बंगाल छोड़ने पर मजबूर अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी

अमरेंद्र चक्रवर्ती, कोलकाता
एक तरफ जहां देश महिला हॉकी टीम की एशिया कप के खिताबी जश्न में डूबा हुआ है तो दूसरी ओर एक ऐसी इंटरनैशनल महिला खिलाड़ी भी है, जो कभी हॉकी का गढ़ कहे जाने वाले बंगाल को छोड़ने पर मजबूर है। यह हैं बंगाल की बेस्ट महिला हॉकी खिलाड़ी स्वाति दोलुई। स्वाति कोलकाता से लगभग 80 किमी दूर जौग्राम में रहती हैं। वह भारत के लिए सीनियर और जूनियर लेवल पर 8 टूर्नमेंट खेल चुकी हैं। मौजूदा स्थिति को देखते हुए वह जितना जल्दी हो सके बंगाल छोड़ना चाहती हैं।

कोलकाता वुमन हॉकी लीग में अपनी टीम के लिए 16 गोल दागने वाली यह होनहार खिलाड़ी वेस्ट बंगाल वुमन हॉकी की खराब हालत की वजह से परेशान है। भारतीय टीम की कप्तान रानी रामपाल की फैन स्वाति ने एक साल पहले बेंगलुरु में आयोजित एशिया कप नैशनल कैंप में हिस्सा लिया था। यहां उन्हें अपनी रोल मॉडल रानी से भी मिलने का मौका मिला, लेकिन इसी दौरान चोटिल हो जाने के कारण उन्हें घर लौटना पड़ा। उसके बाद से उनकी वापसी नहीं हो पाई है।

अब वह एक बार फिर नैशनल कैंप में वापसी करने को बेताब हैं। बीते मंगलवार को अपने बर्थडे पर उन्होंने कहा- मैं फिर से नैशनल कैंप जॉइन करना चाहती हूं। वह हम जैसी खिलाड़ियों के लिए सबसे बड़ा प्लेटफॉर्म है। वहीं, भारतीय टीम की सफलता पर स्वाति कहती हैं, ‘टीम ने लाजवाब परफॉर्म किया। खासकर रानी दी (कैप्टन रानी रामपाल) ने बहुत अच्छा खेला।’

आखिर क्यों छोड़ना चाहती हैं बंगाल
इस बारे में स्वाति कहती हैं, ‘अब यहां हॉकी के लिए कुछ खास नहीं बचा है। न तो यहां स्ट्रो-टर्फ है और न ही खिलाड़ियों के लिए स्पॉन्सरशिप। लोकल क्लब सिर्फ अपना हित साधने में लगे हुए हैं। वे खेल को बर्बाद कर रहे हैं।’ वह आगे कहती हैं- इंफ्रास्ट्रक्चर और स्टेडियम नहीं रहेगा तो अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी कैसे निकल सकेंगे। यहां टूर्नमेंट भी गिनती के होते हैं। अगर बेहतर सुविधा मिले तो बंगाल भी देश को स्टार खिलाड़ी दे सकता है। हरियाणा और पंजाब को देख लीजिए। वहां खिलाड़ियों को कितनी बेहतर सुविधाएं मिल रही हैं।

किसान पिता नहीं खरीद सकते महंगी स्टिक
स्वाति के माता-पिता किसान हैं और उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वह बेटी के लिए महंगी हॉकी स्टिक खरीद सकें। जब तक वह यंग स्टार क्लब के लिए खेलती थीं, तब तक उन्हें कुछ आर्थिक सहायता मिलती रही। लेकिन चोटिल होने के बाद हालत और खराब हो गई है। बंगाल में हॉकी की खराब हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अब वहां राज्य स्तर पर सिर्फ 6 टीमें ही खेलती हैं।

कभी बंगाल से हुए ऐसे दिग्गज
सबसे दुख की बात यह है कि स्वाति उस बंगाल को छोड़ने पर मजबूर हैं, जिसे कभी हॉकी को गढ़ माना जाता था। उसने पैट्रिक जॉनसन, लेस्ली क्लॉडियस, केशव दत्त, गुरबक्श सिंह, जोगिंदर सिंह, इनाम-उर-रहमान और थोइबा सिंह जैसे दिग्गज हॉकी खिलाड़ी देश को दिए। देश का पहला हॉकी संघ 1909 में बंगाल (बंगाल हॉकी ऐसोसिएशन) में ही बना। यही नहीं, ओलिंपिक (एम्स्टर्डम ओलिंपिक-1928) में हिस्सा लेने वाली पहली का सिलेक्शन भी यहीं किया गया था।

हॉकी संघ में प्रेजिडेंट ही नहीं
हैरान बात तो यह भी है कि बंगाल हॉकी संघ बिना प्रेजिडेंट के चल रहा है। संघ के सदस्यों के बीच भी काफी तनाव की बातें सामने आती रहती हैं। वहीं दूसरी ओर, अगला नैशनल लेवल का टूर्नमेंट जनवरी में होना है। उन्हें नहीं पता कि नैशनल कैंप के लिए यहां के खिलाड़ियों को कॉल आएगी भी या नहीं।

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