पंचायत के ‘प्रहलाद चा’ कभी स्टेशन पर सोते थे:खाने में खूब मिर्ची डालते थे ताकि जल्दी पेट भरे; कोविड में पिता की मौत से टूटे
|‘पंचायत’ के प्रहलाद चा यानी फैसल मलिक। यह नाम पिछले कुछ दिनों से काफी चर्चा में है। हो भी क्यों न, ‘पंचायत’ के तीसरे सीजन में अपनी संजीदा अदाकारी से इन्होंने सबका दिल जीत लिया है। ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ जैसी फिल्म में चंद मिनट का रोल करने वाले फैसल मलिक आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। हालांकि सफलता की सीढ़ी इन्होंने आसानी से नहीं चढ़ी है। इसके लिए इन्हें काफी स्ट्रगल भी करना पड़ा है। उनकी संघर्ष की कहानी जानने के लिए हम मुंबई के अंधेरी वेस्ट के यारी रोड स्थित उनके घर पहुंचे। हमने रिंग बजाई तो दरवाजा भी उन्होंने ही खोला। हाय-हैलो हुआ, उन्होंने कहा कि पहले नाश्ता करिए फिर इंटरव्यू करेंगे। फैसल ने कहा कि वे हम लोगों का वेट कर रहे थे कि जब आएंगे तो साथ ही नाश्ता करेंगे। उन्होंने हमें खाने की टेबल पर बिठाया। खाने को बहुत कुछ था तो समझ नहीं आया कि स्टार्ट कहां से करें। मेरे साथ मेरे एक सहयोगी और दो कैमरामैन भी थे। मैंने एकाध सैंडविच लिया और एक गिलास तरबूज का जूस पिया। लगभग 10 मिनट बाद हम उठे। कैमरामैन ने फैसल को माइक पहनाया। इसके 5 मिनट बाद हमने इंटरव्यू शुरू कर दिया। फैसल ने कहा कि मुंबई आने के बाद उन्हें रहने-खाने की सबसे ज्यादा दिक्कत हुई थी। खाने को पैसे नहीं होते थे। किसी तरह एक टाइम के खाने का जुगाड़ हो जाता था। खाने में खूब मिर्ची भर देते थे और कई गिलास पानी पी लेते थे, जिससे कि कम खाने में ही पेट भर जाए। फैसल ने बताया कि फिल्मों में आने से पहले वे एक टीवी चैनल में बतौर वीडियो एडिटर कार्यरत थे। उनसे 20-20 घंटे काम कराया जाता था। एक बार पैर टूटने के बावजूद वे काम करते रहे थे। तो चलिए फैसल की संघर्ष की कहानी, उन्हीं की जुबानी सुनते हैं… फिल्म देखने पर घरवालों से मार पड़ती थी फैसल मलिक का जन्म इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था। बचपन के दिनों के बारे में फैसल ने बताया, ‘आम बच्चों की तरह मेरा बचपन भी सामान्य बीता। कभी नहीं सोचा था कि बड़ा होकर एक्टर ही बनूंगा। हां, फिल्में देखना बहुत पसंद था, लेकिन परिवार वालों को मेरी यह आदत बिल्कुल रास नहीं आती थी। इस कारण मैं छिप-छिप कर फिल्में देखता था। कई बार तो मेरी यह चोरी पकड़ी भी गई, मार भी बहुत पड़ी। कई दफा मार खाने के बाद भी फिल्में देखना बंद नहीं किया।’ फैसल ग्रेजुएशन (B.Sc) पूरी करने से पहले ही मुंबई जाकर एक्टर बनना चाहते थे, लेकिन घरवाले उनके फैसले के खिलाफ थे। इस बात को लेकर घरवालों से बहुत ज्यादा बहस भी हुई। तब इस कंडीशन में बड़े भाई ने उनका साथ दिया और मुंबई स्थित अपने दोस्त के यहां फैसल को भेज दिया। बाद में मां और पिता भी उन्हें सपोर्ट करने लगे। संघर्ष क्या होता है, मुंबई पहुंचकर पता चला इस सफर के बारे में फैसल कहते हैं, ‘मैं 22 साल की उम्र में मुंबई आया। यहां BKC (मुंबई का एक एरिया) में भाई के दोस्त के घर में रहता था। शुरुआत में तो सबको लगता है कि मुंबई आने पर महानायक अमिताभ बच्चन ही बन जाएंगे। हालांकि यहां रहने के बाद असलियत पता चलती है। मुंबई पहुंचने के बाद मैं किशोर नमित कपूर एक्टिंग इंस्टीट्यूट में एक्टिंग कोर्स करने लगा। हालांकि 3 महीने बाद ही एहसास हो गया कि ये आसान दिखने वाला काम बिल्कुल भी आसान नहीं है। फीस से लेकर रहने और खाने का भी इंतजाम करना था। घर से ज्यादा पैसे मांगना सही नहीं लगा। इस वजह से मैंने कुछ काम करने का फैसला किया।’ पहली सैलरी महज 700 रुपए प्रति महीना थी फैसल ने बताया कि जब वे मुंबई आए थे, तब अब्बू उन्हें हर महीने का खर्च भेजते थे, लेकिन इलाहाबाद की तुलना में मुंबई का खर्च बहुत ज्यादा था। वे लंबे समय तक अब्बू पर बोझ नहीं बनना चाहते थे, इसलिए उन्होंने कमाना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा, ‘सबसे पहले मैंने सहारा इंडिया में बतौर टेप लॉगिन करने का काम किया जिसे आमतौर पर इंटर्न करते हैं। यहां मुझे सबसे निचले स्तर का काम मिला था। इस काम के दौरान मुझे सैकड़ों वीडियो टेप से घंटों मेहनत करके कुछ खास तरीके के विजुअल निकालने होते थे। फिर कुछ समय बाद मैं रात में दोस्त की मदद से एडिटिंग सीखने लगा। 2-3 महीने में पूरा काम सीख लिया था। एक दिन खुद से प्रोमो कट किया, एडिट किया और सर को दिखाया। मेरा काम देख वो बहुत खुश हुए और टेप चिपकाने की जगह प्रोमो कट करने का काम मिल गया। पहली सैलरी की बात करूं तो मुझे 700 रुपए प्रति महीना मिलते थे, फिर 1300 रुपए और बाद में 3200 रुपए प्रति महीना मिलने लगे। सहारा में काम करने के बाद जी सिनेमा और स्टार वन में भी काम किया था।’ जब 20 फीट से नीचे गिरने पर पैर टूट गया फैसल ने बताया कि वे काम को लेकर बहुत जुनूनी थे। इतने कि 5-6 दिन लगातार ऑफिस में रहकर काम करते थे। उनका यही जुनून एक दिन उन पर भारी पड़ गया। ये बात उस वक्त की है, जब वे किसी प्रोजेक्ट में बतौर एसोसिएट प्रोड्यूसर काम कर रहे थे। यहां उन्हें 20-20 घंटे काम करना पड़ता था। एक दिन वे लगातार कई घंटों से काम कर रहे थे। तभी 20 फीट की ऊंचाई पर जाकर कैमरे में सीन देखने लगे। उन्हें इतना भी ध्यान नहीं रहा कि वे 20 फीट ऊपर हैं और तभी अचानक नीचे गिर गए। इस हादसे में उनका पैर भी टूट गया। हालांकि इसका असर उन्होंने अपने काम पर नहीं पड़ने दिया। अस्पताल जाकर प्लास्टर लगवाने के बाद वे दोबारा रात में एडिटिंग करने पहुंच गए। कई रातें बिना खाए गुजारीं, सड़क और स्टेशन पर भी सोना पड़ा आम स्ट्रगलर्स की तरह फैसल को भी मुंबई में खाने-रहने की दिक्कत हुई। उन्होंने कहा, ‘जब पैसों की तंगी थी, तब पूरा दिन बिना खाए गुजार देता था ताकि बचत की जा सके। खाने में मिर्च डालकर खाता था और खूब पानी पीता था। ऐसा करने से कम खाने में ही पेट भर जाता था। बहुत लंबे समय तक भाई के दोस्त के घर नहीं रह सकता था। हालात ऐसे भी बने कि कई रात सड़क पर गुजारनी पड़ी। स्टेशनों पर भी सोना पड़ा। खैर ये सारी चीजें एक्सपीरियंस के लिहाज से बहुत जरूरी होती हैं।’ ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में लाइन प्रोड्यूसर थे, किस्मत से मिल गया रोल एडिटिंग फील्ड से जुड़ने के बाद फैसल ने एक्टिंग में जाने के बारे में बिल्कुल नहीं सोचा था, लेकिन एक इत्तफाक ने उनका परिचय एक्टिंग से करा दिया। फैसल कहते हैं, ‘मैं अनुराग कश्यप की फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में लाइन प्रोड्यूसर था। इलाहाबाद में सिर्फ 4 दिन की शूटिंग के लिए बहुत मुश्किल से एक लोकेशन फाइनल हुई थी। फिल्म में इंस्पेक्टर गोपाल सिंह का किरदार जो शख्स निभा रहा था, वो शूटिंग के पहले दिन आया ही नहीं। तब मुझसे यह रोल करने के लिए कहा गया। पहले लगा कि 1-2 सीन का रोल होगा, इसलिए मैंने हामी भर दी। बाद में पता चला कि इस कैरेक्टर का लंबा स्क्रीन स्पेस है। उस दिन एक दिलचस्प वाकया भी हुआ। जो शख्स पहले यह रोल करने वाला था, वो मुझसे थोड़ा दुबला-पतला था। प्रोडक्शन टीम ने उसी के हिसाब से वर्दी सिलवाई थी। तुरंत दूसरी वर्दी की व्यवस्था करने में शूटिंग बहुत लेट हो जाती। मजबूरी वश मैंने किसी तरह वो वर्दी पहनी, लेकिन पैंट फट गई। उसे दोबारा सिला गया, जिसके बाद मेरा शॉट कम्प्लीट हुआ।’ फैसल ने बताया कि फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के बाद उनके पास सिर्फ पुलिस ऑफिसर के रोल आते थे। उन्होंने एक-दो ऑफर को स्वीकार भी कर लिया था, लेकिन खराब कहानी की वजह से अधिकतर को ठुकरा देते थे। इसके बाद फैसल को 2-3 फिल्म और 4-5 सीरीज में देखा गया। ‘पंचायत’ के प्रहलाद चा के किरदार के लिए बहुत वजन बढ़ाना पड़ा फिर फैसल की झोली में ‘पंचायत’ सीरीज गिरी, जिससे वे घर-घर में प्रहलाद चा के नाम से फेमस हुए। ‘पंचायत’ के तीसरे सीजन में फैसल ने एक अलग छाप छोड़ी है। पिछले दो सीजन में मस्ती मजाक करने वाले प्रहलाद चा का किरदार इस सीजन में रुला देने वाला है। फैसल ने बताया कि सीरीज के डायरेक्टर दीपक कुमार मिश्रा ने उन्हें ध्यान में रखकर ही प्रहलाद चा का किरदार लिखा था। इस तरह से वे ऐसे एक्टर रहे जिनकी कास्टिंग सीरीज के लिए सबसे पहले हुई। बाकी सभी की कास्टिंग बाद में हुई थी। इस रोल में ढलने के लिए उन्होंने बॉडी ट्रांसफॉर्म भी किया है। इस बारे में उन्होंने कहा, ‘मेकअप वगैरह कुछ नहीं था। रोल के लिए मैंने काफी ज्यादा वजन बढ़ाया है। दिन भर में सिर्फ दो घंटे सोता था। स्लीप साइकल बदलने की वजह से मैंने काफी वजन बढ़ा लिया। मेकअप वगैरह करके भी देखा था, लेकिन उसमें वो फील नहीं आ रहा था।’ कोविड में पिता की मौत से टूट गए थे ‘पंचायत’ के तीसरे सीजन में फैसल का किरदार पहले की तुलना में थोड़ा संजीदा है। वजह यह है कि दूसरे सीजन में फैसल के ऑन-स्क्रीन बेटे का निधन हो जाता है। इसके बारे में वे कहते हैं, ‘मौत एक कड़वा सच है। यह कभी न कभी सबकी जिंदगी में घटित होना ही है। कोविड के दौरान मेरे पिता का निधन हो गया। मेरे करीबी दोस्त भी गुजर गए। ‘पंचायत’ में इमोशनल सीन्स की शूटिंग के वक्त मुझे उनका ख्याल आता था। शायद इस वजह से एक्टिंग काफी नेचुरल लगी है। मैंने जो भी किया है, वो सब खुद से ही किया है। जो मेरे अंदर से निकल रहा था, वही स्क्रीन पर भी दिख रहा था।’ ये बात बताते हुए फैसल थोड़े भावुक भी हो गए। उनकी आंखों में मैंने नमी भी देखी। आने वाले प्रोजेक्ट्स के बारे में फैसल ने कहा कि वे 3-4 फिल्मों और 2-3 वेब सीरीज में दिखाई देंगे। इस लिस्ट में जो तेरा है वो मेरा, सब फर्स्ट क्लास जैसी फिल्मों का नाम शामिल है।