फिल्म रिव्यू: रिश्तों के भावार्थ ‘मुक्ति भवन’
|यह फिल्म परिवार के नाजुक क्षणों में संबंधों को नए रूप में परिभाषित करती है। परिवार के सदस्य एक-दूसरे के करीब आते हैं। रिश्तों के भावार्थ बदल जाते हैं।
यह फिल्म परिवार के नाजुक क्षणों में संबंधों को नए रूप में परिभाषित करती है। परिवार के सदस्य एक-दूसरे के करीब आते हैं। रिश्तों के भावार्थ बदल जाते हैं।