जब JNU में मिट जाती हैं दूरियां

तरुण सिसोदिया

देश की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी जेएनयू करीब डेढ़ महीने से सुर्खियों में है। हाल ही में महिषासुर पर हुए कार्यक्रम पर जमकर विवाद हुआ। इसके अलावा अनेक घटनाओं ने जेएनयू की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया। ऐसा नहीं है कि जेएनयू में हंगामा हमेशा बना रहता है। ऐसे अनेक मौके आते हैं जब स्टूडेंट्स के बीच सभी तरह की दूरियां मिट जाती हैं और वे एक साथ सेलिब्रेट करते हैं। आखिर कौन से हैं ऐसे मौके, जानने के पढ़ें।

अनोखी ‘महाचाट होली’

होली नजदीक है। ऐसे में जेएनयू में इसके रंग को याद न किया जाए तो दूरियां मिटने की कवायदें फीकी रह जाएंगी। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में मनाई जाने वाली ‘महाचाट होली’ का अंदाज ही निराला है। होली के अनोखी होने का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि जहां दूसरी यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट होली पर अपने घर जाते हैं, वहीं जेएनयू के स्टूडेंट होली पर अपने घर नहीं जाते। जानकारों का कहना है कि यह होली 90 के दशक से यहां मनाई जा रही है।

दुल्हन लिए बिना लौटता है दूल्हा

जेएनयू की होली यहां के स्टूडेंट में बेहद मशहूर हैं। होली से एक दिन पहले शाम को खास बरात निकाली जाती है। एक समूह में दूल्हे का चयन होता है और दूसरे समूह में दुल्हन का। हालांकि दुल्हन सिर्फ नाममात्र की होती है, जबकि दूल्हा कोई भी स्टूडेंट बनता है। दुल्हन का नाम हमेशा से ही झिलमिल कुमारी रखा जाता है। दोनों अपने समूह का नेतृत्व करते हैं। ताप्ती हॉस्टल से कुंवर के समूह की बरात निकलती है जो गधे, घोड़े, खच्चर आदि पर निकाली जाती है। ढोल-नगाड़ों की थाप पर नचाते-गाते बराती झेलम हॉस्टल पहुंचते हैं। वहां कुंवारी की टीम बरातियों का स्वागत फूल-मालाओं की जगह पुरानी चप्पलों, आलू-प्याज, पुराने डिब्बों से बनी मालाएं पहनाकर करते हैं। इसके बाद वह दुल्हन को दूल्हे के साथ भेजने से इनकार कर देते हैं। दुल्हन न भेजने का कारण हर बार दूल्हे का अयोग्य होना बताया जाता है।

ज्यादा बोर करता है महाचाट

बरात खत्म होने के बाद महाचाट सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। जो स्टूडेंट अपने करतबों से ज्यादा बोर करता है उसे महाचाट की उपाधि दी जाती है। सम्मान के तौर पर इसे पुरस्कार भी ऐसा ही मिलता है। झाड़ू या फिर ईंट देकर सम्मानित किया जाता है। इसमें वर्ष भर की गतिविधियों को व्यंग, हास्य कविता, शायरी के रूप में परोसा जाता है। यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर से लेकर छात्र संगठन के पदाधिकारियों तक सबके ऊपर व्यंग कसे जाते हैं। जब छात्र अपनी प्रस्तुति पेश करते हैं तो हंसते-हंसते श्रोता लोटपोट हो जाते हैं। रात दस बजे से देर रात तक कार्यक्रम चलता है। इसके बाद रंगने का दौर शुरू होता है। एक-दूसरे को गुलाल लगाकर होली की शुभकामनाएं देकर सब अपने छात्रावास लौट जाते हैं।

होता है होली का हुड़दंग

सुबह फिर से स्टूडेंट झेलम लॉन में इकट्ठे होते हैं और जमकर एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। इस दौरान स्टूडेंट गाते-बजाते भी हैं। स्टूडेंट यहां टोलियों में पहुंचते हैं। इस वक्त किसी के भी बीच में कोई मतभेद नहीं रहता।
होली के उत्सव में सिर्फ भारतीय स्टूडेंट ही शामिल नहीं होते, बल्कि दूसरे देशों के स्टूडेंट और टीचर्स भी भागीदार होते हैं। विदेशी स्टूडेंट पर भी होली का रंग ऐसा चढ़ता है कि भारतीय कौन है और दूसरे देशों का कौन है बताना बहुत ही मुश्किल होता है।

