फ्री में लड़ती हैं गरीब महिलाओे के केस

गाजियाबाद
ऐसा माना जाता है कि एक महिला ही महिला का दर्द समझ सकती है। इसका उदाहरण दिख रहा है कचहरी में। इंदिरापुरम की 31 वर्षीय ऐडवोकेट अंजुल द्विवेदी गरीब पीड़ित महिलाओं का केस लड़ने के लिए कोई फीस नहीं लेतीं बल्कि खुद अपनी सेविंग्स से वह पीड़िताओं की मदद भी करती हैं। इसके अलावा वह इलाहाबाद में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान से भी जुड़ी हुई हैं।

सुलझाए 105 केस
अंजुल सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं। अंजुल ने बताया कि जो भी पीड़ित महिला केस लड़ने के लिए फीस नहीं दे सकती, वह उनका मुफ्त में केस लड़ती हैं। उन्होंने अब तक करीब 105 केस फ्री में लड़े हैं जिनमें पीड़ित महिलाओं को न्याय भी मिला है।

काउंसलिंग भी की
अंजुल ने बताया कि उनकी इस आदत को देखते हुए उनके सीनियर उन्हें प्रफेशनल रहने की सलाह देते हैं लेकिन उनसे महिलाओं का दुख देखा नहीं जाता। वह स्कूल के समय से दूसरों की मदद करती आ रही हैं। उन्होंने बताया कि उनके पास तलाक के मामले आएं या फिर सिविल केस, वह पहले काउंसलिंग करती हैं और कोशिश करती हैं कि बिना केस फाइल किए ही मामला सुलझ जाए। उनका कहना है कि वह करीब 75 केस इस तरह से सुलझा चुकी हैं।

‘पति संग हैं खुश’
साल 2015 में उनके पास रेणू (बदला हुआ नाम) आई थीं। उस महिला का पति उसे काफी मारता था। इस बात से परेशान वह तलाक का केस फाइल करने की सोच रही थी लेकिन जब यह बात अंजुल को पता चली तो उन्होंने रेणू को अपने ऑफिस बुला लिया। रेणू के अलावा उनके पति को भी बुलाया गया। जब एक दिन में बात नहीं बनी तो उन्हें लगातार 15 दिन तक बुलाया गया और काउंसलिंग की गई। आज दोनों एक-साथ खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं।

हो गई सुलह
सीलमपुर की बरखा के घरवालों ने पति पर चोरी का इल्जाम लगाया। मामला केस कोर्ट पहुंचा। बरखा के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह पति को बेकसूर साबित कर सकें। एक दिन वह कोर्ट के बाहर खड़ी थीं, अंजुल उनके पास गईं और महिला की मदद करने की ठान ली। उन्होंने दोनों परिवारों को अलग-अलग दिन बुलाया और समस्या पूछी। करीब एक महीने तक यह सिलसिला चला और फिर बिना पैसे लिए अंजुल ने बरखा का केस लड़ा और जीत गईं। इसके बाद उन्होंने बरखा की अपने मायके से सुलह करवाई।

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