पैसे नहीं थे तो रूममेट्स ने घर से निकाला:खाने के लिए सिर्फ 2 रुपए बचे थे; आसान नहीं रहा हीरामंडी के ‘हामिद’ अनुज का सफर
|ये अनुज शर्मा हैं। हाल ही में संजय लीला भंसाली की सीरीज ‘हीरामंडी’ में इन्हें स्वतंत्रता सेनानी हामिद के रोल में देखा गया। ये अनुज का भंसाली के साथ तीसरा प्रोजेक्ट है। इससे पहले उन्होंने फिल्म ‘पद्मावत’ और ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ में भी काम किया था। इस बार की स्ट्रगल स्टोरी में इन्हीं अनुज शर्मा की कहानी को हमने समेटा है। दिलचस्प बात यह है कि पहली बार में उन्हें ‘हीरामंडी’ के लिए रिजेक्ट कर दिया गया था, लेकिन बाद में भंसाली ने खुद उन्हें इस सीरीज के लिए चुना। मुंबई के संघर्ष ने भी कई दफा अनुज को तोड़ना चाहा। वे यहां पहुंचते की घर वापस भाग जाना चाहते थे, लेकिन पिता के एक कॉल ने उन्हें यहां रुकने का साहस दिया। 1-2 महीने बाद उन्हें तंगी का भी सामना करना पड़ा। नौबत ऐसी आ गई थी कि उनके पास खाने तक के पैसे नहीं बचे थे। पहले पढ़िए कि अनुज कैसे बने भंसाली के तीन प्रोजेक्ट्स का हिस्सा… ‘हीरामंडी’ के लिए रिजेक्ट हुए तो पूरी रात सो नहीं पाए अनुज ने बताया, ‘हीरामंडी’ का सेट फिल्म सिटी में लगा हुआ था। सिलेक्ट होने के 2 दिन पहले मैं भाई के साथ फिल्म सिटी से गुजर रहा था। मैंने भाई से कहा कि ये संजय सर का सेट है और मैं इस सीरीज में उनके साथ काम करना चाहता हूं। अगले दिन पता नहीं कैसे, मेरे पास ऑडिशन के लिए कॉल आया और मैंने ऑडिशन दिया। दोपहर से रात हो गई, लेकिन प्रोडक्शन टीम की तरफ से किसी का कॉल नहीं आया। जब मैंने पता किया तो निराशा हाथ लगी। सामने से कहा गया कि सिलेक्शन नहीं हो पाया। इतना सुनते ही मेरी रात की नींद उड़ गई। बार-बार ख्याल आ रहे थे कि जब भंसाली सर ने मेरा ऑडिशन देखा होगा तो क्या सोचा होगा। इस उथल-पुथल में पूरी रात बीत गई। अगले दिन उठकर मैं भगवान से अपनी व्यथा बता ही रहा था कि भंसाली प्रोडक्शन टीम से कॉल आया कि भंसाली सर मुझसे मिलना चाहते हैं। मैं तैयार होकर फिल्म सिटी पहुंचा। उन्होंने मेरा हाल चाल पूछा। उनका मात्र इतना कहना भी मेरे लिए बहुत ज्यादा था। इसके बाद सर ने कहा कि ये सीन है और इसके लिए तैयार हो आकर आ जाओ। मुझे लगा कि सर फिर से ऑडिशन लेना चाहते हैं, क्योंकि किसी ने बताया कि सर ने मेरा पुराना ऑडिशन देखा नहीं है। मैंने ऑडिशन समझ कर पूरा सीन कर लिया। बाद में पता चला कि वो शूटिंग का ही हिस्सा था।’ पहली बार में ‘पद्मावत’ का ऑफर ठुकरा दिया था अनुज इससे पहले भंसाली की फिल्म ‘पद्मावत’ और ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ में काम कर चुके थे। इन दोनों फिल्मों के बारे में अनुज ने बताया, ‘मैं 2005 में मुंबई आया था। जिस दिन पहुंचा उस दिन भंसाली प्रोडक्शन के ऑफिस में जाकर अपनी तस्वीर दी। साथ ही दूसरे प्रोडक्शन हाउस में भी जाकर अपनी तस्वीरें दे देता था कि क्या पता कहीं से कोई काम मिल जाए। इस बात को 