूब खान सागर मूवीटोन से जुड़ गए और कई फिल्मों में छोटे- मोटे किरदार निभाए, लेकिन एक्टिंग में सफल नहीं हुए। ‘अल हिलाल’ से बने डायरेक्टर महबूब खान का करियर जब एक्टिंग में नहीं बना तो उन्होंने डायरेक्शन में किस्मत आजमाने की सोची। उन दिनों वो फिल्मों में असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर भी काम कर रहे थे। स्वतंत्र रूप से महबूब खान को डायरेक्शन करने का मौका 1935 में फिल्म ‘अल हिलाल’ (जजमेंट ऑफ अल्लाह) में मिला । यह फिल्म अरब और रोम के बीच युद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित थी, यह फिल्म दर्शकों को खूब पसंद आई। ‘एक ही रास्ता’ से मिली सफलता ‘अल हिलाल’ के बाद महबूब खान ने ‘मनमोहन’, ‘जागीरदार’ जैसी फिल्मों का डायरेक्शन किया, लेकिन ये फिल्में ज्यादा सफल नहीं रहीं। इसके बाद 1939 में महबूब खान ने फिल्म ‘एक ही रास्ता’ का डायरेक्शन किया। यह सामाजिक पृष्ठभूमि पर बनी थी, इस फिल्म को दर्शकों ने खूब पसंद किया। इस फिल्म की सफलता के बाद महबूब खान हिन्दी सिनेमा में बतौर निर्देशक अपनी जगह बनाने में कामयाब हो गए, लेकिन 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण फिल्म इंडस्ट्री को काफी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ा जिसकी वजह से सागर मूवीटोन की आर्थिक स्थिति भी बहुत कमजोर हो गई और उसे स्टूडियो बंद करना पड़ा। ‘महबूब खान प्रोडक्शन लिमिटेड’ की स्थापना की सागर मूवीटोन के बाद महबूब खान ने नेशनल स्टूडियो की 1940 में ‘औरत’, 1941 में ‘बहन’ और 1942 में ‘रोटी’ जैसी बेहतरीन फिल्मों का डायरेक्शन किया, लेकिन इस स्टूडियो में महबूब खान का मन ज्यादा दिन नहीं लगा और उन्होंने अपने खुद के प्रोडक्शन ‘महबूब खान प्रोडक्शन लिमिटेड’ की स्थापना की। अपने प्रोडक्शन के बैनर तले उन्होंने 1943 में नजमा, तकदीर और 1945 में हुमायूं जैसी फिल्मों का निर्माण किया। 1946 में रिलीज फिल्म ‘अनमोल घड़ी’ सुपरहिट फिल्म साबित हुई। 1949 में फिल्म ‘अंदाज’ में दिलीप कुमार, राज कपूर और नर्गिस ने पहली और आखिरी बार एक साथ काम किया था। इसके बाद ‘आन’ और ‘अमर’ जैसी फिल्मों के बाद महबूब ने 1957 में ‘मदर इंडिया’ बनाई और यह फिल्म मील का पत्थर साबित हुई। महबूब खान ने 1954 में महबूब स्टूडियो की स्थापना की। ‘मदर इंडिया’ की शूटिंग यही पर हुई थी। यह स्टूडियो मुंबई के सबसे लोकप्रिय स्टूडियों में से एक है। दिलीप कुमार के साथ नरगिस ने काम करने से मना कर दिया महबूब खान जब ‘मदर इंडिया’ की स्टारकास्ट को फाइनल कर रहे थे तो उनके दिमाग में पहला नाम दिलीप कुमार का था, लेकिन फिल्म की एक्ट्रेस नरगिस ने इस पर आपत्ति जता दी। उनका कहना था कि इतनी फिल्मों में वो दिलीप कुमार की प्रेमिका बन चुकी हैं कि लोग उनकी मां के किरदार में स्वीकार नहीं कर पाएंगे। महबूब खान को यह बात समझ में आ गई और उन्होंने दिलीप कुमार की जगह सुनील दत्त की कास्टिंग की। नरगिस से कर्ज लेकर फिल्म पूरी की फिल्म ‘मदर इंडिया’ का बजट उस समय पहले 25 लाख रुपए था, लेकिन धीरे-धीरे इसका बजट बढ़ने लगा और महबूब खान के पास मौजूद फंड खत्म होने लगा। तब उन्होंने फिल्म पूरी करने के लिए नरगिस से मदद मांगी। नरगिस उस दौरान एक बड़ी एक्ट्रेस बन चुकी थीं और वह उस स्थिति में भी थीं कि महबूब खान की मदद कर सकें। ऑस्कर की राह दिखाने वाली पहली इंडियन फिल्म मदर इंडिया रिलीज के बाद ब्लॉकबस्टर रही। यह फिल्म अपने जमाने की कल्ट फिल्म मानी जाती है। उस समय राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू समेत कई नेताओं के लिए राष्ट्रपति भवन में इस फिल्म का एक विशेष शो रखा गया। इस फिल्म को दो नेशनल अवॉर्ड मिले। भारत की ओर से ऑस्कर अवॉर्ड के लिए भेजी जानी वाली यह पहली फिल्म थी। एक वोट की वजह से नहीं मिला ऑस्कर अवॉर्ड ऑस्कर अवॉर्ड में फिल्म ‘मदर इंडिया’ मात्र एक वोट से पिछड़ गई थी। ऑस्कर में इसकी कांटे की टक्कर हॉलीवुड मूवी ‘नाइट्स ऑफ कैबिरिया’ से थी जो विजेता रही। दरअसल, चयनकर्ता को किसी ने यह स्पष्ट नहीं किया कि भारतीय नारी अपने सिंदूर के प्रति कितनी अधिक समर्पित होती है। फिल्म भारत के सदियों पुराने आदर्श के प्रति समर्पित थी। ऑस्कर जीतने के लिए फिल्म की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को स्पष्ट करने के लिए वहां एक प्रचार विभाग नियुक्त किया जाना चाहिए था, लेकिन सरकार और फिल्म इंडस्ट्री को यह जानकारी ही नहीं थी कि अन्य देश अपनी फिल्म की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को स्पष्ट करने के लिए कितना परिश्रम करते हैं। आखिरी फिल्म सफल नहीं रही मदर इंडिया की बेहतरीन कामयाबी के बाद महबूब खान ने 1962 में सन ऑफ इंडिया बनाई। इस फिल्म में महबूब खान के बेटे साजिद खान, कमलजीत, सिमी गरेवाल की लीड भूमिका थी। यह फिल्म सबसे बड़ी फ्लॉप साबित हुई। इस फिल्म के बाद महबूब अपनी अगली फिल्म की तैयारी कर रहे थे, लेकिन 28 मई 1964 को हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई।

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