घोड़े दौड़ने की आवाज के लिए नारियल का यूज:बारिश के साउंड के लिए शक्कर का इस्तेमाल; क्या है फिल्मों में यूज होने वाला फोली साउंड?
|फिल्मों के बैकग्राउंड साउंड को रियलिस्टिक बनाने के पीछे के आर्ट को फोली साउंड आर्ट कहते हैं। आप फिल्मों में बिजली गरजने, बंदूक चलने, बारिश होने और गाड़ियों के एक्सीडेंट की आवाज तो सुनते होंगे। यह साउंड एक छोटे से कबाड़ खाने की तरह दिखने वाले कमरे में तैयार होती है। जो इन साउंड्स को डेवलप करते हैं, उन्हें फोली आर्टिस्ट कहते हैं। इसके लिए ये आस-पास की वस्तुएं जैसे चावल, शक्कर, कागज, शीशे, सैंडल, जूते, छाते और लकड़ियों का यूज करते हैं। फोली आर्टिस्ट का काम बहुत क्रिएटिव होता है। फिल्मों में बारिश का साउंड निकालने के लिए ये फोली आर्टिस्ट शक्कर या चावल के दानों का प्रयोग करते हैं। उन्हें छाते पर गिराते हैं, जिससे कि बारिश की साउंड डेवलप होती है। फोली आर्टिस्ट काम कैसे करते हैं। साउंड निकालने के लिए ये किस घरेलू चीजों का प्रयोग करते हैं। रील टु रियल के नए एपिसोड में हमने इन्हीं पॉइंट्स पर बात की है। इसके लिए दैनिक भास्कर की टीम मुंबई के अंधेरी ईस्ट स्थित आराधना साउंड स्टूडियो पहुंची। वहां सैकड़ों फिल्मों में फोली और सिंक साउंड का काम कर चुके तीन साउंड इंजीनियर राजेंद्र गुप्ता, करनैल सिंह और सज्जन चौधरी मौजूद थे। पहले की फिल्मों में ओरिजिनल साउंड ही यूज होते थे, टेक्नोलॉजी बेहतर हुई तो डबिंग की शुरुआत हुई शुरुआती समय में ओरिजिनल साउंड ही फिल्म में यूज कर लिए जाते थे। मतलब कि ऑन स्पॉट शूटिंग के दौरान निकली आवाज ही फिल्मों में यूज की जाती थी। उनकी अलग से डबिंग नहीं कराई जाती थी। उस वक्त तक ऐसी टेक्नोलॉजी नहीं थी कि साउंड को फिल्टर किया जा सके। धीरे-धीरे टेक्नोलॉजी बेहतर हुई तो डबिंग की शुरुआत हुई। डबिंग के बाद फोली साउंड की शुरुआत हुई। फिल्मों के बैकग्राउंड में होने वाली एक्टिविटी का भी अलग से साउंड निकाले जाने लगा। ऐसे में सीन्स पहले की तुलना में ओरिजिनल लगने लगे। फोली आर्टिस्ट कौन होते हैं और इनका काम क्या है, यह समझिए फिल्मों के बैकग्राउंड में यूज होने वाले सारी आवाजें जैसे शीशे का टूटना, दौड़ना, किसी को मुक्का मारना, घोड़े-हाथियों की आवाज, ये सारी एक खास तकनीक से निकाली जाती है। ये नेचुरल नहीं होती, बल्कि फोली साउंड की मदद से निकाली जाती है। इस पर काम करने वाले व्यक्ति को फोली आर्टिस्ट कहते हैं। फिल्मों में यूज होने वाली अधिकतर चीजें नकली होती हैं। मान लीजिए, एक्शन सीक्वेंस के दौरान कोई एक्टर दीवार से टकराता है। अब जाहिर तौर पर वो दीवार असली तो होती नहीं है। सीक्वेंस असली लगे, इसके लिए दीवार से टकराने के दौरान का साउंड इफेक्ट निकाला जाता है। यह काम फोली