13 साल बीत गए थे। फिर एक दिन मेरे पास भंसाली प्रोडक्शन टीम की तरफ से कास्टिंग डायरेक्टर अमिता सहगल की कॉल आई। उन्होंने फिल्म ‘पद्मावत’ का ऑफर दिया। मुझे लगा कि फिल्म में एक-दो सीन्स ही होंगे इसलिए मैंने ऑफर ठुकरा दिया, क्योंकि उस वक्त टीवी शोज में अच्छा काम कर रहा था। फिर अमिता जी ने समझाया कि यह फिल्म मुझे करनी चाहिए और भंसाली सर से भी मिलना चाहिए। उनका कहना मान मैं अगले दिन सेट पर पहुंच गया और सर से मिला। उनका ऑरा देख ही मैं पागल हो गया। उन्होंने मुझसे बहुत गर्मजोशी के साथ बातचीत की और फिर मैंने फिल्म साइन कर ली। 4 साल बाद मुझे फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ के लिए कॉल आई और इसके लिए भी मैंने हामी भर दी।’ अब पढ़िए अनुज शर्मा के संघर्ष की कहानी उन्हीं की जुबानी… शूटिंग देख एक्टर बनने का फैसला किया अनुज का पहला ख्वाब एक्टर बनन नहीं था। उन्होंने कहा, ‘मेरे मामा जी एक्टिंग फील्ड से जुड़े थे। वे परिवार के पहले सदस्य थे, जो सपनों की नगरी मुंबई आए थे। एक बार वे मुझे लेकर दिल्ली गए, जहां किसी टीवी शो की शूटिंग चल रही थी। शूटिंग देखकर मैं भौचक्का रह गया। मैंने वहां देखा कि एक आदमी को मैनेज करने के लिए बड़ी एक टीम थी, जिसमें 6-7 लोग शामिल थे। कोई मेकअप ठीक कर रहा, कोई हेयर स्टाइल बना रहा तो कोई शीशा लेकर खड़ा हुआ है। इन सारी चीजों ने मुझे बहुत लुभाया। यही देखने के बाद मैंने एक्टर बनने का फैसला कर लिया।’ मामा कहते थे कि एक्टर बनने के लिए पहले हिंदी सुधारो अनुज हरियाणा के रहने वाले हैं। इस वजह से उनकी हिंदी स्पष्ट नहीं थी। बोलते वक्त हरियाणवी टच झलकता था। इस बारे में उन्होंने कहा, ‘मामा कहते थे कि तुम्हारी हिंदी तो अच्छी है नहीं तो एक्टर कैसे बनोगे। पहले बोलना सीखो, फिर एक्टर बनने के ख्वाब देखना। इसके बाद मैंने हिंदी उच्चारण सुधारने के लिए मेहनत शुरू कर दी। दूसरी तरफ मामा फिल्मों के किस्से-कहानियां सुनाते थे, जिनकी बदौलत मैं फिल्मों से जुड़ता चल गया। इसी दौरान मामा का देहांत हो गया, लेकिन एक्टिंग के लिए मेरा पागलपन कम नहीं हुआ। एक्टिंग के लिए इतना जुनूनी हो गया था कि कॉलेज खत्म होते ही नाटक देखने और सीखने दिल्ली के मंडी हाउस चला जाता था। ऐसा 3 साल तक चलता रहा, लेकिन यह आसान दिखने वाला सफर बिल्कुल भी आसान नहीं था। रोज कॉलेज जाना और फिर सोनीपत से दिल्ली आना बहुत चैलेंजिंग था। घर से पैसे भी ज्यादा नहीं मिलते थे, लेकिन ख्वाब तो पूरा करना ही था। चाह कर भी तंगी या दूसरे किसी बहाने से खुद के सपने के साथ धोखा नहीं कर सकता था। फिलॉसफी से ग्रेजुएट होने के बाद दोस्तों ने फैसला किया कि सभी वकील बनेंगे, लेकिन जिस दिन फॉर्म लेने पहुंचना था, उस दिन ट्रेन लेट हो गई। फिर किस्मत ने ऐसी करवट ली कि उसी दिन मेरी मुलाकात इंडियाज मोस्ट वांटेड शो के ऑफिस में एक्टर राजेश तैलंग से हुई। वे मेरी बातचीत से बहुत इम्प्रेस हुए, लेकिन कुछ बात नहीं बनी। इस बात को 2 दिन बीत गए। मैं घर के पास रामलीला की तैयारी कर रहा था कि राजेश तैलंग का फोन आया और उन्होंने शो इंडियाज मोस्ट वांटेड का ऑफर दिया। ये सुनके ही मैं खुशी से उछल गया और अगले दिन से ही शूटिंग शुरू कर दी। ये जिंदगी का पहला शूट था।’ 