जाकिर हुसैन को पंडित रविशंकर ने उस्ताद कहा था:सबसे कम उम्र में पद्मश्री और एकसाथ तीन ग्रैमी अवॉर्ड जीतने वाले इकलौते भारतीय
|उस्ताद जाकिर हुसैन का सैन फ्रांसिस्को में 73 साल की उम्र में निधन हो गया। उस्ताद कहते थे- तबले के बिना जिंदगी है, ये मेरे लिए सोचना असंभव है 20वीं सदी के सबसे विख्यात तबलावादक उस्ताद अल्लारक्खा कुरैशी ने जब अपने बेटे को गोद में लिया था तो कान में आयत नहीं पढ़ी, बल्कि तबले के बोल कहे। जब परिवार ने वजह पूछी तो कहा, ‘तबले की ये तालें ही मेरी आयत है।’ वो बच्चा था जाकिर हुसैन, जिसने दुनियाभर को तबले की थाप पर झूमने का मौका दिया। संगीत की विरासत को रगों में संजोए जाकिर हुसैन देश के उन फनकारों में से एक थे जिन्होंने वैश्विक स्तर पर न सिर्फ भारतीय शास्त्रीय संगीत के सम्मान में चार चांद लगाए, बल्कि ताल वाद्यों की दुनिया में तबले को प्रमुख स्थान भी दिलवाया। पहला प्रोफेशनल शो 12 साल की उम्र में किया जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को महाराष्ट्र में उस्ताद अल्लारक्खा और बावी बेगम के घर हुआ था। जाकिर का बचपन पिता की तबले की थाप सुनते ही बीता और 3 साल की उम्र में जाकिर को भी तबला थमा दिया गया, जो उनसे फिर कभी नहीं छूटा। पिता और पहले गुरु उस्ताद अल्लारक्खा के अलावा जाकिर ने उस्ताद लतीफ अहमद खान और उस्ताद विलायत हुसैन खान से भी तबले की तालीम ली। जाकिर ने भारत में पहला प्रोफेशनल शो 12 साल की उम्र में किया था, जिसके लिए उन्हें 100 रुपए मिले थे। कई फिल्मों में एक्टिंग भी की शास्त्रीय संगीत में तो उन्हें महारत हासिल थी ही, कॉन्टेंपरेरी वर्ल्ड म्यूजिक, यानी पश्चिम और पूर्व के संगीत को एक साथ लाने के कामयाब प्रयोग की वजह से उन्हें काफी कम उम्र में ही इंटरनेशनल आर्टिस्ट के रूप में ख्याति मिली। मिकी हार्ट, जॉन मैक्लॉफ्लिन जैसे आर्टिस्ट्स के साथ फ्यूजन म्यूजिक बनाने के दौरान ही उन्होंने अपना बैंड ‘शक्ति’ भी शुरू किया। फ्यूजन म्यूजिक बनाने के बाद भी उन्होंने कभी तबले को नहीं छोड़ा, क्योंकि उनके मुताबिक तबला बचपन से उनके साथ एक दोस्त और भाई की तरह रहा। जाकिर हुसैन उस दुर्लभ योग्यता के तबलावादक थे, जिन्होंने सीनियर डागर ब्रदर्स, उस्ताद बड़े गुलाम अली खान साहब से लेकर बिरजू महाराज और नीलाद्रि कुमार, हरिहरन जैसे 4 पीढ़ियों के कलाकारों के साथ तबले पर संगत की। सिनेमा जगत में भी उस्ताद जाकिर हुसैन का योगदान अहम है। ‘बावर्ची’, ‘सत्यम शिवम सुंदरम’, ‘हीर-रांझा’ और ‘साज’ जैसी फिल्मों के संगीत में उस्ताद की बड़ी भूमिका थी। सिर्फ संगीत ही नहीं लिटिल बुद्धा और साज जैसी फिल्मों में उस्ताद ने एक्टिंग भी की थी। जाकिर हुसैन को सबसे कम उम्र में पद्मश्री मिला जाकिर हुसैन को 1988 में सबसे कम उम्र (37 साल) में पद्मश्री से नवाजा गया। हुसैन को पद्मश्री मिलने पर खुशी से गदगद गुरु और पिता उस्ताद अल्लारक्खा ने उन्हें हार पहनाया था। एक शागिर्द के लिए इससे बेहतरीन और यादगार क्षण और क्या हो सकता है। उसी समय पहली बार पंडित रविशंकर ने जाकिर को उस्ताद कहकर संबोधित किया था। इसके बाद यह सिलसिला कभी नहीं थमा। जाकिर के को-क्रिएट किए गए एल्बम ‘प्लेनेट ड्रम’ में हिंदुस्तानी और विदेशी ताल विद्या को मिलाकर रिकॉर्डिंग की गई थी, जो उस वक्त दुर्लभ था। यही वजह थी कि उस वक्त इस एल्बम के करीब 8 लाख रिकॉर्ड्स बिके थे। उस्ताद को 2002 में पद्म भूषण, 2006 में कालिदास सम्मान, 2009 में उनके ‘ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट’ एल्बम को ग्रैमी अवॉर्ड मिला। 2023 में पद्म विभूषण और 4 फरवरी 2024 को 66वें एनुअल ग्रैमी अवॉर्ड्स में एक साथ 3 ग्रैमी अवॉर्ड्स जीत कर उन्होंने इतिहास रच दिया। साल 2010 में उस्ताद अल्लारक्खा इंस्टीट्यूट ऑफ म्यूजिक की तरफ से उन्हें पंजाब घराने के तबला वादन के सबसे बड़े गुरु होने की उपाधि दी गई। उस्ताद के इंटरेस्टिंग किस्से ———————————– उस्ताद जाकिर हुसैन से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें… तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन का निधन:परिवार ने पुष्टि की, 73 साल के थे; 2023 में मिला था पद्म विभूषण विश्वविख्यात तबला वादक और पद्म विभूषण उस्ताद जाकिर हुसैन का 16 दिसंबर को निधन हो गया। सोमवार सुबह उनके परिवार ने इसकी पुष्टि की। परिवार के मुताबिक हुसैन इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस से पीड़ित थे। पहले 15 दिसंबर की रात उनके निधन की खबर आई थी। पूरी खबर पढ़ें…