पाकिस्तान से मैच के पहले हम बाहरी दुनिया से बिलकुल कट गए थे: श्रीजेश

जेमी अल्टर, नई दिल्ली
रविवार को भारतीय हॉकी टीम ने देश को दिवाली का शानदार तोहफा दिया। मलयेशिया में खेले गए एशियन चैंपियन्स ट्रोफी हॉकी टूर्नमेंट के फाइनल में टीम ने पाकिस्तान को 3-2 से हराकर खिताब पर कब्जा किया। टीम के कप्तान पीआर श्रीजेश जाहिर तौर पर अपनी टीम के प्रदर्शन से काफी खुश हैं। उनकी खुशी की वजह कामयाबी से इतर बीते 10 दिनों में टीम द्वारा दिखाया गया खेल है। श्रीजेश को भारतीय हॉकी टीम का भविष्य अब सुनहरा नजर आता है।

मंगलवार को मलयेशिया से लौटने के बाद श्रीजेश ने नवभारत टाइम्स से बात की। इस दौरान उन्होंने कई मुद्दों पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि कैसे पाकिस्तान से मुकाबले से पहले उनकी टीम ने खुद को सोशल मीडिया से दूर कर लिया था और कैसे यह उनके करियर की सबेस फिट भारतीय हॉकी टीम है।

करीब एक महीना पहले आपने कहा था कि पाकिस्तान को एशियन चैपियन्स ट्रोफी में हराकर आप इस जीत को सैनिकों को समर्पित करेंगे। ऐसा हुआ भी। आपकी टीम ने एक नहीं दो बार पाकिस्तान को हराया। इतने तनाव भरे मुकाबले की तैयारी करना कितना मुश्किल होता है?

यह एक भावनात्मक मसला है क्योंकि भारत और पाकिस्तान के मुकाबले में भावनाओं का एक ज्वार होता है। आजकल खिलाड़ी मैदान पर अपने खेल पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करते हैं बजाए कि बाहर होने वाली घटनाओं के। इस टूर्नमेंट में हम बाहरी दुनिया से बिलकुल कट गए थे। हमने भावनाओं को खुद पर हावी नहीं होने दिया। इस टूर्नमेंट में खिलाड़ियों का पूरा ध्यान योजनाओं को मैदान पर उतारकर टूर्नमेंट जीतने पर था।

दूसरी बात, हम सोशल मीडिया से दूर रहे क्योंकि जब भी भारत-पाकिस्तान के बीच मुकाबले होते हैं, तो इस बात की आशंका थी कि यहां बहुत सी नकारात्मक चर्चाएं और विवाद चलते रहते हैं। मुझे लगता है कि खिलाड़ियों की तैयारियों के साथ-साथ इस बात ने भी अहम भूमिका निभायी।

इस टीम में कई युवा खिलाड़ी थे, लेकिन उन्होंने मैदान पर परिपक्वता दिखायी। हमने इस टूर्नमेंट में दबदबा बनाए रखा। सात मैचों में से हमने छह जीते और एक मुकाबला ड्रॉ रहा। इससे यह पता चलता है कि एशियाई स्तर पर हमारी टीम कितनी अच्छी है। हमने पाकिस्तान के खिलाफ लीग मैच के दौरान भी ऐसी ही तैयारी की। मैं फाइनल मैच नहीं खेला था और यह मेरे लिए काफी मुश्किल था, लेकिन मुझे टीम पर विश्वास था कि वह खिताब जरूर जीत सकते हैं। इस बात का अहसास कुछ और ही था।

एशियाई स्तर पर यह टीम विपक्षी टीमों से एक पायदान आगे नजर आती है। लेकिन, हम अगर दुनिया की टॉप तीन टीमों- ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और नीदरलैंड, यहां तक कि बेल्जियम को देखें, तो आप भारत को कहां देखते हैं? और आप इस दूरी को कैसे पाटेंगे?
जिन तीन टीमों का आपने जिक्र किया उन्हें हराने में अभी थोड़ा वक्त लगेगा। लेकिन बेल्जियम, इंग्लैंड और अर्जेंटीना को हराया जा सकता है। यह इस पर निर्भर करता है कि उन टीमों के खिलाफ हम उस दिन कैसी तैयारी करते हैं। अगर आप रियो ओलिंपिक को देखें, तो जर्मनी और हॉलैंड के खिलाफ हमारे मुकाबले काफी करीबी रहे, हमने अर्जेंटीना को हराया। इससे पहले हमने चैंपियन्स ट्रोफी के क्वॉर्टर फाइनल में इंग्लैंड को हराया था। हम दुनिया की किसी भी टीम को हरा सकते हैं, लेकिन हमें अपने प्रदर्शन में निरंतरता लानी होगी। ज्यादा बड़े टूर्नमेंट्स में हमें अपना खेल सुधारना होगा। हमें और अनुभव की जरूरत है।