2 साल होटल में काम किया, गर्लफ्रेंड के कहने पर मुंबई आया अनुज ने बताया कि उन्होंने डीडी 2 चैनल पर काम करके बहुत पॉपुलैरिटी हासिल कर ली थी, लेकिन फिर ये चैनल ही बंद हो गया। कोई दूसरा काम ना होने की वजह से मजबूरन उन्हें 2 साल एक्टिंग से ब्रेक लेना पड़ा। इस सफर के बारे में अनुज ने बताया, ‘जब चैनल बंद हो गया, तब दूसरा कोई रास्ता नहीं था। मुंबई जाना चाहता था, लेकिन कंडीशन ऐसी नहीं थी कि वहां जा सकूं। वैसे भी घरवाले चाहते थे कि बस गुजारे भर की नौकरी कर लूं और शादी करके सेटल हो जाऊं। जब एक्टिंग से वास्ता छूटा तो मैं एक होटल में बिल बनाने का काम करने लगा। इस वक्त मेरी मुलाकात निधि से हुई, जो आज मेरी पत्नी हैं। इनके साथ रिश्ते में आने के बाद हमारा पहला वैलेंटाइन डे आया। मैंने उनसे पूछा कि उन्हें इस खास दिन पर क्या चाहिए। मुझे उम्मीद थी कि वो फोन की डिमांड करेंगी, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने जो कहा, वो सुन मैं हैरान रह गया। उन्होंने कहा- मैं चाहती हूं कि आप वैलेंटाइन डे यानी 14 फरवरी को मुंबई में रहिए और जब तक अपना ख्वाब पूरा ना कर लीजिए, वापस सोनीपत ना लौटिए। वो जानती थीं कि मैं मुंबई जाने के लिए कितना बेताब हूं बस हालात नहीं बन पा रहे थे। हालांकि, उनकी इस मांग ने मुझे बहुत हौसला दिया और 14 फरवरी 2005 को मैं मुंबई की सरजमीं पर पहुंच गया।’ एक दिन में ही मुंबई छोड़ना चाहा, पिता की बात सुन रोने लगा था आम स्ट्रगलर्स की तरह मुंबई का संघर्ष अनुज को थका देने वाला लगा था। अनुज को यहां आए एक दिन भी नहीं हुआ था कि उन्होंने मुंबई छोड़ने का मन बना लिया था। इस बारे में उनका कहना है, ‘मुंबई पहुंचने के बाद मैं एक दोस्त के रूम पर रहने के लिए गया। वहां पहुंचा तो मेरा दिल दहल गया। एक छोटे से कमरे में 6 लोगों को रहते देखा। इससे पहले मैंने इतनी भीड़ कभी नहीं देखी थी। ये सब देख मेरी हिम्मत टूट गई और मैंने अगले दिन ही घर वापस जाने का फैसला कर लिया। तभी घर से हालचाल पूछने के लिए पिता का फोन आया। उन्होंने मेरी दबी आवाज से भांप लिया कि मैं परेशान हूं। उन्होंने कहा- तुम फौजी के बेटे हो हार नहीं सकते हो। उनकी ये बात सुन मैं रोने लगा और घर जाने का ख्याल छोड़ दिया।’ एक दिन नौबत ऐसी आई कि खाने तक के पैसे नहीं बचे ‘एक महीने उन 6 लोगों के साथ रहने के बाद मैं दूसरे रूम में रहने के लिए चला गया, जहां पहले से दो लोग रहते थे। पैसे खत्म होते ही मुझे उस रूम से भी निकाल दिया गया। वो दिन ऐसा था कि मेरे पास सिर्फ 2 रुपए बचे थे। खाने तक की दिक्कत हो गई थी। दिन भर की थकान के बाद शाम को भूख से तड़प रहा था, लेकिन कुछ खरीद कर खा भी नहीं सकता था। तभी निधि का कॉल आया। उन्हें जब पता चला कि मेरे पास खाने के भी पैसे नहीं है, तब उन्होंने मुझे ढांढस बंधाया और एक दोस्त की मदद से मुझे 1000 रुपए भिजवाए। उन एक हजार रुपए से मैंने नए जूते खरीदे, क्योंकि पुराने जूते फट गए थे। 