प्रतिद्वंद्वी देशों की इकॉनमी को संकटग्रस्त होने से भारत को फायदा
| भारत की इस रफ्तार में अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों का भारी योगदान रहा है। चीन की इकॉनमी लड़खड़ा रही है, ब्राजील कमोडिटी मूल्य में भारी गिरावट से संघर्ष कर रहा है और रूस यूरोपीय पाबंदी व तेल रेवेन्यू में गिरावट से जूझकर आर्थिक मंदी की चपेट में है। यानी दुनिया की बड़ी इकॉनमी के धाराशायी होने का लाभ भारत को मिल रहा है। इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी जाता है, जिन्होंने परिस्थितियों को भांप कर कदम उठाया और देश को रफ्तार देने में मदद की। भारतीय स्टॉक मार्केट और रुपये में बढ़त का सिलसिला जारी है। मल्टिनैशनल कंपनियां भारत में अपने ऑपरेशन को बढ़ाने या नया ऑपरेशन शुरू करने पर गौर कर रही हैं। काफी दशकों से पीछे रहे भारत के ग्रोथ रेट ने पिछले कुछ महीनों में चीन के ग्रोथ रेट को छू लिया। माहौल अभी भारत के हित में है, वहीं अन्य देश जैसे रूस, वेनेजुएला एवं अन्य प्रतिकूल परिस्थिति का सामना कर रहे हैं। आयातित तेल पर देश की निर्भरता दशकों से इसके लिए अभिशाप रही है। लेकिन, मौजूदा समय में जिस तरह परिस्थिति बदली यानी तेल की कीमतों में अंतरराष्ट्रीय मार्केट में भारी गिरावट आई, उसका फायदा भारत को मिला। इससे भारत को अपने राजस्व घाटा की चौड़ी हुई खाई को पाटने में मदद मिलेगी। रिजर्ब बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर रघुराम जी.राजन ने बताया, ‘हमें इकॉनमी के लिए 50 बिलियन डॉलर यानी करीब 3000 अरब रुपये का निश्चय ही उपहार मिला है।’ तेल की कीमतों में गिरावट के अलावा अन्य उभरते हुए मार्केट के संकट में फंसने का फायदा भी भारत को मिल रहा है। इसे ऐसे समझा जा सकता है। चीन में मल्टिनैशनल कंपनियों की जांच, पड़ोसी देशों के साथ तनाव और वर्कर्स की सैलरी में हुए भारी इजाफे के कारण कई कंपनियां भारी पैमाने पर लेबर फोर्सेज की तलाश में भारत समेत अन्य देशों की ओर रुख कर रही हैं। जनरल मोटर्स जैसी बड़ी कंपनी ने एशिया के अपने हेडक्वॉर्टर्स को शंघाई से हटाकर सिंगापुर स्थानांतरित कर दिया है और भारत में अपने ऑपरेशन का प्रसार कर रही है। जनरल मोटर्स की चीफ ऐग्जिक्युटिव मैरी टी. बैरा पिछले साल सितंबर में पूणे आई थीं। उनकी यात्रा का मकसद शेवरले का वहां से चिली को एक्सपोर्ट करने की परिस्थितियों के बारे में परीक्षण करना था। वह भारत के ऑटो मार्केट में भी अपने ऑपरेशन को फैलाने के अवसर खोज रही हैं। कंपनी का मानना है कि 2020 तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकॉनमी होगी। मुंबई में बूटिक इन्वेस्टमेंट बैंक मेंटर कैप मैनेजमेंट के चेयरमैन शैलेश वी.हरीभक्ति ने बताया कि खुद ब खुद इस तरह की परिस्थितियां पैदा हो गई हैं, जो भारत के ग्रोथ और मैन्युफैक्चरिंग को रफ्तार दे रही हैं। जब भाग्य भारत का साथ दे रहा है तो पीएम मोदी भी इस मौके को गंवाना नहीं चाहते हैं और वह इकॉनमी के अवरोधों को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। वह सरकारी प्रभुत्व वाली इंडस्ट्री कोयला खनन के क्षेत्र में निजी सेक्टर को शामिल करना चाह रहे हैं। वह सड़क एवं अन्य आधारिक संरचनाओं के निर्माण को तेजी देने पर गौर कर रहे हैं। टैक्स के मोर्चे पर पीएम मोदी धीरे-धीरे सभी अप्रत्यक्ष कर के बदले वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू करवाने के प्रयास में है। जनवरी में नई दिल्ली के अपने दौरे के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने भारत में बड़े पैमाने पर रेग्युलेटरी अड़चनों का उल्लेख किया था। इस बात को ध्यान में रखकर पीएम मोदी ने रिफॉर्म्स के प्रयास तेज किए हैं, जिनसे इन अड़चनों पर काबू पाने में मदद मिलेगी। उनकी पॉलिसी सुधार के परिणाम को इस उदाहरण से समझा जा सकता है। एक समय था, जब छोटी फैक्ट्रियों को अपने बॉयलर्स को हर साल बंद करना पड़ता था। इसका कारण यह होता था कि सरकारी निरीक्षक उनकी जांच किया करते थे, लेकिन मोदी की सुधारवादी नीतियों ने इस अड़चन को समाप्त कर दिया। अब इन फैक्ट्रियों को हर साल बंद करने की आवश्यकता नहीं रह गई है। बीमाकर्ताओं, सैन्य ठेकेदारों और रियल एस्टेट कंपनियों के लिए विदेशी निवेश नियमों में छूट दी गई है। टैक्स ढ़ांचे में भारी पैमाने पर संशोधन प्रक्रियाधीन है। बाहरी निवेशकों में नई उम्मीद जगने के बाद देश भर में शहरों में बिजनस तेजी से फैल रहा है। न्यू यॉर्क टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, आरजे अपैरल इंडस्ट्रीज के निदेशक प्रीतम संघाई ने बताया कि बाहरी निवेशकों के भारतीय मार्केट की ओर आकर्षित होने के कारण देश के जिन शहरों में व्यापार बढ़ा है, उनमें तिरुपुर भी शामिल है। यहां व्यापार बढ़ने का अंदाजा इस बात से किया जा सकता है कि तिरुपुर में ज्यादातर फैक्ट्रियां अपनी क्षमता को दोगुना या तिगुना कर रही हैं हालांकि इनकी उत्पादन क्षमता पहले से ही बहुत ही ज्यादा है। भारत का यह ग्रोथ रेट कुछ समय के लिए रहता है या लंबी पारी खेलेगा, यह मोदी सरकार के सुधार के अजेंडे पर निर्भर करेगा। तेजी से कानून को बदलने में राजनीतिक समर्थन के अभाव में उनको भारी बदलाव लाने के लिए अस्थायी मापदंडों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। दिल्ली में हुए हालिया विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी बुरी तरह से हारी है। उनके लिए इस महीने के बाद परीक्षा का अगला दौर शुरू होगा, जब संसद में उनकी सरकार अपना पहला पूर्णकालिक बजट बेश करेगी। इस बजट में सरकार को राजस्व घाटे पर काबू पाने के लिए अजेंडा पेश करना होगा और साथ ही निवेश को बढ़ावा देने, मैन्युफैक्चरिंग को रफ्तार देने और आधुनिक राजमार्ग एवं बंदरगाहों के निर्माण की अपनी योजना पेश करनी होगी।