बैंकों ने ब्याज दरों में कटौती का सिर्फ एक तिहाई लाभ ही ग्राहकों तक पहुंचाया
|रिजर्व बैंक ने जनवरी 2015 से अब तक ब्याज दरों में कटौती के मकसद से नीतिगत दरों में 1.5 पर्सेंट की कटौती की है, लेकिन बैंकों ने ग्राहकों तक इसका पूरा फायदा नहीं पहुंचाया है। खासतौर पर होमलोन लेने वाले ग्राहकों को बैंकों ने आरबीआई की ओर से ब्याज दरों में कटौती का एक तिहाई हिस्सा ही पहुंचाया है। इसके चलते आरबीआई के गवर्नर रघुराम राजन अगले महीने एक बार फिर से रेट कट का फैसला टाल सकते हैं। खासतौर पर महंगाई और वैश्विक स्तर पर पेट्रोलियम उत्पादों में कमी के चलते ऐसा करना पड़ सकता है।
आरबीआई और सरकार दोनों के लिए बैंकों की ओर से ब्याज दरों में कटौती का लाभ ग्राहकों तक न पहुंचाना चिंता की वजह रही है। केंद्रीय बैंक ने बैंकों से कई बार अपील की है कि वे ब्याज दरों में आई कटौती का फायदा सीधे ग्राहकों तक पहुंचाने का फैसला लें। यूपीए सरकार के विपरीत मोदी सरकार ने अब तक खुद को बैंकों को इंटरेस्ट में कटौती करने की सलाह से दूर ही रखा है। गवर्नर रघुराम राजन ने पिछले महीने कहा था, ‘सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस मौके पर यह सुनिश्चित करने की कोशिश की जाए कि मौजूदा और पहले नीतिगत दरों में की गई कमी को सीधे ग्राहकों तक कैसे पहुंचाया जाए और इसका असर ब्याज दरों में कटौती के रूप में देखने को मिले।’
सरकार और आरबीआई को यह उम्मीद थी कि बैंक अप्रैल से कर्जों की ब्याज में कटौती का फैसला लेंगे क्योंकि सरकार ने पीपीएफ और पोस्ट ऑफिस डिपॉजिट जैसी छोटी सेविंग स्कीम्स की ब्याज दर में कटौती कर दी है। बैंकों ने पिछले साल जनवरी से अब तक लेंडिंग रेट में 60 बेसिस पॉइंट्स की कमी है, खासतौर पर 10 बड़े बैंकों ने यह फैसला लिया है। लेकिन इसके उलट बैंकों ने सेविंग स्कीम्स की ब्याज दर में 120 बेसिस पॉइंट्स (100 बेसिस पॉइंट्स एक पर्सेंट के बराबर होता है) तक की कमी कर दी है।
एक सीनियर सरकारी अफसर ने कहा कि बैंकों की ओर से ग्राहकों तक लाभ न पहुंचाने के चलते आरबीआई फिलहाल देखो और इंतजार करो की रणनीति पर काम कर रहा है। सूत्र ने बताया, ‘महंगाई के दबाव और पॉलिसी रेट में कटौती का आम लोगों तक फायदा न पहुंचने के चलते आरबीआई आने वाले दिनों में एक बार फिर से रेट कट की राह पर जा सकता है।’
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