जगन्नाथ यात्रा: फिर साकार हो गया 200 साल पुराना इतिहास

प्रवीण मोहता, कानपुर

संकरी गलियां शहरों के इतिहास की गवाह होती है। कानपुर में भी जनरलगंज की पतली गलियों से ऐतिहासिक रथयात्रा निकलती है। वरिष्ठ इतिहासकार मनोज कपूर के अनुसार, यहां रथयात्रा की शुरुआत 1810 के आसपास हुई थी। 25-30 साल बाद जनरलगंज में बाईजी का एक और मंदिर बना और वहां से भी रथयात्रा निकलने लगी। तब से 2 दिन की यात्रा का सिलसिला जारी है। अखिल भारतीय ओमर-उमर वेश्य महासभा के उपाध्यक्ष धर्मप्रकाश गुप्ता के अनुसार, यात्रा में बैंड पार्टी नहीं होती।

यह है इतिहास
गुप्ता के मुताबिक, जनरलगंज में 1810 में बिरजी भगत ने भगवान जगन्नाथ का मंदिर बनवाया। यहां अष्टधातु की मूर्ति लगी। भगत का परिवार शोभायात्रा निकालने में माहिर माना जाता था। किंवदंती है कि 25-30 साल बाद बाईजी नाम की महिला ओडिसा से भगवान की काष्ठ (लकड़ी) की मूर्ति बैलगाड़ी से लेकर राजस्थान जा रही थीं। बैलगाड़ी जनरलगंज से आगे नहीं बढ़ी और यहीं मूर्तियां स्थापित कर बाईजी का मंदिर बना दिया गया। इसके बाद यहां से भी आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को रथयात्रा का क्रम शुरू हुआ। काफी वक्त पहले बिरजी भगत मंदिर में झगड़े के कारण रथयात्रा नहीं निकली, लेकिन 80 के दशक में झगड़ा खत्म हुआ। अब पहले दिन बाईजी और दूसरे दिन बिरजी भगत मंदिर की यात्रा निकलती है। कई मंडल भी इसमें शामिल होते हैं।

युवकों से माहौल होता भक्तिमय
पूरी यात्रा की खास बात इसका माहौल है। वेश्य समाज के युवक एक महीने तक परंपरागत देसी वाद्ययंत्रों से रिहर्सल करते हैं। यात्रा के दौरान हर रथ के आगे वे गाते-बजाते चलते हैं। रथों पर बैठे बच्चे जीवंत झांकियां प्रस्तुत करते हैं। पुरी की ही तरह मुख्य रथ के आगे घोड़े पर 2 मंत्री और लकड़ी के हाथी पर राजा बैठते हैं। यात्रा गंगा तक जाती है। भक्तों को प्रसाद के तौर पर चने और मूंग की भीगी दाल, जामुन, आम और बड़हल दिया जाता है। गुप्ता बताते हैं कि ओमर वेश्य समाज अपनी उत्पत्ति ओमहरि से मानता है। हरि (विष्णु) को जगतपालक माना जाता है। इसलिए असीम श्रद्धा के कारण यह समाज जगन्नाथ रथयात्रा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता है।

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