महाचाट सम्मेलन में आजादी और देशभक्ति

इस बार जेएनयू का महाचाट सम्मेलन हर बार से थोड़ा अलग होगा। पिछले कुछ दिनों जो मुद्दा जेएनयू और देशभर में छाया है। वही मुद्दा महाचाट सम्मेलन में भी छाया रहेगा। सम्मेलन के आयोजकों में से एक श्रीमंत जैनेंद्र जो हिंदी में पीएचडी कर रहे हैं ने बताया कि पूरे इंसीडेंट पर दो नाटक तैयार कराए जा रहे हैं। जैनेंद्र ने कहा कि नाटक का अंदाज सीरियस न रहकर पूरी तरह से मजाकिया ही रहेगा, ताकि किसी की भी फीलिंग हर्ट न हों। नाटक की तैयारियां की जा रही हैं।

इफ्तार पार्टी

होली की तरह ही रमजान के दिनों में भी सभी स्टूडेंट एकजुटता की मिसाल पेश करते हैं। किसी एक हॉस्टल में ग्रांड इफ्तार पार्टी होती है। इसके अलावा करीब-करीब सभी हॉस्टलों में अपने-अपने स्तर पर इफ्तार पार्टियों का आयोजन किया जाता है। इफ्तार पार्टियों में मुस्लिम स्टूडेंट तो मौजूद होते ही हैं, इनके अलावा बड़ी तादाद में दूसरे स्टूडेंट भी होते हैं। इस पार्टी में मौजूद किसी भी स्टूडेंट के बारे में यह पता पाना कि उसकी विचारधारा क्या है, बहुत मुश्किल हो जाता है।

दुर्गा-सरस्वती पूजा

इफ्तार पार्टी के अलावा जेएनयू कैंपस में दुर्गा और सरस्वती पूजा का भी धूमधाम से आयोजन किया जाता है। दुर्गा पूजा तो पूरे नौ दिन तक चलती है। इस दौरान पूरा माहौल भक्तिपूर्ण बना रहता है। इन पूजाओं में वैसे तो हर स्टूडेंट आने की कोशिश करता है लेकिन कुछ आने में कतराते हैं। पर करीब 90 फीसदी स्टूडेंट तो इन पूजाओं में शरीक हो ही जाते हैं।

रातभर होता है जश्न

जेएनयू में एक मौका और ऐसा आता है जब स्टूडेंट एक दिखाई देते हैं। यह मौका होता है, हॉस्टल नाइट का। यह हर साल सभी हॉस्टल में यह मनाई जाती है। इसमें स्टूडेंट दूसरे हॉस्टल के अपने फ्रेंड्स को भी इनवाइट करते हैं। हॉस्टल नाइट में रातभर जश्न का माहौल रहता है। स्टूडेंट डीजे पर थिरकते हुए सभी गिले-शिकवे भुला देते हैं।

प्रेसिडेंशियल डिबेट

जेएनयू में होने वाले स्टूडेंट यूनियन इलेक्शन के वक्त प्रेसिंडेंशियल डिबेट के बारे में हर कोई जानता है। यह कोई उत्सव तो नहीं है लेकिन उत्सव से कम भी नहीं है। झेलम लॉन में पूरी रात अलग-अलग स्टूडेंट यूनियन के प्रेसिडेंट पद के कैंडिडेट अपनी बात स्टूडेंट के बीच रखते हैं। प्रेसिडेंशियल डिबेट ऐसा मौका है, जब स्टूडेंट बड़ी तादाद में इकट्ठे होते हैं। हालांकि प्रेसिडेंशियल डिबेट में वैचारिक लड़़ाई होती है। लेकिन सभी इसे ध्यान से सुनते हैं।

जेएनयू में स्टूडेंट हमेशा मिलकर रहते हैं। कभी किसी पर कोई दिक्कत आती है तो सब एकसाथ खड़े रहते हैं लेकिन राजनीति की वजह से जेएनयू को खराब किया जा रहा है।
– संत प्रकाश, पीएचडी, जेएनयू

होली के रंग में रंगे स्टूडेंट को पहचान पर किसी के लिए भी आसान नहीं होता। ऐसे में यह बता पाना कि कौन किस विचारधारा का है, बताना बहुत मुश्किल होता है।
– रंजीत कुमार, पूर्व छात्र, जेएनयू

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