पिछले तीन सालों से हमारी टीम में लगभग वही खिलाड़ी हैं। अगर आप ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, हॉलैंड आदि से इसकी तुलना करें, तो आप देखेंगे कि उनकी टीम में 10 साल से वही खिलाड़ी खेल रहे हैं। इसलिए उनके प्रदर्शन में निरंतरता है। अगर आप एक ही टीम के साथ लंबे समय तक खेलते हैं, तो खिलाड़ियों के बीच आपसी समझ बढ़ती है। ये टीमें मैदान पर उतरने से पहले ही ऐसे बात करती हैं या ऐसे ट्रेनिंग करती हैं जैसे कि वे जीतना चाहती हैं।

हमें टीम की मानसिक दृढ़ता के बारे में कुछ बताइए। पाकिस्तान के खिलाफ आखिरी क्वॉर्टर में टीम ने कोई हड़बड़ाहट नहीं दिखाई जो वह पहले कई बार दिखा चुकी है?
सही बात है। हमारे साथ ऐसा पहले कई बार हो चुका है। खास तौर पर मैच के आखिरी लम्हों में जब हम आगे चल रहे होते थे, तो एक निश्चिंतता का भाव आ जाता था। पूरे मैच में हम अपना 100-200 फीसदी तक देते थे, लेकिन आखिरी मिनटों में यह सोचकर निश्चिंत हो जाते थे कि अब तो मैच खत्म हो गया, लेकिन आधुनिक हॉकी में विपक्षी टीम के लिए गोल करने के लिए इतना वक्त ही काफी होता है। जर्मनी के खिलाफ आखिरी मिनट में हमारे साथ यही तो हुआ। हम रिलैक्स हो गए और उन्होंने हमारे खिलाफ गोल कर दिया। बड़ी टीमों से हमें यही सीखने की जरूरत है। वे विपक्षी टीम को एक सेकंड की रियायत नहीं देतीं। हम जर्मनी से यही सीख रहे हैं। वह अपनी विपक्षी टीम को बिलकुल मौका नहीं देते।

आजकल खेल जितने उच्च स्तर पर खेला जाता है उसमें फिटनेस सबसे जरूरी आयाम है। इस क्षेत्र में आप इस भारतीय टीम को दुनिया की अन्य टीमों के मुकाबले कहां देखते हैं?
मुझे लगता है हम दुनिया की सबसे फिट टीमों में शामिल हैं। मुझे चैंपियन ट्रोफी, ओलिंपिक्स और अब एशियन चैंपियन्स ट्रोफी में इस बात का अहसास हुआ। विदेशी कोचों के आने के बाद चीजें बदलनी शुरू हुईं। हमारी ट्रेनिंग का तरीका बदला, जिससे हमारी फिटनेस में सुधार हुआ। आधुनिक हॉकी में फिटनेस काफी मायने रखती है। आधुनिक हॉकी में खिलाड़ी लगातार बदलते रहते हैं। ऐसे में एक खिलाड़ी को मैदान पर चार या पांच मिनट का वक्त मिलता है और उसके बाद वह ब्रेक लेता है।इन पांच मिनटों में उसे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना होता है। हमने इस पहलु पर काफी मेहनत की है। ट्रेनिंग के दिन हम जिम में काफी पसीना बहाते हैं और अन्य दिनों में काफी दौड़ते हैं, तो मुझे लगता है कि हम दुनिया की सबसे फिट टीमों में शामिल हैं।