आर्टिस्ट करता है। एक्टर जूते कैसे पहन रहा है, यह भी फोली आर्टिस्ट को ध्यान देना पड़ता है फोली आर्टिस्ट का काम बहुत चैलेंजिंग और क्रिएटिव होता है। फोली आर्टिस्ट को यह तक ध्यान देना होता है कि एक्टर सीन में किस तरह का जूता पहन रहा है। अगर लेदर का जूता है, फिर उसकी अलग आवाज निकलेगी। इसके अलावा स्पोर्ट्स शूज, सैंडल और चप्पल है तो साउंड बदलती जाएगी। इसके अलावा जमीन की सतह कैसी है, इस पर ध्यान देना होता है। मतलब एक्टर फर्श, सड़क या पहाड़ी इलाके में चल रहा है तो इसका भी अलग साउंड निकालना होता है। इसके लिए फोली आर्टिस्ट के पास हर तरह के जूते और चप्पल उपलब्ध रहते हैं। करनैल सिंह और सज्जन चौधरी ने बताया कि अगर थप्पड़ का साउंड निकालना है, तो एक जोड़ी लेडीज चप्पलों को एक दूसरे से खूब तेज टकराएं। इससे थप्पड़ की आवाज बिल्कुल ओरिजिनल की तरह निकलती है। बारिश की आवाज निकालने के लिए चावल और शक्कर का यूज होता है फिल्मों में बारिश की आवाज डालने के लिए चावल, शक्कर और एक छाते का यूज किया जाता है। एक फोली आर्टिस्ट दोनों हाथ में चावल या शक्कर को लेकर छाते पर गिराता है। इससे बिल्कुल वैसी ही आवाज निकलती है, जैसे बारिश हो रही हो। अगर हल्की बारिश का सीक्वेंस है तो चावल या शक्कर की मात्रा को कम रखा जाता है, साथ ही उसे छाते पर धीरे-धीरे गिराया जाता है। वहीं अगर तेज बारिश का साउंड लगाना है तो चावल या शक्कर के मोटे दाने को पूरा मुट्ठी भर लेकर छाते पर गिराया जाता है। ओरिजिनल गन शॉट और कार के साउंड को पहले से रिकॉर्ड करके रखा जाता है हम फिल्मों में अक्सर गोली चलने की आवाज सुनते हैं। ये साउंड कैसे निकाली जाती है? जवाब में राजेंद्र गुप्ता ने कहा, ‘दरअसल इसके लिए पहले से एक लाइब्रेरी बनाकर रखी जाती है। इस लाइब्रेरी में दुनिया की हर किस्म की बंदूकों की आवाज पहले से रिकॉर्ड करके रखी जाती है। जाहिर तौर पर AK-47, पिस्टल और रिवॉल्वर, इन तीनों की फायरिंग करते वक्त अलग-अलग साउंड निकलती है। शूटिंग के वक्त डमी गन शॉट दिखाए जाते हैं। मतलब इसमें निकलने वाला साउंड फिल्मों में यूज नहीं होता। उस पर्टिकुलर सीन में जो गन यूज हुआ है, लाइब्रेरी से उसी गन का साउंड सीन के अनुसार मिक्स करते हैं।’ फिल्म में यूज होने वाले कार का मॉडल सर्च कर उसकी आवाज रिकॉर्ड की जाती है यही बात कार वाले सीक्वेंस में भी लागू होती है। सीक्वेंस में जिस कार का यूज होता है, उसी का ओरिजिनल साउंड डबिंग के वक्त लगा दिया जाता है। मान लीजिए, किसी सीन में मर्सिडीज कार को दिखाना है। अब साउंड इंजीनियर उस कार का मॉडल सर्च करेगा। फिर उस कार का ओरिजिनल साउंड रिकॉर्ड करके सीन के बैकग्राउंड में लगाएगा। फिल्म शोले के एक सीन में हेमा मालिनी डाकुओं से बचने के लिए तांगा चलाकर