पढ़ें: चीन की मंदी से जुड़ीं कुछ जरूरी बातें

हफ्ते की शुरुआत एशियाई बाजारों के लिए अच्छी नहीं साबित हो रही है। शंघाई कम्पोजिट 7.25 फीसदी गिरकर 3,270 के स्तर पर आ गया। चीन के बाजार में हाहाकार मचा हुआ है। चीन में मंदी की आशंका से पूरी दुनिया चिंतित है। आइए चीन के इस हालात पर एक नजर डालें…

शेयर के गिरने पर क्या कदम उठा रहा चीन?

जुलाई की शुरुआत में सरकार ने सीएसफ को सरकार के नाम पर शेयर खरीदने को प्रोत्साहन दिया। चीन ने रविवार को आश्चर्यजनक तौर पर एक बड़ा कदम उठाते हुए अपने 547 अरब डॉलर के पेंशन फंड को उतार-चढ़ाव भरे दौर से गुजर रहे देश के स्टॉक मार्केट में लगाने की मंजूरी दे दी। चीनी सरकार का यह दांव भी सफल होता नहीं दिख रहा है।

चीन मार्केट और करंसी वॉर का सच

सोमवार को भी शंघाई स्टॉक मार्केट में गिरावट का दौर जारी रहा। यूआन भी डॉलर के मुकाबले कमजोर होने की आशंकाएं लगातार बनी हुईं हैं। 2015 के सभी लाभ उस वक्त धुल गए जब यह गिरावट बीते साल 31 दिसंबर से भी ज्यादा बड़ी रही। सरकार और उसकी टीम के अथक प्रयासों के बाद भी हालात काबू में नहीं हो रहे हैं, विशेषज्ञ कह रहे हैं कि शेयर्स के दामों में गिरावट का दौर जारी रहेगा।

क्यों उदासी पैदा कर रहे हैं हालात?

बीते साल चीन की इकॉनमी बढ़कर 7.4 प्रतिशत हो गई थी। सबसे खराब दौर 1990 में रहा। इस साल रफ्तार थमी, जो कि 7.0 प्रतिशत दोनों क्वॉर्टर तक रही। हालांकि यह किसी भी देश से बेहद बेहतर आंकड़ा है। चीन की जीडीपी फिगर भी सरकार के पूरे साल के टारगेट के लगभग 7 प्रतिशत है। चीन पर यह भी बाहरी तौर पर आरोप लग रहा है कि स्लोडाउन के वक्त सरकार ‘मनचाहे’ कदम उठा रही है।

घरेलू तौर पर समस्याएं क्या?

विशेषज्ञ मान रहे हैं कि चीन की सत्तारूढ़ पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी को आर्थिक, सामाजिक तौर पर कदम उठाने होंगे। इस बात से छवि पर भी सवाल उठ रहे हैं कि क्या चीन जैसे मजबूत देश पर भी भरोसा डगमगाएगा या बना रहेगा।

अंतरराष्ट्रीय तौर पर क्या समस्या

यूरोप की कमजोर आर्थिक स्थिति और अमेरिका का ब्याज दर बढ़ाने का नजरिया दुनिया भर की आर्थिक हालत बयां कर रहा है। वॉल स्ट्रीट में फैल रहे बाजार के असहज हालात ने सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या दुनिया मंदी की चपेट में आ सकती है?

क्या यह डर वाजिब है ?

हालांकि यह डर वाजिब है या नहीं, इस पर विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है। हालिया डर तब भी पैदा हुआ जब शुक्रवार को एक सर्वे ने इंडिकेट किया कि मैन्युफैक्चरिंग ऐक्टिविटी 7 साल के निचले स्तर पर आ गया।

करंसीज की वैल्यू घटाने की होड़ का एक असर यह भी हुआ कि लगभग सभी दूसरी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर कुछ मजबूत हुआ। अब तक एक अपवाद चाइनीज यूआन के रूप में था लेकिन पिछले सप्ताह चीन ने भी इसकी वैल्यू 3 फीसदी घटा दी।

कुछ एक्सपर्ट्स को डर है कि आने वाले महीनों में इसमें 10 फीसदी गिरावट आ सकती है। उन्हें डर है कि चीन अपनी सुस्त होती इकॉनमी को रिवाइव करने के लिए एक्सपोर्ट बढ़ाना चाहता है। चीन 7 फीसदी जीडीपी ग्रोथ हासिल करने का दावा कर रहा है लेकिन बिजली की खपत, मैन्युफैक्चरिंग ऑर्डर्स और रेलवे फ्रेट पर नजर रख रहे अनालिस्ट्स का कहना है कि ग्रोथ महज 5 फीसदी रह सकती है।

उनका कहना है कि इससे कम्युनिस्ट पार्टी में घबराहट फैल गई है, जिसका मानना है कि इकनॉमिक ही नहीं, पॉलिटिकल स्टेबिलिटी के लिए भी तेज ग्रोथ जरूरी है।

कुछ भारतीय विश्लेषक भी रुपए की वैल्यू काफी ज्यादा घटाने की आवाज उठा रहे हैं। हालांकि सी रंगराजन, प्राची मिश्रा, साजिद चिनॉय और जहांगीर अजीज ने जो स्टडीज की हैं, उनसे पता चलता है कि इंडियन एक्सपोर्ट ग्रोथ का एक्सचेंज रेट से मजबूत ताल्लुक नहीं है और यह काफी हद तक ग्लोबल ग्रोथ से जुड़ी है।

लिहाजा जैसे ग्लोबल ट्रेंड दिख रहे हैं, उसमें रुपए की वैल्यू घटाने से इंडियन एक्सपोर्ट्स का रिवाइवल नहीं होगा।

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