एक ऐसी टीम, जहां कोच अंग्रेजी बोलता है, लेकिन खिलाड़ी देश के अलग-अलग हिस्सों से आते हैं, जो अंग्रेजी में इतने सहज नहीं हैं, ऐसे में संवाद कैसे होता है?
हां कुछ समस्या होती है, लेकिन हमारे पास ट्रांसलेटर है। पूर्व खिलाड़ी तुषार (खांडेकर) जो टीम के कोचिंग स्टाफ का हिस्सा हैं और अन्य सीनियर खिलाड़ी हमारी मदद करते हैं। हमारी एक सामान्य भाषावली है, जिसे सब समझते हैं। हां मैच के दौरान कुछ मुश्किलें होती हैं, जब क्वॉर्टर ब्रेक में कोच हमें कुछ समझाते हैं। इस दौरान कुछ खिलाड़ियों को कोच की बात समझने में ज्यादा वक्त लगता है। लेकिन कुछ बड़े खिलाड़ी यह सुनिश्चित करते हैं कोच की बात सब खिलाड़ियों को समझ आ जाए।

टीम में माहौल कैसा है?
अब हम समझते हैं कि हमें टीम के तौर पर सोचना होगा। आप व्यक्तिगत खिलाड़ियों पर फोकस नहीं कर सकते। हमारी मानसिकता बदल चुकी है। हमें मानते हैं कि टीम के तौर पर ही हम जीत सकते हैं। व्यक्तिगत टूर्नमेंट नहीं जीत सकते, बशर्ते वह गोलकीपर न हो। जहां तक खिलाड़ियों की बात है वह आपको मैच तो जिता सकते हैं, लेकिन टूर्नमेंट नहीं। एक शानदार मूव आपको मैच तो जिता सकता है। लेकिन हमारा ध्यान पूरी टीम पर है। हमारी आपस में अच्छी पटती है और मुझे लगता है सब खिलाड़ी खुश हैं।

आपकी टीम में सरदार सिंह और रुपिंदर सिंह जैसे उत्तर भारतीय खिलाड़ी हैं। आपकी टीम में निखिल थिमैया और एस के उथप्पा जैसे कई दक्षिण भारतीय भी हैं। कुछ खिलाड़ी उत्तर-पूर्व से भी हैं। ये सब खिलाड़ी आपस में बात कैसे करते हैं। क्या आपकी फैमिली गेदरिंग भी होती है?

आम तौर पर हम उत्तर भारत में खेलते हैं। खिलाड़ियों के परिवार उनसे मिलने होटल आते हैं पर हम उनके कमरों में नहीं जाते। हम साथ फिल्म देखने जाते हैं या बीच पर घूमते हैं। रिकवरी सेशन्स के दौरान भी हम फन गेम्स में भाग लेते हैं। हम आपस में हॉकी के अलावा भी बहुत बात करते हैं।

टीम के तौर पर सिर्फ हिन्दी या इंग्लिश में ही बात करते हैं। हर खिलाड़ी हिन्दी समझता है। बेशक, पांच या छह पंजाबी खिलाड़ी बाहर जाएं, तो वे पंजाबी में बात करते हैं, लेकिन टीम के तौर पर हम ऐसी ही भाषा बोलते हैं, जो सब समझ सकें।

युवाओं में सबसे ज्यादा प्रभावित किसने किया?
अफान युसूफ और ललित उपाध्याय में काफी आगे जाने की प्रतिभा है। अब यह इस बात निर्भर करता है कि वह मैदान पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कैसे करते हैं।

विदेशी कोचों के साथ टीम का संबंध कैसा है? टीम को सबसे ज्यादा पसंद कौन रहा है?
हर कोच अलग होता है। जोस ब्रासा बुनियाद सुधारने पर काम कर रहे थे और उन्होंने कोचिंग को उसी रूप में लिया। शुरुआत में वह थोड़ा सख्त थे, लेकिन मैदान पर वह काफी शांत नजर आते थे। टीम के तौर पर हम ब्रासा, टैरी वॉल्श और रॉलंट ऑल्टमंस के काफी करीब हैं। टैरी की कोचिंग में हमने कड़ी मेहनत की। शुरुआती ट्रेनिंग पीरियड सबसे मुश्किल था, लेकिन जब हम उसके आदी हो गए हमें उसका बहुत फायदा हुआ। रॉलंट के साथ भी ऐसा ही है। तो, मैंने जितने कोचों के अंडर खेला है, उनमें इन तीनों को बेस्ट कहूंगा।

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