ब्योमकेश बक्शी की जासूसी कहानियां : तरनतुला का जहर-भाग 1

हम घंटे भर साथ-साथ घूमते रहे । बातचीत में समय बीत गया । इस दौरान मुझे लगा, जैसे मोहन कुछ कहना चाह रहा हो, पर रुक जाता था । ब्योमकेश ने भी शायद देखा था, क्योंकि एक बार उसने मुस्कराकर कह ही दिया , ” क्यों ?

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