धुंधली नजर के पार एक किताबी दुनिया
|राहुल सांकृत्यायन को याद करता हूं, कभी कॉमरेड रहे, कभी बौद्ध हुए, कभी आर्य समाजी। किसी एक जगह रहने से क्या उनका जीवन इतना विराट बन पाता क्या भला? जिधर से छोड़ कर जाएंगे, वहां तो अवसरवादी या व्यक्तिगत हितों के कारण पाला बदलने वाला ही कहा जाता है।
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