देश प्रदेश में बीजेपी अव्वल, शहर में फिसड्डी, अब यूनिवर्सिटी में हारी
|लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अपना परचम लहराने वाली बीजेपी वेस्ट यूपी के शहरों में कमजोर पड़ती दिख रही है। वेस्ट यूपी में निकाय चुनाव के बेहतर प्रदर्शन नहीं करने वाली भगवा ब्रिगेड (एबीवीपी) को चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ चुनाव में युवाओं ने खास पसंद नहीं किया। उसे एक पखवाड़े के भीतर ही दूसरी हार का सामना करना पड़ा है। निकाय चुनाव में वोटरों की कसौटी पर फेल एसपी को भी यूनिवर्सिटी के चुनाव में युवाओं ने फिर रिजेक्ट कर दिया। लगातार दो हार का मुद्दा शनिवार को लखनऊ में अखिलेश यादव के सामने भी उठा।
2014 के लोकसभा चुनाव में वेस्ट यूपी में लोकसभा की सारी सीटों पर बीजेपी ने कब्जा किया था। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी वेस्ट यूपी की चंद सीटों को छोड़कर भगवा ब्रिगेड का ही परचम लहराया। हाल में हुए निकाय चुनाव में खुद सीएम योगी आदित्यनाथ ने प्रचार की कमान अपने हाथ रखी। वेस्ट यूपी के सहारनपुर, मेरठ, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद में सभाएं की। भले ही बीजेपी ने 16 में से 14 नगर निगम में मेयर जीत लिए हों लेकिन वेस्ट यूपी में दो मेयर, नगर पालिका और नगर पंचायत के ज्यादातर चेयरमैन और अध्यक्ष गैर बीजेपी दलों के ही जीते।
बीजेपी यहां हार की वजह को अभी पूरी तरह तलाश नहीं सकी और एक पखवाड़े बाद ही करीब 900 कॉलेजों प्रतिनिधित्व करने वाली मेरठ की चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी के छात्र संघ के चुनाव में फिर हार का सामना करना पड़ा। शुक्रवार को देर शाम आए परिणाम में अध्यक्ष पद पर आरएलडी-एनएसयूआई के संयुक्त प्रत्याशी ने जीत दर्ज की। दो सीट पर एसपी छात्र सभा और दो पर एबीवीपी जीते।
जानकारों का मानना है कि युवाओं में लोकसभा और विधानसभा चुनाव मे सोशल मीडिया के माध्यम से पैठ बनाने वाली बीजेपी छात्र संघ चुनाव में उनको रिझाने में नाकाम रही है। आरएलडी के प्रदेश प्रवक्ता सुनील रोहटा का कहना है कि युवाओं को बीजेपी ने केंद्र और प्रदेश में सरकार होने के बाद भी रोजगार नहीं दिया इसलिए उनकी बदली सोच 2019 में बीजेपी को सबक सिखाएगी। छात्र संघ के चुनाव में प्रशासन ने एबीवीपी का खुला साथ दिया। चुनाव अगर निष्पक्ष होता तब परिणाम अलग होते।
एसपी छात्र सभा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अतुल प्रधान का कहना है कि युवा अब बीजेपी की असलियत समझ रहे हैं, तभी वेस्ट यूपी में निकाय चुनाव में हराया और अब यूनिवर्सिटी के चुनाव में असलियत दिखा दी। आगे के चुनाव में भी युवा बीजेपी से दूरी बनाकर रखेगा। बीजेपी के वेस्ट यूपी प्रवक्ता लोक सिसौदिया का कहना है कि छात्र राजनीति में बीजेपी सीधे तौर पर शामिल नहीं थी। फिर भी महामंत्री समेत दो बड़े पद एबीवीपी ने जीते हैं। यूनिवर्सिटी, निकाय और लोकसभा-विधानसभा के चुनाव अलग अलग मुद्दों पर लड़े जाते हैं।
निकाय में यह रही थी स्थिति
केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह के संसदीय क्षेत्र बागपत में आठ नगर पालिका और नगर पंचायत चेयरमैन और अध्यक्ष के चुनाव में सात पर बीजेपी हारी। सिर्फ एक बडौत में छात्र नेता अमित राणा उर्फ दुष्यंत जीत सके। प्रदेश के गन्ना मंत्री सुरेश राणा के गृह जनपद शामली की 10 नगर पालिका और नगर पंचायत में से नौ पर बीजेपी हारी। मंत्री के क्षेत्र की थानाभवन सीट पर भी बीजेपी का कमल नहीं खिला। सिर्फ एक बनत पर बीजेपी जीत दर्ज कर पाई। मेरठ में बीजेपी के सांसद और सात में छह एमएलए होने के बाद भी नगर निगम के मेयर और 17 में से 16 नगर पालिका और नगर पंचायतों में हार का सामना करना पड़ा। सिर्फ एक परीक्षितगढ़ को ही बीजेपी जीत सकी। बुलंदशहर जिले में सात एमएलए बीजेपी के होने के बाद भी वहां की 17 नगर पालिका और नगर पंचायतों में से बीजेपी सिर्फ चार जीत सकी, 13 पर हार हुई। बिजनौर में 18 में से सिर्फ तीन पर बीजेपी जीती और 15 पर हारी थी।
एबीवीपी की नजर अब कॉलेज के छात्र संगठन चुनाव पर
एबीवीपी ने यूनिवर्सिटी में अपने हक में बेहतर परिणाम नहीं आने के बाद अब कॉलेजों में होने वाले चुनाव पर फोकस करना तय किया है। यूनिवर्सिटी से संबंधित कॉलेजों में चुनाव प्रोग्राम घोषित हो गया है। मेरठ में 18 दिसंबर को मतदान होगा। एबीवीसी चाहती है कि अब ज्यादा से ज्यादा कॉलेजों में उसका कब्जा हो। इसके लिए एबीवीपी ने हर कॉलेज में चुनाव कमिटी का गठन किया है जहां पुराने छात्र नेताओं के मार्गदर्शन में मौजूदा टीम चुनाव लड़ेगी।
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