पीएनबी धोखाधड़ी के आरोपियों की सारी संपत्तियां जब्त करेगी सरकार

मुंबई
सरकार 11,300 करोड़ रुपये के पंजाब नैशनल बैंक धोखाधड़ी केस के आरोपियों की सारी संपत्तियां जब्त करने की दिशा में कदम बढ़ा चुकी है। सरकार नीरव मोदी, उसकी पत्नी अमी मोदी, उसके भाई निशाल मोदी और मामा मेहुल चौकसी से जुड़ी कंपनियों पर भी कब्जा करने जा रही है। गौरतलब है कि सत्यम घोटाला उजागर होने के बाद सरकार ने कंपनी पर कब्जा कर लिया था। हालांकि, जानकारों का मानना है कि पीएनबी केस में इस तरह के कदम से सरकार को कोई बड़ा फायदा नहीं होगा क्योंकि इन कंपनियों से बिजनस नहीं हो रहा।

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शुक्रवार को कंपनी मामलों के मंत्रालय (एमसीए) ने राष्ट्रीय कंपनी कानून प्राधिकरण (एनसीएलटी) में कंपनीज ऐक्ट के सेक्शन 221 और 222 के तहत नीरव मोदी केस से जुड़े उन सभी 64 लोगों और संस्थानों की सारी संपत्तियां जब्त करने के लिए याचिका दाखिल की है, जिनके नाम इस फर्जीवाड़े से जुड़े हैं। इस दायरे में आरोपियों के पारिवारिक सदस्यों के अलावा उनसे जुड़ी कंपनियों के साथ-साथ ट्रस्ट भी आएंगे। याचिका पर अगली सुनवाई 27 फरवरी को होगी।

सरकारी एजेंसियां आरोपियों की जूलरी और कारें जब्त कर चुकी हैं जबकि उनकी अचल संपत्तियों की कुर्की का काम चल रहा है। कंपनी मामलों के मंत्रालय का एनसीएलटी में जाने का मकसद आरोपियों या उनके एजेंटों को अपनी-अपनी प्रॉपर्टी से खुद को अलग करने से रोकना है। मंत्रालय के जॉइंट लीगल डायरेक्टर की ओर से यह याचिका बीएसवी प्रकाश कुमार की अगुवाई वाली एनसीएलटी की बेंच के सामने दायर की गई है।

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कानून के जानकार बताते हैं कि सरकार के पास पीएनबी फर्जीवाड़े के आरोपियों की संपत्तियां जब्त करने का विकल्प है जैसा कि 2009 में सत्यम कंप्यूटर के साथ किया गया था। हालांकि, सरकार को कंपनियों पर कब्जा करने में बड़ा फायदा नहीं होगा क्योंकि इनसे बिजनस नहीं होगा और सिर्फ देनदारियां बढ़ेंगी। सत्यम कंप्यूटर केस में सरकार ने पुराने कंपनीज ऐक्ट के तहत कब्जा किया था। उस वक्त केंद्र सरकार ने कंपनी बोर्ड को भंग करके दीपक पारेख जैसी प्रसिद्ध शख्सियत को कंपनी चलाने के लिए नियुक्त कर दिया क्योंकि तब कंपनी में कामकाज हो रहा था।

जब्त संपत्तियों के बंटवारे का दूसरा रास्ता दिवालियेपन की प्रक्रिया (इन्सॉल्वंसी प्रोसिडिंग्स) शुरू करना हो सकता है। इसमें कर्ज देनेवालों (ज्यादातर बैंकों) का इन संपत्तियों से उगाही गई रकम पर पहला हक होगा। हालांकि, उन्हें इस प्रक्रिया में जिस चुनौती का सामना करना पड़ सकता है, वह यह है कि 11,3000 करोड़ रुपये के लेटर्स ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) जारी करने के एवज में किसी संपत्ति की गारंटी नहीं दी गई थी। साथ ही, इन्सॉल्वंसी प्रोसेस को हर हाल में छह महीने की कठोर समय-सीमा में ही पूरा करना होगा।

कॉर्पोरेट लॉ फर्म अलायंस लॉ के एमडी आर एस लूना ने कहा, ‘किसी अकाउंट के नॉन-परफॉर्मिंग ऐसेट्स घोषित होते ही कर्ज देनेवाला बिना नोटिस के इन्सॉल्वंसी प्रोसिडिंग्स शूरू कर सकता है। इसका प्राथमिक उद्देश्य मामले का निपटान है और अगर इसमें सफलता नहीं मिले तो संपत्ति को बेचने का विकल्प होता है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘एनसीएलटी कोर्ट में इन्सॉल्वंसी प्रोसिडिंग्स का आवेदन स्वीकार किए जाने की कुछ शर्तें हैं। अगर ये शर्तें पूरी हो गईं तो ट्राइब्यूनल इसे स्वीकार कर लेगा।’

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बैंकिंग सूत्रों के मुताबिक, मेहुल चौकसी की कंपनी गीतांजलि जेम्स को सबसे ज्यादा कर्ज देनेवाला आईसीआईसीआई बैंक इन्सॉल्वंसी प्रोसिडिंग्स शुरू कर सकता है। चिंता की एक बात यह है कि कर्मचारियों को अपना-अपना रुख तय करने को कहा गया है क्योंकि सारी संपत्तियां जब्त की जा चुकी हैं। एक कॉर्पोरेट लॉ फर्म के वकील ने बताया, ‘एनसीएलटी में इन्सॉल्वंसी प्रोसिडिंग्स शुरू होने पर कर्जदाता का दावा कर्मचारियों और सरकार, दोनों के दावों पर भारी पड़ेगा।’

लूना के मुताबिक, एक और मुद्दा प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारी जब्त संपत्तियों से जुड़ा है। उन्होंने कहा, ‘सीबीआई कोर्ट की निगरानी में सीबीआई या ईडी ने संपत्तियां जब्त कीं। अब सीबीआई कोर्ट या एनसीएलटी या किसी अन्य कोर्ट को यह तय करना होगा कि इन संपत्तियों पर किसका अधिकार होगा।’ बैंकरों का मानना है कि कंपनी का कोई खरीदार मिलेगा, इसकी संभावना बहुत कम है क्योंकि कुछ रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि संपत्तियों की कीमत बढ़ा-चढ़ाकर आंकी जा रही है।

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