नेपाल में कानूनी ऐक्शन से बचने के लिए माओवादियों की रणनीति
|नेपाल के चार अलग-अलग माओवादी संगठनों ने अपने धड़ों को एकजुट करने का फैसला किया ताकि गृह युद्ध के दौरान के अपराधों को सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में लाने के कदम का विरोध किया जा सके। इन संगठनों ने यह फैसला इसलिए किया है क्योंकि इन्हें डर है कि मानवाधिकारों के हनन को लेकर इनके शीर्ष नेताओं और कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।
यूसीपीएन-माओवादी के अध्यक्ष प्रचंड और सीपीएन-माओवादी के कट्टरपंथी अध्यक्ष मोहन वैद्य ने सुप्रीम कोर्ट को गृह युद्ध के दौरान के अपराधों को अपने अधिकार क्षेत्र में लाने देने के कदम का विरोध किया है । छह अलग-अलग माओवादी धड़े मांग करते रहे हैं कि गृह युद्ध काल के दौरान मानवाधिकारों के हनन के सभी मामले सत्य एवं मेलमिलाप आयोग (टीआरसी) और प्रवर्तित लापता व्यक्ति संबंधी जांच आयोग की ओर से निपटाए जाने चाहिए।
करीब एक दशक लंबे उग्रवाद के दौरान 16,000 से ज्यादा लोग मारे गए थे। इसमें हजारों लोग विस्थापित भी हुए थे। साल 1996 में शुरू हुआ उग्रवाद 2006 में खत्म हुआ था जब माओवादियों ने तत्कालीन सरकार के साथ एक शांति समझौते पर दस्तखत किए थे। यूसीपीएन-माओवादी के वरिष्ठ नेता नारायणकाजी श्रेष्ठ ने कहा, ‘अदालत भगवान नहीं है। इसे नेपाली समाज, कानून और शांति प्रक्रिया की भावना के मुताबिक फैसला सुनाना चाहिए।’ सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, टीआरसी को गृह युद्ध के दौरान हुए मानवाधिकार हनन के मामलों की जांच करने से रोक दिया गया है।
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