त्योहार का सीजन रेलवे के लिए हुआ फीका

नई दिल्ली
इंडियन रेलवे के लिए त्यौहार का सीजन फीका साबित हो रहा है। बीते छह महीने में रेलवे की आमदनी में तो कमी आई ही है, अब चिंता की बात यह है कि अक्टूबर में त्योहार का सीजन होने के बावजूद उसके पैसेंजर की संख्या बेहद तेजी से गिर गई है। अक्टूबर के पहले दस दिनों में ही रेलवे के पैसेंजर की संख्या में लगभग साढ़े 11 फीसदी की कमी हुई है यानी दस दिन में ही 16 लाख पैसेंजर कम हो गए हैं। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में रेलवे सर्ज प्राइजिंग की अपनी नीति पर पुनर्विचार कर सकता है।

इंडियन रेलवे के सूत्रों का कहना है कि एक से दस अक्टूबर के बीच में बीते साल एक करोड़ 43 लाख लोगों ने टिकट रिजर्व कराकर सफर किया था लेकिन इस साल दस दिनों में यह आंकड़ा एक करोड़ 27 लाख रह गया है। इसी का नतीजा है कि रिजर्व टिकटों की कम बिक्री की बदौलत ही 57.60 करोड़ रुपये की आमदनी कम हो गई है। उल्लेखनीय है कि पिछले ही महीने रेलवे ने शताब्दी, राजधानी और दुरंतो ट्रेनों में सर्ज प्राइजिंग लागू की थी।

माना जा रहा है कि इसकी वजह से भी रेलवे की ओर से पैसेंजरों का आकर्षण कम हुआ है, क्योंकि अगर तुलना करके देखी जाए तो एसी थर्ड और एसी सेकंड क्लास के किराए के बराबर या कुछ रूटों पर तो उससे कम किराए में ही हवाई सफर के लिए टिकट मिल रही हैं। हालांकि फर्स्ट क्लास में सर्ज प्राइजिंग लागू नहीं की गई लेकिन इसके बावजूद उसके पैसेंजरों की संख्या भी दस दिन में लगभग 16 हजार तक कम हो गई।

इसी तरह से अगर राजधानी, शताब्दी, दुरंतो ट्रेनों के सेकंड एसी में सफर करने वालों का आंकड़ा देखा जाए तो एक से 10 अक्टूबर के बीच इस क्लास के पैसेंजरों की संख्या एक लाख 47 हजार पैसेंजर कम हुए हैं और इसी क्लास से होने वाली कमाई में भी 78.62 करोड़ रुपये की कमी हुई है। रेलवे के पहले छह महीने के ही आंकड़ों से पता चला है कि उसकी चार हजार करोड़ रुपये की आमदनी कम हो गई है। उसमें इन ट्रेनों में लागू की गई सर्ज प्राइजिंग भी शामिल है।

इसी तरह इन ट्रेनों में दस दिन में एसी चेयरकार के पैसेंजर की संख्या कम होकर सात लाख नौ हजार तक रह गई है यानी पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले एक लाख एक हजार कम। इसी तरह एसी थर्ड क्लास के पैसेंजरों की संख्या में भी कमी हुई और आमदनी में साढ़े फीसदी कम हो गई। रेलवे के अधिकारियों का खुद यह मानना है कि सर्ज प्राइजिंग उतनी कामयाब नहीं हुई, जिसकी उम्मीद रेलवे ने लगाई थी।

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