दलितों के आक्रोश ने छीनी नसीमुद्दीन सिद्दीकी की कुर्सी
|BSP के कद्दावर नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी के खिलाफ विधानसभा चुनाव से पहले से ही वेस्ट यूपी में गुस्सा धधक रहा था। दबी जवान में लोग विरोध करते थे लेकिन BSP मुखिया के करीबी होने की तमगा लगा होने के कारण आवाज दब जाती थी। हाल के विधानसभा चुनाव में पार्टी हारी तो कार्यकर्ताओं, खासकर दलितों के सब्र का बांध टूट गया। दलित कार्यकर्ताओं ने ज्यादातर जिलों में नसीमुद्दीन सिद्दीकी और दलालों से BSP को मुक्त कराने की मांग को लेकर जगह-जगह विरोध प्रदर्शन किया। सिद्दीकी के पुतले फूंके। पैसे लेकर खुलेआम टिकट बांटने के आरोप लगाए।
सड़कों पर उतर आए थे दलित
BSP के विधानसभा चुनाव हारने के बाद मेरठ, गाजियाबाद, हापुड़, मुजफ्फरनगर, सहारनरपुर, बिजनौर, मुरादाबाद और संभल में सिद्दीकी के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर आए थे। हालात ऐसे हो गए थे कि सिद्दीकी वर्करों का सामना करने के बजाए बिना मीटिंग किए या बीच में छोड़कर भागने लगे थे। सिद्दीकी पर पैसे लेकर टिकट बेचने, खासकर मुस्लिमों से ज्यादा पैसे लेकर टिकट देने, दलित कार्यकर्ताओं की बेइज्जती करने, मीट कारोबारियों से संबंध बनाने, मायावती और पार्टी को बदनाम करने के आरोप लगे थे।
मेरठ में इस मुद्दे पर दो बार पार्टी कार्यकर्ताओं में मारपीट तक हुई, FIR हुई। तभी माना जाने लगा था कि सिद्दीकी की वेस्ट की राजनीति की पारी के अंत की शुरआत हो गई। मायावती ने एक माह पहले नसीमुद्दीन सिद्दीकी से पहले वेस्ट यूपी के प्रभारी का पद छीना फिर उत्तराखंड के प्रभारी से पैदल कर दिया। बाद में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के संगठन भेज दिया। और अब पार्टी से ही निकाल दिया। मजे की बात यह है कि जितने आरोप वेस्ट यूपी के कार्यकर्ताओं ने सिद्दीकी पर लगाए थे, उनको ही पार्टी ने आधार मानकर सिद्दीकी के खिलाफ कार्रवाई की।
जांच रिपोर्ट के बाद कार्रवाई
BSP सूत्रों की मानें तो सिद्दीकी के खिलाफ कारर्वाई होने में दो माह का वक्त लंबी जांच रिपोर्ट तैयार करने में लगा। इस रिपोर्ट को चार आधार पर परखा गया। पहला BAMCEF (ऑल इंडिया बैकवर्ड ऐंड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एंप्लॉयीज फेडरेशन) ने वेस्ट यूपी के हर जिले से कार्यकर्ताओं की राय जानी। आरोपों पर गांव-गांव जाकर बात की। प्रत्याशियों से पार्टी फंड में दिए गए पैसे और पार्टी में जमा धनराशि की मिलान किया गया। यह रिपोर्ट सीधे तौर पर सिद्दीकी के खिलाफ रही।
दूसरी रिपोर्ट के बारे में बताया गया है कि वेस्ट यूपी में तैनात रह चुके मायावती के करीबी दलित IPS ने भी पुलिसिया तरीके से जांच की और कार्यकर्ताओं के आरोपों को सही पाया। यह रिपोर्ट BAMCEF की रिपोर्ट से भी मेल खाती दिखी।
तीसरी रिपोर्ट संगठन से जुड़े लोगों ने तैयार की। इसमें अभी तक वेस्ट यूपी में संगठन देखने वाले और हाल में राज्यसभा सांसद चुने गए पदाधिकारी की रिपोर्ट रही। बूथ लेवल से लेकर मंडल कोऑर्डिनेटरों, पूर्व पदाधिकारियों से अलग-अलग बात कर रिपोर्ट तैयार की गई। प्रत्याशियों से भी जानकारी ली गई। चौथी रिपोर्ट सीधे वर्करों द्वारा भेजी शिकायतों से मिली जानकारी पर तैयार की गई। BSP सूत्रों के मुताबिक तब सिद्दीकी को पार्टी से बाहर निकालकर दलितों का विरोध कम करने की रणनीति बनी।
कई को किया था पार्टी से बाहर
सिद्दीकी ने मेरठ में पूर्व सांसद शाहिद अखलाक, मेरठ के रहने वाले उत्तराखंड के पार्टी प्रभारी प्रशांत गौतम और पूर्व जिलाध्यक्ष कांति प्रसाद, बुलंदशहर में BAMCEF के जिलाध्यक्ष हुकुम सिंह और एक पूर्व महासचिव को पार्टी से निकाल दिया था। हापुड़ में एक पूर्व जिलाध्यक्ष समेत तीन को निकाला था। इनकी तरफ से भी मायावती से जांच की मांग की गई थी।
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