1-2 दिन में सारे पैसे खत्म भी हो गए। फिर पिता से 5000 रुपए मांगे, लेकिन समस्या थी कि वो पैसे मेरे पास पहुंचते कैसे। ना मेरे पास कोई ATM था और ना ही मुंबई शहर में मेरा कोई अपना। फिर इस मुसीबत के वक्त एक दोस्त मसीहा बना और वो पैसे देने दिल्ली से मुंबई आ गया। वहीं, एक दूसरे दोस्त ने मुंबई में रहने का ठिकाना भी दे दिया। तंगी और हालात से लड़ रहा था कि किस्मत से महान एक्टर दिलीप कुमार के टीवी शो स्त्री में काम मिल गया। यहां मुझे हर दिन के 1500 रुपए मिलते थे। इन पैसों से कुछ दिन का सफर आसान हो गया और सारी उधारी भी खत्म हो गई।’ जब काबिलियत देख दिलीप कुमार ने टीवी शो में काम दिया अनुज ने बताया कि टीवी शो स्त्री में काम मिलने का किस्सा भी दिलचस्प है। उन्होंने कहा, ‘जब मैं पहले दिन ऑडिशन देने पहुंचा तो कास्टिंग हेड ने कहा कि तुम तो थिएटर एक्टर हो। तुम्हारे हिसाब से स्क्रिप्ट में कोई किरदार नहीं है। ये सोच मैं थोड़ा दुखी हुआ। तभी मेरी मुलाकात दिलीप कुमार और सायरा बानो से हुई, क्योंकि कास्टिंग उन्हीं के बंगले में चल रही थी। थिएटर आर्टिस्ट जानकर दोनों ने बहुत गर्मजोशी के साथ मुझसे बातचीत की। फिर सब कुछ वहीं खत्म हो गया। जब 29 दिन तक उस शो की टीम से कोई अपडेट नहीं आया तो मैं मन मार कर सोनीपत वापस चल गया। वहां पहुंचे मुझे बस कुछ ही घंटे बीते थे कि कास्टिंग टीम के हेड का कॉल आया। उन्होंने कहा- अनुज तुम परसों आ जाओ, सायरा बानो तुमसे मिलना चाहती हैं। एक कॉल से मन में फिर उम्मीद जागी और उसी रात मैं वापस मुंबई आ गया। अगले दिन जाकर मैंने दिलीप साहब और सायरा जी से मुलाकात की। दिलीप साहब ने राइटर से कह कर कहानी में मेरी पर्सनैलिटी के हिसाब से एक किरदार जुड़वाया।’ काम नहीं मिलने पर टीचर भी बन गया आगे की जर्नी के बारे में अनुज ने बताया, ‘इतने बड़े शो में काम करने के बाद भी संघर्ष खत्म नहीं हुआ। इस शो के बाद कहीं कोई काम ही नहीं मिला। जहां काम मांगने जाता, वहां NOT FIT कहकर वापस भेज देते थे। इस वक्त लोगों की तारीफ भी गालियां लगती थीं। कुछ समय के बाद मैं म्हाडा (MHADA) के एक एक्टिंग इंस्टीट्यूट में पढ़ाने लगा। रहने का आसरा भी मिल गया। हालांकि, कुछ समय बाद ही एहसास हो गया कि ये काम करके मैं खुद के साथ धोखा कर रहा हूं। मात्र यही सोच कर मैंने टीचिंग छोड़ दी और पर्दे पर दिखने के लिए संघर्ष करने लगा। इसके बाद मुझे राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘गो’ में काम मिला। यहां काम मिलना भी किस्मत का ही खेल था। अब 27 साल बाद मुझे हीरामंडी जैसे शो में इतना बेहतर काम मिला है, जिसे दुनिया को बताने की जरूरत नहीं है। ये एक ऐसी सीरीज है, जिसे तब तक याद रखा जाएगा, जब तक सिनेमा का अंत नहीं होगा।’