बीजेपी: जिलाध्यक्षों में निराशा, पत्नियों को लड़वाएंगे चुनाव !
|प्रदेश बीजेपी के सभी जिलों के अध्यक्ष आजकल खासे परेशान और निराश बताए जा रहे हैं। पार्टी ने फैसला लिया है कि एमसीडी के चुनावों में उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया जाएगा। पार्टी का यह निर्णय जिलाध्यक्षों को खासा आहत कर रहा है। अब वे इस उधेड़बुन में हैं कि अगर उन्हें टिकट नहीं मिला तो कोशिश कर अपनी पत्नियों को टिकट दिलवा दिया जाए। दो जिलाध्यक्ष तो वर्तमान में पार्षद भी हैं। सबसे अधिक तनाव में तो वे हैं, क्योंकि उनके टिकट पर ही संकट खड़ा हो गया है।
अप्रैल माह में होने वाले एमसीडी चुनाव को लेकर प्रदेश बीजेपी ने अभी इलेक्शन कमिटी का गठन नहीं किया है। असल में यह कमिटी ही इलेक्शन को लेकर सारे दिशा-निर्देश तय करेगी और आदेश देगी कि किसे चुनाव लड़ाया जाए और किसे नहीं। लेकिन सूत्र बताते हैं कि आरएसएस के दिल्ली से जुड़े नेताओं ने प्रदेश नेताओं को बता दिया गया है कि चुनाव में जिलाध्यक्ष को टिकट न दिया जाए, बल्कि उन्हें चुनाव लड़वाने की जिम्मेदारी सौंपी जाए। लेकिन आरएसएस का यह अघोषित निर्णय 14 जिलाध्यक्षों में से अधिकतर के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। ये अध्यक्ष मान रहे थे कि चुनाव में उन्हें टिकट मिलने की संभावना ज्यादा थी, क्योंकि जिला के सभी पदाधिकारी व नेता उनका समर्थन करेंगे लेकिन अब मामला उलटा पड़ता जा रहा है। इसलिए वे अब इस जुगाड़ में है कि अगर उन्हें टिकट नहीं मिलता तो किसी न किसी तरह अपनी पत्नी को टिकट दिलवा दिया जाए।
इस मसले पर जिलाध्यक्षों का गणित देखें तो महरौली के जिलाध्यक्ष आजाद सिंह की पत्नी सरिता चौधरी व उत्तर-पश्चिम जिला के अध्यक्ष वेदपाल मान की पत्नी निशा मान पहले से ही पार्षद हैं। इसलिए अगर इनकी पत्नी को दोबारा टिकट मिलता है तो उन्हें शांति ही मिलेगी। दूसरी ओर चांदनी चौक के जिलाध्यक्ष अरविंद गर्ग व करोल बाग के जिलाध्यक्ष भारत भूषण मदान वर्तमान में पार्षद हैं, जबकि नई दिल्ली जिलाध्यक्ष अनिल शर्मा दो बार पार्षद और एक बार विधायक भी रह चुके हैं। अगर टिकट नहीं मिलेगी तो इन नेताओं को खासी निराशा हाथ लगेगी। सूत्र बताते हैं कि यमुनापार के चारों जिलों के अध्यक्ष तो इस कोशिश में लग गए हैं कि अगर उन्हें टिकट नहीं मिला तो वे अपनी पत्नी को लड़वा दें। इसके लिए उन्होंने आला नेताओं के दरबार में ‘गणेश परिक्रमा’ शुरू कर दी है। इसके अलावा सेंट्रल व वेस्ट दिल्ली के जिलाध्यक्ष भी इस जुगाड़ में हैं कि वे भी इस चुनावी समर में अपनी पत्नियों को आगे ले आएं। इस बाबत एक जिलाध्यक्ष का कहना था कि वह सालों से पार्टी में मेहनत कर रहे हैं, इसलिए अगर उनके बजाए उनकी पत्नी को टिकट मिल जाता है, तो इसमें बुराई क्या है।
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