बंदर पर तकरार, सरकार कहती है पकड़ो, एमसीडी कहती है नहीं

रामेश्वर दयाल, नई दिल्ली

साउथ एमसीडी एरिया में आगामी दिनों में बंदरों का आतंक बढ़ सकता है। एमसीडी ने बंदरों को पकड़ने से इनकार कर दिया है और कोर्ट को भी बता दिया है कि चूंकि बंदर जंगली जानवरों में आता है, इसलिए उसे पकड़ना हमारी जिम्मेदारी नहीं हैं। वैसे कई और भी कारण हैं, जिसके चलते एमसीडी अब बंदरों को पकड़ने नहीं जा रही है। धार्मिक भावनाएं भी आड़े आ रही हैं बंदरों को पकड़ने में।

जंगली जानवर का मसला कौन सुलझाए

राजधानी में पिछले कई सालों से बंदरों का आतंक है। बताते हैं कि वर्ष 2011 में दिल्ली सरकार के वन व वन्यजीव विभाग ने एमसीडी को बंदर पकड़ने के लिए कहा। एमसीडी ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह जंगली जानवर है, इसलिए हमारी जिम्मेदारी नहीं है। मामला कोर्ट में पहुंचा। कोर्ट ने कहा मिलकर सुलझाओ। जिसके बाद एमसीडी ने बंदरों को पकड़ना शुरू कर दिया। बंदरों को पकड़कर असोला भाटी छोड़ा जाता रहा, लेकिन वह दोबारा से रिहायशी इलाकों में लौटकर आ गए। एमसीडी सूत्रों के अनुसार इस दौरान करीब 2025 बंदरों को पकड़कर भाटी छोड़ा गया, लेकिन उनमें से 70 प्रतिशत वापस रिहायशी इलाकों में लौट आए।

सेंट्रल और साउथ दिल्ली में सबसे ज्यादा प्रकोप

साउथ एमसीडी सूत्रों के अनुसार बंदरों का सबसे अधिक प्रकोप साउथ व सेंट्रल दिल्ली में है। यहां के रिहायशी इलाकों में बंदरों का उत्पात तो है ही साथ ही वे लोगों खासकर बच्चों को भी निशाना बना रहे हैं। इन इलाकों के स्कूलों तक में बंदरों ने आतंक मचा रखा है, स्कूल प्रिंसिपल एमसीडी अफसरों से निजात की मांग करते हैं, लेकिन अफसर हाथ खड़े कर रहे हैं। लेकिन समस्या यह है कि कहीं-कहीं बंदर पकड़ने का मसला धार्मिक बन जाता है। निजामुद्दीन इलाके में लोगों ने बंदर पकड़ने वाले को पीटा और उसे पुलिस से पकड़वा दिया। जब वह थाने से छूटा तो दिल्ली छोड़कर भाग गया और बोल गया कि राजधानी में बंदर पकड़ने नहीं आऊंगा। वह अपने पैसे लेकर भी नहीं गया। एमसीडी के वैटिनरी विभाग के अनुसार पशु प्रेमी भी बंदरों को पकड़ने वालों को परेशान करते हैं।

लाखों रुपये के बावजूद कोई पकड़ने नहीं आ रहा

वेटिनरी विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार एक बंदर को पकड़ने के लिए 1200 रुपये एकमुश्त दिए जाते हैं। इसके बावजूद दिल्ली में पकड़ने वाले नहीं आते। मंकी कैचर को बुलाने के लिए उन्हें साल में साढ़े आठ लाख रुपये भी देने का निर्णय लिया गया, फिर भी दाल नहीं गली। अधिकारी के अनुसार इतना ही नहीं हमने हैदराबाद, देहरादून, शिमला, चंडीगढ़, हरियाणा, लखनऊ, तमिलनाडु के वन्यजीव विभाग को पत्र लिखे कि बंदर पकड़ने वाला भेजो, लेकिन किसी ने भी नहीं भेजा। इसके अलावा पिछले दो साल में 12 बार समाचार पत्रों में विज्ञापन दिए गए, लेकिन कुछ नहीं हुआ। अधिकारी के अनुसार अब हम परेशान हो चुके हैं, इसलिए हमने बंदर न पकड़ने का निर्णय लिया है। इसके लिए हमने कोर्ट को भी सूचित कर दिया है।

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