निदा फाज़ली कबीर परम्परा के हीरे

निदा फाज़ली की मृत्यु से भारतीय साहित्य की महान कबीर परम्परा का एक और किला ढह गया। मध्य प्रदेश के ग्वालियर नगर में पले थे। एक बार उनका पुश्तैनी घर ढह गया और परिवार ने पाकिस्तान जाने का फैसला किया, परन्तु निदा ने जाने से इन्कार कर दिया। वे भारत की मिट्‌टी से बेहद प्रेम करते थे और गुजश्ता वर्षों में समाज में व्याप्त असहिष्णुता से जरा भी विचलित नहीं थे। उनका विश्वास था कि यह दौर भारतीय समाज का ‘स्थायी’ नहीं है और गुजर जाएगा। उनका ठेठ भारतीयपन उनकी शायरी में भी मुखर हुआ है।  जब 1977 में मैंने निदा फाज़ली को अपनी चार फिल्मों में गीत लिखने के लिए अनुबंधित किया, तब संगीतकार राहुल देव बर्मन को नए गीतकार के साथ काम करने में संकोच हो रहा था। मेरे आग्रह पर राहुल ने एक मुश्किल बंदिश हारमोनियम पर प्रस्तुत की और निदा फाज़ली से बोले कि आप इसे टेप कर लें और कल कुछ तैयारी के साथ आएं। निदा फाज़ली ने विनम्रता से कहा कि उनके पास टेप रिकॉर्डर नहीं है और उन्होंने बहर पकड़ ली है। उन्होंने कहा कि इस बहर पर में ये बोल सकते हैं ‘तेरे लिए पलकों की झालर बुनूं, जुल्फों में गजरे सा…

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