जांबाज मदन लाल ढींगरा का किरदार निभाने वाले मृणाल दत्त:बचपन से क्रिकेट खेला, किस्मत ने बनाया एक्टर; एक फोटो देख खुद को रोल में झोंका
|फिल्म स्वातंत्र्य वीर सावरकर में रणदीप हुड्डा की कलाकारी की हर जगह चर्चा है। हालांकि फिल्म में एक एक्टर और भी हैं, जो सरप्राइज एलिमेंट बनकर सामने आए हैं। हम बात कर रहे हैं, फिल्म में मदन लाल ढींगरा का किरदार निभाने वाले एक्टर मृणाल दत्त की। इन्होंने हाल ही में दैनिक भास्कर को एक्सक्लूसिव इंटरव्यू दिया है। मृणाल ने कहा कि वो क्रिकेटर बनना चाहते थे, लेकिन किस्मत ने उन्हें एक्टर बना दिया। उन्होंने फिल्म में निभाए अपने किरदार मदन लाल ढींगरा पर भी बात की। मृणाल ने कहा कि बहुत दुख की बात है कि हमें मदन लाल ढींगरा जैसे जांबाज स्वतंत्रता सेनानी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता। मृणाल के मुताबिक, मदन लाल ढींगरा के बारे में पब्लिक डोमेन में ज्यादा जानकारी नहीं है। बस उनकी एक फोटो मिल गई, जिसको देख कर उन्होंने खुद को इस रोल में झोंक दिया। रणदीप हुड्डा को भी पसंद था मदन लाल ढींगरा का किरदार मृणाल ने कहा कि जब उन्होंने मदन लाल ढींगरा के किरदार के बारे में पढ़ा तो चौंक गए। वो सोच में पड़ गए कि आखिर इस आदमी के बारे में लोगों को जानकारी क्यों नहीं है। उन्होंने कहा, ‘मेरे पास पहली बार इस रोल के लिए कास्टिंग डायरेक्टर पराग मेहता का कॉल आया। उन्होंने कहा कि मुझे रणदीप हुड्डा के साथ एक फिल्म में काम करना है। मैं रणदीप के साथ काम करने को लेकर एक्साइटेड हो गया। उन्होंने मुझे मदन लाल ढींगरा के बारे में बताया। रणदीप ने कहा कि उन्हें यह किरदार इतना पसंद है कि वो खुद ही इसे निभाना चाहते थे। हम लोगों का मानना था कि मदन लाल ढींगरा पर एक अलग फिल्म बन सकती है।’ मदन लाल ढींगरा के बारे में पढ़ने को ज्यादा कुछ नहीं था मृणाल दत्त ने कहा कि मदन लाल ढींगरा के बारे में पब्लिक प्लेटफॉर्म पर ज्यादा कुछ नहीं था। उनके बारे में बहुत कम बातें लिखी गई थीं। उनके किरदार में ढलना आसान नहीं था। मृणाल कहते हैं, ‘मदन लाल ढींगरा की सिर्फ एक फोटो ही पब्लिक डोमेन में थी। ढींगरा के किरदार में ढलने के लिए मैंने उनके बारे में जो भी थोड़ी बहुत जानकारी थी, उसे पढ़ना शुरू किया। उनके बारे में पढ़ कर एक बात समझ में आई कि वो अंग्रजों से बहुत नफरत करते थे। उनका जब मन करता, अंग्रेजों को पीट कर आ जाते थे। दिखने में वे एक स्मार्ट यंग लड़के थे। उनके कपड़े पहनने का स्टाइल और पर्सनैलिटी भी हीरो टाइप थी। उनके बारे में मैंने अपने घर के बड़े बुजुर्गों से भी बात की। पुराने लोग कहीं न कहीं मदन लाल ढींगरा के नाम से परिचित थे। जब मेरे फैमिली वालों को पता चला कि मैं मदन लाल ढींगरा का किरदार निभा रहा हूं, तो वे चौंक गए। उन्होंने मुझसे कहा कि क्या तू सच में मदन लाल ढींगरा का किरदार निभाने वाला है?’ दिल्ली यूनिवर्सिटी से मुंबई तक का सफर मृणाल ने कहा कि उनके ग्रैंड पेरेंट्स पंजाब के रहने वाले थे। मां शिमला की हैं, जबकि पिता दिल्ली आकर बस गए। मृणाल को बचपन से क्रिकेट खेलना पसंद था। वे रेलवे की तरफ से क्रिकेट भी खेलते थे। स्पोर्ट्स कोटे की मदद से उनका दाखिला दिल्ली यूनिवर्सिटी के जाकिर हुसैन कॉलेज में हुआ था। वहां से फिर ड्रामा और एक्टिंग में रुझान बढ़ा। मृणाल ने कहा, ‘मैं नुक्कड़ नाटक करने लगा। वहां से मुझे ऐड फिल्मों में काम मिलने लगा। फिर मुझे किसी ने 8-9 दिनों के लिए मुंबई भेज दिया। वहांं मुझे दो ऐड फिल्में