डेप्युटी सीएम मनीष सिसोदिया ने पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने का प्रस्ताव किया पेश, गिनाए फायदे

नई दिल्ली
दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने का प्रस्ताव सदन में पेश करते हुए डेप्युटी सीएम मनीष सिसोदिया ने सिलसिलेवार तरीके से उन सभी योजनाओं और फैसलों का जिक्र किया, जिन्हें पूर्ण राज्य होने से आसानी से लागू किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि गाजियाबाद और गुड़गांव में रहने वाले लोगों के वोट से चुनी हुई सरकार के पास बहुत ज्यादा अधिकार हैं। लेकिन दिल्ली के लोगों के वोट की कीमत कम है। सभी सरकारें दिल्ली को पूर्ण राज्य की वकालत करती रही हैं। हर चीज में एलजी को पावर दी गई है और एलजी का काम केवल चुनी हुई सरकार के कामों को रोकना है। पिछले 3 साल के इतिहास को देखें तो यह बात आसानी से समझ आ जाती है।

सरकार बनने के 6 महीने में आ जाता जनलोकपाल बिल
डेप्युटी सीएम ने कहा कि जनलोकपाल बिल इसलिए पास नहीं हो पाया क्योंकि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त नहीं है। दिल्ली सरकार ने गवर्नेंस में डीसेंट्रलाइज्ड मॉडल तैयार किया और मोहल्ला सभाओं के जरिए लोगों को अधिकार देने की योजना बनाई। स्वराज मोहल्ला सभा की व्यवस्था इसलिए लागू नहीं हो पाई क्योंकि एलजी ने टांग अड़ा दी। सिटिजन लेड फंड से लोग आसानी से अपने काम करा सकते थे। लोगों के हाथ में पावर आ जाती, अगर दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला होता। ये कैसे हो सकता है कि कोई शिक्षा निदेशक शिक्षकों इस सवाल का जवाब न दे कि स्कूल में शिक्षकों के कितने पद खाली हैं। इसका सर्विसेस से क्या लेना देना है? एलजी साहब से मंजूरी लेना हमारी मजबूरी है। पूर्ण राज्य का दर्जा होता तो एलजी को फाइल भी भेजनी नहीं पड़ती।

दिल्ली में लग जाते सीसीटीवी
बजट पास कर दिया। टेंडर कर दिया। कंपनी भी आ गई, लेकिन जब वर्क अवॉर्ड करने की तैयारी हो रही थी तो एलजी ने एक कमिटी का बहाना बनाकर सीसीटीवी योजना ठंडे बस्ते में डाल दी। सरकार आरडब्ल्यूए, इलाके की महिलाओं के सुझावों के मुताबिक सीसीटीवी लगाना चाहती है लेकिन यह योजना भी अटक गई है। पूर्ण राज्य होने पर सरकार इस योजना को बड़ी आसानी से लागू कर सकती है।

मेट्रो का किराया बढ़ाने की हिम्मत नहीं होती
दिल्लीवालों के टैक्स के पैसों से मेट्रो तैयार हुई। दिल्ली मेट्रो का किराया चुनी हुई सरकार के मना करने के बावजूद बढ़ा दिया। दिल्ली सरकार के पास किराया तय करने की पावर होती तो किसी की हिम्मत नहीं होती कि किराये में बढ़ोतरी कर सके।

गेस्ट टीचर और कॉन्ट्रैक्ट कर्मी हो जाते पक्के
गेस्ट टीचर्स को रेगुलर करने का बिल पास कर दिया गया, लेकिन एलजी ने इसमें भी अड़चनें पैदा कर दीं। सालों से काम कर रहे गेस्ट टीचर्स और कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों को अचानक बाहर कर दिया जाए, यह अमानवीय है। उनके अनुभव को वेटेज देने की बात हुई तो इस फैसले को भी नहीं माना गया।

अवैध कॉलोनियों को रेगुलर करने का काम हो जाता
सरकार आने के 3 महीने के भीतर ही अनाधिकृत कॉलोनियों को रेगुलर करने का ड्राफ्ट रेग्युलेशन केंद्र के पास भेजा। तीन साल से यह विचाराधीन है। पूर्ण राज्य होने पर सरकार एक साल में कॉलोनियों को रेगुलर करने का काम कर चुकी होती।

रुक जाता राशन सिस्टम में भ्रष्टाचार
राशन की डोर स्टेप डिलिवरी योजना एलजी ने रोक दी। दिल्ली पूर्ण राज्य का दर्जा होता तो 2 महीने में यह स्कीम शुरू हो जाती। जब सरकार ने कहा कि पिज्जा भी डिलिवर किया जाता है तो कहा गया कि सर्टिफिकेट डाउनलोड हो सकता है लेकिन पिज्जा नहीं।

क्या नाली-सीवर का काम पीएम देखेंगे?
क्या एक सीवर ठीक करने का काम प्रधानमंत्री को दे देना चाहिए। देश के गृहमंत्री रोहिणी के किसी इलाके में छेड़छाड़ की समस्या पर संज्ञान क्यों लेंगे। अगर दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा होता तो दिल्ली के होम मिनिस्टर के पास अधिकार होता कि वे पुलिस को जरूरी निर्देश दे सकें कि इस तरह की घटनाओं पर रोक लगाई जा सके। देश के होम मिनिस्टर के पास पूरे देश की सुरक्षा को लेकर जिम्मेदारी होती है। वे किसी एक राज्य की समस्याओं पर कैसे ध्यान दे सकते हैं।

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