प्रधान ने तेल कंपनियों से प्राकृतिक गैस, वैकल्पिक ईंधन का उपयोग बढ़ाने को कहा
|उच्चतम न्यायालय ने पिछले महीने राष्ट्रीय राजधानी तथा आसपास के क्षेत्रों में पेट्रोलियम कोक तथा फर्नेस आयल के उपयोग और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था। क्षेत्र में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए उठाया गया यह कदम एक नवंबर से प्रभाव में आया। इन दोनों को प्रदूषण फैलाने वाला ईंधन माना जाता है।
इसके मद्देनजर पर्यावरण मंत्रालय और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 15 नवंबर को उार प्रदेश, हरियाणा तथा राजस्थान में किसी भी उद्योग द्वारा पेट कोक और फर्नेस आयल के उपयोग पर अगले आदेश तक प्रतिबंध लगा दिया।
प्रधान ने ट्विटर पर लिखा है, फर्नेस आयल के उपयोग तथा उसके प्रदूषण पर प्रभाव की समीक्षा की गयी ताकि राजस्थान, उार प्रदेश और हरियाणा में गैस तथा वैकल्पिक ईंधन की आपूर्ति बढ़ायी जा सके और उन्हें यह ईंधन उपलब्ध कराया जा सके जो अबतक इसका उपयोग कर रहे थे।
इससे पहले, उन्होंने पर्यावरण और भारी उद्योग तथा कोयला मंत्रालय के अधिकारियों के साथ कथित रूप से प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन के उपयोग की समीक्षा की थी।
उन्होंने एक अन्य ट्विट में कहा, देश में करीब 2.7 करोड़ टन पेटकोक का उपयोग किया जाता है। इसमें से 50 प्रतिशत का आयात किया जाएगा। पेटकोक का उपयोग उस उद्देश्य के लिये किया जा सकता है जिससे प्रदूषण नहीं फैले।
पिछले सप्ताह शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों को प्रदूषण पर नियंत्रण के लिये उद्योग में पेट कोक तथा फर्नेस आयल के देश व्यापी पाबंदी की दिशा में कदम उठाने को कहा।
दिल्ल में पेट कोक तथा फर्नेस आयल पर पाबंदी 1996 से है। न्यायालय का इसकी बिक्री और उपयोग पर पाबंदी के 24 अक्तूबर का आदेश राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिये था। जिसमें दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, गुड़गांव तथा फरीदाबाद आते हैं।
देश में अप्रैल-अक्तूबर 2017 के दौरान 1.4 करोड़ टन पेट कोक की खपत हुई जो इससे पूर्व विा वर्ष की इसी अवधि में 1.49 करोड़ टन थी। इसमें से करीब 80 लाख टन का उत्पादन देश में जबकि शेष आयात किया गया।
भाषा
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