भागती हैं। उस सीन में तांगे से जो आवाज निकलती है, उसे करनैल सिंह और सज्जन सिंह ने अपने स्टूडियो में बैठकर तैयार किया था। वॉलेट यानी पर्स और कागज का यूज करके कबूतर के फड़फड़ाने की आवाज निकाली जाती है किसी सीन में अगर कबूतर उड़ रहे हैं तो उनके फड़फड़ाने की आवाज कैसे निकलेगी। करनैल सिंह ने कहा, ‘हम लेदर का वॉलेट लेंगे। वॉलेट के बीच में एक कागज रखेंगे। फिर वॉलेट को खूब जल्दी-जल्दी खोलेंगे और बंद करेंगे। इसकी आवाज ऐसी निकलेगी कि लगेगा कबूतर फड़फड़ा रहे हैं।’ साउंड इंजीनियर्स के लिए एक्टर्स के हाव भाव को परखना सबसे जरूरी एक साउंड इंजीनियर के लिए कौन सी बात ध्यान रखनी सबसे जरूरी है। जवाब में करनैल सिंह ने कहा, ‘हमें सीन्स और आर्टिस्ट का इमोशन समझना पड़ता है। सीक्वेंस में आर्टिस्ट कैसे बिहेव कर रहा है, कैसे रिएक्ट कर रहा है, उसकी एक्टिविटी कैसी है, ये सारी चीजें ध्यान देनी पड़ती है। मान लीजिए, किसी सीक्वेंस में एक्टर गुस्से में है तो वो पानी पीकर गिलास को मेज पर तेजी से पटकेगा। ऐसे में हमें गिलास रखने का साउंड हल्का तेज निकालना पड़ेगा। वहीं अगर एक्टर नॉर्मल बिहेव कर रहा है, तो उसी हिसाब से स्लो साउंड निकालना पड़ेगा। कुल मिलाकर साउंड इंजीनियर्स को फिल्म में एक्टर्स के हाव भाव को परखना सबसे जरूरी हो जाता है।’ रील टु रियल की ये स्टोरीज भी पढ़ें.. मैन वर्सेज वाइल्ड में बेयर ग्रिल्स की आवाज अरविंद मेहरा:इन्हें डबिंग की दुनिया का अमिताभ बच्चन कहते हैं आपने डिस्कवरी पर आने वाला शो मैन वर्सेज वाइल्ड तो जरूर देखा होगा। भारत में इस शो की लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं है। हालांकि इस शो को लोकप्रिय बनाने वाले शख्स के बारे में आपको शायद ही पता हो। ये शख्स हैं अरविंद मेहरा। इन्होंने ही शुरुआती दौर में बेयर ग्रिल्स की आवाज को हिंदी में डब किया था। अरविंद मेहरा तकरीबन 45 साल से वॉयस ओवर और डबिंग की दुनिया में एक्टिव हैं। इन्हें कुछ लोग डबिंग की दुनिया का अमिताभ बच्चन भी कहते हैं। पूरी खबर पढ़ें.. साउथ सिनेमा की डबिंग कर घर-घर पहुंचाया; मनीष शाह की गोल्डमाइंस फिल्म्स की वैल्यू ₹6000 करोड़ आपने कभी सोचा है कि तेलुगु, तमिल, कन्नड़ और मलयालम में बनी फिल्मों को हिंदी ऑडियंस तक कौन पहुंचा रहा है? हम बताते हैं…वो शख्स हैं गोल्डमाइंस टेलीफिल्म्स के मालिक मनीष शाह। मनीष शाह साउथ की 80% फिल्मों को हिंदी में डब करके यहां की ऑडियंस तक पहुंचाते हैं। मनीष शाह ने इसकी शुरुआत 2007 में नागार्जुन की फिल्म ‘मास’ से की थी। इस फिल्म को उन्होंने हिंदी में डब कराया और इसका नाम ‘मेरी जंग- वन मैन आर्मी’ रखा। यह फिल्म टेलीविजन पर बहुत बड़ी हिट हुई। आज भी टीवी पर यह मूवी आती रहती है। पूरी खबर पढ़ें..