घर में कैमरे लगाकर पत्नी की जासूसी कर रहे पति
|हर वक्त करियर और पैसे की फिक्र में डूबे रहने वाले मिडल क्लास में शक की बीमारी लगातार बढ़ रही है। कानपुर की प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसियों के पास ऐसे मामले बढ़ रहे हैं। ज्यादातर मामलों में पति-पत्नी एक-दूसरे की जासूसी करा रहे हैं तो कुछ में बड़े अफसरों का भी चिट्ठा बनता है। कई मामलों में मां-बाप अपने बच्चों की निगरानी पर मोटी रकम खर्च कर रहे हैं। एक एजेंसी के संचालक विष्णु के मुताबिक, ‘जॉब के सिलसिले में बाहर रहने वाले पतियों ने पत्नी पर नजर रखने को घर में हिडेन कैमरे भी फिट कराए हैं।’
पति-पत्नी पर शक: सिक्यॉरिटी ऐंड डिटेक्टिव वेलफेयर असोसिएशन के प्रेजिडेंट अभय शंकर दुबे के अनुसार, ‘बड़ी जासूसी एजेंसियों के पास हर साल 125-150 मामले आते हैं। इनमें ज्यादातर पति-पत्नी के होते हैं। एक केस में एक शख्स अपनी जॉब करने वाली पत्नी की जासूसी इसलिए कराना चाहता था कि उसके पास जो महंगी चीजें थीं, वह अपनी सैलेरी से नहीं खरीद सकती थी।’
हज्बंड-वाइफ दोनों के जॉब करने और टाइम अलग होने पर ऑफिस के बाद की जिंदगी पर भी निगाह रखी जा रही है। कई लोग रिश्ता तय करने के पहले भी लड़के-लड़की की पिछली जिंदगी का चिट्ठा चाहते हैं। इंटरनेट का दौर आने के बाद काम कई गुना बढ़ गया है।
बच्चों की शामत: एक जासूस के मुताबिक, ‘घर से दूर रहकर कोचिंग करने वाले बच्चों की ऐक्टिविटीज पर पेरंट्स की पैनी नजर होती है। वे पता कराते हैं कि बच्चा कोचिंग टाइम के बाद क्या करता है। वह शराब पीता है या नहीं। कितनी देर पढ़ता है। किसी भी केस की मिनिमम फीस 10 हजार रुपये है।’
बड़े अफसरों पर भी नजर: दुबे कहते हैं कि बड़ी नौकरियों वाले सरकारी अफसरों की शादी के पहले जासूसी होना आम बात है। उनके जल्दी-जल्दी ट्रांसफर होते हैं। रिश्तेवाले चाहते हैं कि अफसर के चरित्र और अफेयर के बारे में सब पता चल जाए।
मध्यम वर्ग बेचैन: विष्णु के अनुसार, ‘हर महीने आने वाले 15-20 केसों में ज्यादातर मिडल क्लास के होते हैं। इनके पास वक्त की कमी होती है और दिमाग में पार्टनर के लिए सिर्फ शक होता है। अपर मिडल क्लास भी इससे अछूता नहीं है।’ इस मामले में साइकॉलजिस्ट डॉ. रवि कुमार कहते हैं, ‘टेंशन और डिप्रेशन लगातार बढ़ रहा है। इससे ब्रेन के हार्मोन्स गड़बड़ाते हैं। सोचने की प्रक्रिया रुकती है और लोग तनाव से बचने के लिए जासूसी जैसी चीजों का सहारा लेते हैं।’
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