फिल्म रिव्यू: ‘मर्दों’ की मनमर्जी की उड़े धज्जी ‘अनारकली ऑफ आरा’ (चार स्टार)
|आज की फिल्मों में ठेठ हिंदी बेल्ट गायब रहती है। उसकी फील यहां जर्रे-जर्रे में है। वह किरदारों की भाषा, व्यहवहार और परिवेश में बिना किसी अपराधबोध के भाव से मौजूद है।
आज की फिल्मों में ठेठ हिंदी बेल्ट गायब रहती है। उसकी फील यहां जर्रे-जर्रे में है। वह किरदारों की भाषा, व्यहवहार और परिवेश में बिना किसी अपराधबोध के भाव से मौजूद है।