करनी थीं। एक दिन मैं ऐसे ही यशराज फिल्म्स और बालाजी प्रोडक्शन के ऑफिस के आस-पास घूम रहा था। तभी कुछ क्रिएटिव डायरेक्टर्स की नजर मुझ पर पड़ी। उन्होंने मुझसे एक शो के लिए ऑडिशन देने को कहा। मैं ऑडिशन देकर वापस दिल्ली चला गया। दिल्ली पहुंचा तो कॉल आया कि आपको मुंबई आना है। मुंबई पहुंचा तो कहा गया कि आपको यहां 8-9 महीने रहने हैं और एक शो की शूटिंग करनी है। यहीं से मेरी एक्टिंग करियर की शुरुआत हुई। लोग मुंबई आकर संघर्ष करते हैं। मैं उन कम लोगों में से हूं, जिसे मायानगरी ने खुद बुलाया।’ नेपोटिज्म को लेकर बार-बार शिकायत नहीं कर सकते मृणाल दत्त ने नेपोटिज्म से जुड़े सवाल पर कहा, ‘नेपोटिज्म तो है ही। आपको इससे पार पाना ही होगा। इसे लेकर हम बार-बार शिकायत नहीं कर सकते। हमें खुद मेहनत करनी है ताकि बेहतर मौके मिलें। जाहिर सी बात है कि एक पॉलिटिशियन के बेटे के लिए राजनीति में आना औरों के मुकाबले आसान होता है। डॉक्टर का बेटा अधिकतर डॉक्टरी में ही अपना भविष्य बनाता है। ठीक इसी तरह इंडस्ट्री वाले भी अपने बच्चों को पुश तो करते ही हैं। इसमें मैं, आप या कोई और कुछ नहीं कर सकता। इस देश के बहुत बड़े-बड़े स्टार्स सेल्फ मेड हैं। हमें उनसे प्रेरणा लेनी है। मृणाल दत्त ने कहा कि इंडस्ट्री में नेपोटिज्म की वजह से डिजर्विंग लोगों के मौके छीन लिए जाते हैं। उनकी जगह पर नॉन डिजर्विंग लोगों को काम मिल जाता है। ये ऐसे लोग होते हैं, जो 10-10 फिल्में कर चुके हैं, फिर भी आप उन्हें देखना पसंद नहीं करेंगे। हालांकि सच्चाई यही है कि इसे एक्सक्यूज की तरह नहीं लिया जा सकता। जो भी अवसर मिल रहे हैं कि उसमें खुद को साबित करना है।’ पीठ पीछे लोगों ने की शिकायत, आज हो रही है तारीफ किसी शख्स ने कभी यह कहा कि आप एक अच्छे एक्टर नहीं हैं? जवाब में मृणाल ने कहा, ‘ऐसे मुंह पर तो किसी ने नहीं कहा है, लेकिन पीठ पीछे बोला गया है। मैंने उस वक्त यही सोचा कि अपने काम से जवाब दूंगा। आज स्वातंत्र्य वीर सावरकर में काम करने के बाद मेरे पास काफी सारे लोगों के मैसेजेस और कॉल्स आ रहे हैं।’ लुक की वजह से छोटे शहर वाले रोल नहीं मिलते मृणाल ने कहा कि उनका लुक थोड़ा शहरी वाला है, इसलिए छोटे शहर वाले रोल नहीं मिलते। ऐसा नहीं है कि वो ग्रामीण इलाकों वाले रोल नहीं कर सकते। मृणाल कहते हैं, ‘मेरे लुक को देखते हुए शायद मिर्जापुर जैसे वेब शोज में मुझे काम न मिले। हालांकि यह सही नहीं है। लुक के हिसाब से जज करना सही नहीं है। मैं कहता हूं कि पहले ऐसे रोल देकर तो देखो। मेरी हिंदी क्लियर है। मैंने हरियाणवी शोज भी किए हैं। मैं बहुत आसानी से छोटे शहर के व्यक्ति का भी किरदार निभा सकता हूं।’ क्रिकेट छोड़ने का गम बिल्कुल नहीं क्या मृणाल को क्रिकेट छोड़ने का गम है? उन्होंने कहा, ‘बिल्कुल नहीं। मुझे क्रिकेट छोड़ने का कोई गम नहीं है, मुझे फिल्में और एक्टिंग से ही बहुत ज्यादा प्यार है। जब क्रिकेट खेलता था तो पापा चाहते थे कि कैसे भी करके वो दिल्ली क्रिकेट एसोसिएशन के मेंबर बन जाएं, ताकि मुझे बेहतर मौके मिलें। हालांकि किस्मत ने मेरे लिए कुछ और ही सोच रखा था। आपको एक चीज और बता दूं कि जिस वक्त मैं क्रिकेट खेलता था, उस वक्त लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव दिल्ली के कप्तान हुआ करते थे। क्रिकेट में आगे बढ़ना तो फिल्मों में काम करने से ज्यादा मुश्किल काम था। बहुत सारी पॉलिटिक्स होती थी। खैर, मुझे कोई गम नहीं है कि मैं क्रिकेट में अपना मुकाम नहीं बना पाया।’