फ़िल्म रिव्यू: ‘आत्मा’ विहीन कृत्रिम शरीर ‘घोस्ट इन द शेल’
|फ़िल्म का प्लॉट पेचीदा और उलझा हुआ है। कहानी भागती और बिखरी हुई है, जो दर्शक को बांधकर नहीं रख पाती। संवाद बेतरतीब और दार्शनिक भाव लिए हुए हैं।
फ़िल्म का प्लॉट पेचीदा और उलझा हुआ है। कहानी भागती और बिखरी हुई है, जो दर्शक को बांधकर नहीं रख पाती। संवाद बेतरतीब और दार्शनिक भाव लिए हुए हैं।