ग्रीनपार्क स्टेडियम के विकेट के लिए नहीं मिल रही मिट्टी

प्रवीण मोहता, कानपुर

जिस क्रिकेट पिच पर चौके-छक्के लगते देख क्रिकेट फैंस खुशी से झूम उठते हैं, उस पिच के लिए अब बढ़िया क्वॉलिटी की मिट्टी की कमी होने लगी है। ग्रीन पार्क स्टेडियम के विकेट के लिए अब तक उन्नाव में जहां से मिट्टी आती थी, वहां अब बिल्डिंग बन गई है। क्यूरेटर शिव कुमार के अनुसार, शहरीकरण ने मुश्किलें बढ़ाई हैं। इससे निपटने के लिए उन्नाव, जालौन और सीतापुर से मिट्टी के सैंपल लेकर टेस्ट के लिए भेजे गए हैं।

शिव कुमार के अनुसार, ग्रीन पार्क का विकेट अब तक सरेनी (उन्नाव) से लाई गई काली मिट्टी से बनता था। लेकिन पिछले एक साल में वहां नई बिल्डिंग बन गई है। फिलहाल पहले से स्टोर की गई मिट्टी से नए क्रिकेट सीजन में काम चल जाएगा, लेकिन भविष्य के लिहाल से यह ठीक नहीं है। लंबे सीजन और ज्यादा टेस्ट मैच मिलने की उम्मीदों के मद्देनजर अच्छी क्वॉलिटी की मिट्टी की तलाश की गई। काफी खोजबीन के बाद उन्नाव में ही अचलगंज और बीघापुर के अलावा बुंदेलखंड के उरई (जालौन) और मिश्रिख (सीतापुर) की मिट्टी के सैंपल जांच के लिए हरकोर्ट बटलर टेक्नॉलजिकल इंस्टिट्यूट (एचबीटीआई) भेजे गए हैं। हाथ से किए जाने वाले शुरुआती टेस्ट में चारों सैंपल पास हो गए हैं। अब एचबीटीआई में सेकंड राउंड के टेस्ट हो रहे हैं। इसकी रिपोर्ट 45 दिन में आएगी। इस टेस्ट में मिट्टी को नमी मिलने के दौरान इसके फैलने, सिकुड़ने, टूटने, एक स्थिति में बने रहने के अलावा रेत, बजरी और क्ले का पर्सेंटेज चेक किया जाता है। इसमें मिट्टी में जलीय चालकता (हाइड्रॉलिक कंडक्टिविटी) भी देखी जाती है।

होना चाहिए 5 साल का स्टॉक: नए सिरे से पिचें बनाने के लिए एक बार में करीब 800 क्यूबिक फुट मिट्टी की जरूरत होती है। लेकिन टॉप ड्रेसिंग करने के लिए 100 क्यूबिक फुट मिट्टी काफी होती है। बीसीसीआई की मीटिंग में भी इस बात पर चर्चा हुई कि घटते कुदरती साधनों के बीच हर सेंटर को 5 साल का मिट्टी का स्टॉक रखना चाहिए। इसके अलावा माइनिंग (खनन) के कड़े कानूनों और ट्रांसपोर्टेशन की बंदिशों से भी समस्याएं बढ़ गई हैं।

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