बंगाल: वेटलिफ्टर्स का यह गांव, कर रहा सरकारी मदद का इंतजार
|नैशनल सब जूनियर मीट में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वालीं सरबानी दास यहीं की हैं। उन्होंने हाल में हुए ‘खेला इंडिया’ में 84 किलोग्रामा की कैटिगरी में गोल्ड मेडल जीता था। सरबानी के घर से कुछ ही दूर पर रहने वाली सुकर्णा अदक भी वेटलिफ्टर हैं। उन्होंने भी नैशनल सब जूनियर लेवल पर 58 किग्रा की कैटिगरी में रजत पदक जीता। देउलपुर हाई स्कूल के करीब रहने वाली तनुश्री मॉन्डल के नाम भी सब जूनियर में ब्रॉन्ज मेडल है।
यह पहला मौका नहीं है, इस गांव की और भी कई लड़कियों ने मेडल जीते हैं। इतिहास पर नजर डालें तो इस गांव को वेटलिफ्टिंग के लिए सीमा दोलूर, पार्वती भट्टाचार्य और छाया अदक की वजह से जाना जाता है। 80 के दशक में जब पहली बार नैशनल विमिन वेटलिफ्टिंग हुई थी, तब उसमें छाया ने गोल्ड मेडल जीता था। वह हावड़ा के अंदुल गांव से हैं।
इस वक्त सरबानी, सुकर्णा अदक और तनुश्री गांव का नाम रौशन कर रही हैं। बता दें, पिछले नैशनल सब जूनियर मीट में हावड़ा के 13 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था। इसमें से 11 अष्ठम दास नाम के जो कोच हैं उनके शिष्य थे। सुकर्णा अदक भी उनसे ही ट्रेनिंग लेती हैं। वह खुद नैशनल लेवल के वेटलिफ्टर रह चुके हैं।
गांव में सुविधाओं की कमी पर बात करते हुए अष्ठम दास ने कहा, ‘तनुश्री नैशनल सब जूनियर मीट में इस बार गोल्ड जीत सकती थीं, लेकिन प्रतियोगिता में मैदान वैसा नहीं था जैसे पर उन्हें ट्रेनिंग मिली है। वहां मैदान समतल था, लेकिन तनुश्री कच्चे ग्राउंड पर ट्रेनिंग करती है। इस वजह से वहां उसके पैर फिसल रहे थे। वर्ना वह और बेहतर करतीं।’ उनका मानना है कि गांव में टैलंट की भरमार है, लेकिन सरकारी मदद के आभाव में कुछ हो नहीं पा रहा।
वहीं हावड़ा जिले के वेटलिफ्टिंग सेक्रेटरी बाबुलाल मुखर्जी ने कहा, ‘तमिलनाडु के वेल्लोर में एक गांव है। उसमें कई वेटलिफ्टर्स हैं। सरकार भी उनकी काफी मदद कर रही है। इस वजह से उस गांव के बहुत सारे वेटलिफ्टर्स ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीते हैं। देउलपुर को सरकारी मदद नहीं मिल रही, यहां की आर्थिक स्थिति भी मजबूत नहीं है, ऐसे में क्या यहां की महिला वेटलिफ्टर्स अपनी पहचान बना पाएंगी?’
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