‘भूतनाथ’ में शाहरुख के कॉस्ट्यूम पर खर्च हुए सिर्फ ₹40,000:घर में सीन की रिहर्सल करते हैं अमिताभ; अजय देवगन डायरेक्टर्स को ईगो नहीं दिखाते
|फिल्म को हिट कराने में जितना रोल एक्टर का होता है, उससे कहीं ज्यादा रोल एक डायरेक्टर का होता है। डायरेक्टर को पर्दे के पीछे का हीरो कहा जाता है। एक अच्छा डायरेक्टर खराब फिल्म को भी बेहतर ढंग से दिखा सकता है, जबकि एक साधारण डायरेक्टर अच्छी फिल्म को भी खराब कर सकता है। रील टू रियल के नए एपिसोड में हम डायरेक्टर्स की वर्किंग स्टाइल और प्रोसेस को समझेंगे। इसके लिए हमने अजय देवगन की अपकमिंग फिल्म मैदान के डायरेक्टर अमित शर्मा और 2008 की फिल्म भूतनाथ के डायरेक्टर विवेक शर्मा से बात की। विवेक ने कहा कि आज के वक्त में कॉस्ट्यूम डिजाइनर भर-भर कर पैसे लेते हैं, जबकि भूतनाथ के वक्त शाहरुख खान के कपड़ों का बजट सिर्फ 40 हजार रुपए आया था। उन्होंने कहा कि अमिताभ बच्चन किसी सीन की शूटिंग से दो दिन पहले घर पर रिहर्सल करते हैं। अमित शर्मा ने कहा कि वो पहले खुद एक्ट करते हैं और फिर एक्टर्स को करने के लिए बोलते हैं। अमित ने कहा कि बड़े स्टार होने के बावजूद अजय देवगन कभी डायरेक्टर्स की बात नहीं काटते। उनमें ईगो नहीं है, वो डायरेक्टर्स की बात सुनना पसंद करते हैं। अमिताभ बच्चन शूटिंग से पहले घर पर करते हैं रिहर्सल अगर एक्टर्स को सीन या डायलॉग समझ न आए तो क्या वे इसे अपने तरीके से करते हैं? विवेक शर्मा ने कहा, ‘हर वक्त इम्प्रोवाइजेशन जरूरी नहीं होता है। हर सीन और डायलॉग्स बहुत सोच समझ कर लिखे होते हैं। उसमें बदलाव करना किसी भी एक्टर्स के लिए जरूरी नहीं होता है। इस मामले में मुझे अमिताभ बच्चन काफी सही लगते हैं। उन्हें जिस सीन की शूटिंग करनी होती है, उसका स्क्रीनप्ले दो दिन पहले अपने घर पर मंगा लेते हैं। फिर उसका ग्राफ बना लेते हैं। ग्राफ का मतलब, उस सीन में वो कैसे एक्टिंग करेंगे, पहले ही प्रैक्टिस कर लेते हैं। जो पुराने एक्टर्स हैं, वो ज्यादा इम्प्रोवाइजेशन नहीं करते हैं। इस जेनरेशन के एक्टर्स ही ज्यादा एक्सपेरिमेंट करते हैं।’ भूतनाथ में शाहरुख के कॉस्ट्यूम पर खर्च हुए सिर्फ 40 हजार एक्टर्स के कॉस्ट्यूम चुनने में डायरेक्टर का कितना बड़ा रोल होता है? जवाब में विवेक ने कहा, ‘कॉस्ट्यूम चुनने का काम डायरेक्टर का ही होता है। भूतनाथ के वक्त मैंने अमित जी से सिर्फ तीन ही कपड़ों में सारे सीक्वेंस शूट करा लिए थे। इसके अलावा शाहरुख खान अपने घर से कपड़े लेकर आते थे। सिर्फ उनका नेवी वाला यूनिफॉर्म मैंने बनवाया था। आप खुद सोचिए, शाहरुख खान जैसा बड़ा स्टार खुद अपने घर से कॉस्ट्यूम लेकर आता था। आजकल तो ये सारा काम कॉस्ट्यूम डिजाइनर का होता है। हम लोग उन्हें कपड़े तैयार करने का कॉन्ट्रैक्ट देते हैं। कॉस्ट्यूम डिजाइनर इसके लिए प्रोड्यूसर से मोटी रकम भी वसूलते हैं। आप यकीन नहीं करेंगे कि भूतनाथ में शाहरुख के कॉस्ट्यूम पर सिर्फ 40 हजार रुपए खर्च हुए थे।’ खड़े रहने से लेकर सांस लेने और छोड़ने का तरीका भी एक डायरेक्टर ही सिखाता है विवेक के मुताबिक, सारी तैयारियां प्री-प्रोडक्शन से शुरू होती हैं। तब तक स्क्रिप्ट भी तैयार हो जाती है। इसके बाद शूटिंग की शेड्यूलिंग की जाती है। एक्टर्स को बुलाया जाता है। फिर लोकेशन पर जाते हैं। वहां चेक करते हैं कि इक्विमेंट्स और कॉस्ट्यूम पहुंचा है कि नहीं। वहां फिर डायरेक्टर का काम शुरू हो जाता है। वो सीन स्टेजिंग करता है। सीन स्टेजिंग मतलब एक्टर को खड़े रहने से लेकर सांस लेने और छोड़ने का भी तरीका समझाया जाता है। जैसे फिल्म भूतनाथ में चाइल्ड आर्टिस्ट अमन सिद्दीकी यानी बंकू को साउंड, कैमरा और एडिटिंग की नॉलेज नहीं थी। इसलिए वहां डायरेक्टर का काम काफी अहम हो गया था। उसे कैमरे के सामने किस एंगल में खड़े रहना है। सांस कब छोड़नी है, ताकि वो रिकॉर्डिंग में न आए, ऐसी कोई जानकारी नहीं थी। विवेक ने कहा कि जिन एक्टर्स को इन सब चीजों की जानकारी नहीं होती, उनके साथ काम करना बहुत मुश्किल होता है। सीन स्टेजिंग क्या है, यह समझिए विवेक ने कहा, ‘सीन स्टेजिंग को और सरल शब्दों में समझें तो मान लीजिए, आप यहां सीढ़ियों से चलकर आए हैं। आते ही आप सोफे पर बैठ गए। कुछ देर बाद एक औरत आई और आपको चाय देकर गई। आपने मेरे साथ बातचीत की और कुछ देर बाद निकल गए। अगर हम घटनाक्रम को दोबारा रिपीट करें तो इसे सीन स्टेजिंग कहेंगे। एक तरह से इसे रिहर्सल भी कह सकते हैं।’ एक्टर्स के पास बाउंड स्क्रिप्ट लेकर जाते हैं डायरेक्टर एक्टर्स की कास्टिंग के बाद विवेक शर्मा सबसे पहले एक बाउंड स्क्रिप्ट लेकर उनके पास जाते हैं। उन्होंने कहा, ‘उस स्क्रिप्ट में फिल्म की कहानी, स्क्रीनप्ले और डायलॉग्स सब लिखे रहते हैं। एक्टर्स स्क्रिप्ट में कुछ बदलाव या सुझाव देना चाहें तो दे सकते हैं। ज्यादातर एक्टर्स का कोई सुझाव नहीं होता। जाहिर सी बात है कि उनका मुख्य काम एक्टिंग करना है।’ स्क्रिप्ट पढ़ने से ज्यादा सुनना बेहतर 10 अप्रैल को रिलीज हो रही फिल्म मैदान के डायरेक्टर अमित शर्मा ने कहा, ‘मेरा काम करने का तरीका दूसरे डायरेक्टर्स की तुलना में थोड़ा अलग है। मैं सेट पर हर किरदार को पहले खुद ही परफॉर्म करता हूं। जब लगता है कि मैंने अपने एक्ट से खुद को कन्विंस कर लिया है, तब एक्टर्स को सेट पर बुलाता हूं और उनसे एक्ट कराता हूं। मैं कभी भी स्क्रिप्ट पढ़ता नहीं बल्कि सुनता हूं। मुझे स्क्रिप्ट सुनना ज्यादा बेहतर लगता है। इससे मैं कैरेक्टर्स को विजुअलाइज कर पाता हूं। स्क्रिप्ट राइटर मुझसे काफी ज्यादा परेशान रहते हैं, उन्हें मुझे कई बार स्क्रिप्ट की नरेशन देनी पड़ती है।’ अजय देवगन के अंदर नहीं है ईगो बड़े स्टार्स को डील कैसे करते है? आपने अभी-अभी अजय देवगन के साथ काम किया है। उन्हें हैंडल करना मुश्किल रहा? अमित ने कहा, ‘अजय सर डायरेक्टर्स की बात सुनते हैं। मैंने उनसे कहा कि फिल्म मैदान का लीड कैरेक्टर सीना चौड़ा करके नहीं चलता है। उन्होंने मेरी बात मानकर खुद को लचीला दिखाने के लिए वजन कम करना शुरू कर दिया। जैसा कॉस्ट्यूम पहनने को बोला, जैसे डायलॉग्स बोलने को कहा, वो सारी चीजें मानते गए। उनके अंदर बिल्कुल ईगो नहीं है।’ थिएटर्स में काम करने वाले एक्टर्स इम्प्रोवाइजेशन ज्यादा करते हैं अमित ने कहा कि थिएटर में काम करने वाले एक्टर्स कभी-कभार अपने तरीके से एक्टिंग करने लगते हैं। इम्प्रोवाइजेशन ज्यादा करते हैं। यह काफी अच्छी बात भी है। अमित ने कहा, ‘मैं कभी भी एक्टर्स को इम्प्रोवाइजेशन करने से नहीं रोकता हूं। वो अपने हिसाब से डायलॉग्स पढ़ते हैं, मुझे इसमें कोई दिक्कत नहीं होती है। हां, जब लगता है कि वो सामने वाले एक्टर पर हावी हो रहा है, तब मैं वही कट बोल देता हूं। एक लाइन होती है, वहां से आगे नहीं जा सकते। जब मुझे लगता है कि सामने वाला एक्टर जरूरत से ज्यादा एक्सपेरिमेंट कर रहा है, तब मैं वहीं टोक देता हूं।’ एक्टर शॉट नहीं दे पाता तो खुद करके दिखाते हैं मान लीजिए एक्टर कोई शॉट बेहतर नहीं दे पा रहा है, आप उससे संतुष्ट नहीं हैं। फिर उस तक मैसेज कैसे पहुंचाते हैं? अमित ने कहा ‘जिस सीन में एक्टर फंस रहा है, मैं वो खुद करके उसे दिखाता हूं। इससे एक्टर समझ जाता है कि मैं उससे क्या करवाना चाहता हूं। इसमें ईगो नहीं आता है, जिस दिन कोई एक्टर ईगो दिखाएगा तब उसे कैसे हैंडल करना है, यह भी सोच लेंगे। ऐसा नहीं है कि सिर्फ एक्टर ही फंसता है। कभी-कभी डायरेक्टर्स को भी समझ नहीं आता कि वो पर्टिकुलर किसी सीन को कैसे दिखाएंगे।’ इंडिपेंडेंट फिल्म मेकिंग और किसी बैनर के नीचे काम करने में क्या फर्क है? जवाब में अमित शर्मा कहते हैं, ‘मैंने बाहर में अभी तक सिर्फ बोनी कपूर जी के साथ काम किया है। मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि मैं किसी और प्रोडक्शन हाउस के अंडर काम कर रहा हूं। बोनी जी ने मुझे हमेशा फ्रीडम दिया है ताकि मैं बेहतर काम कर सकूं। मैंने अभी तक तीन फिल्में की हैं, तेवर, बधाई हो और अब मैदान। बधाई हो को मैंने खुद ही प्रोड्यूस किया था। बाकी ये दोनों फिल्में मैंने बोनी जी के साथ बनाई हैं। उन्होंने मेरे काम में कभी हस्तक्षेप नहीं किया।’ इनपुट- वीरेंद्र मिश्र