गोरखपुर: बच्चों की जिंदगी खतरे में, दुनिया में सबसे खराब शिशु मृत्यु दर में से एक
|गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल अस्पताल में कथित तौर पर ऑक्सिजन सप्लाई बाधित होने से 63 बच्चों की मौत का मामला गरमाया हुआ है। गोरखपुर आज से नहीं बल्कि 3 दशकों से बच्चों की अकाल मौत का जिला बना हुआ है। अगर गोरखपुर एक देश होता तो उन 20 मुल्कों में शामिल होता जहां शिशु मृत्यु दर सर्वाधिक है।
हेल्थ डिपार्टमेंट के आंकड़े बताते हैं कि गोरखपुर में प्रति 1000 बच्चों में से 62 एक साल की उम्र से पहले ही मृत्यु का शिकार बन जाते हैं। यूपी में यह औसत 48 जबकि पूरे देश में 1000 पर 40 बच्चों का है। इस आंकड़े की तुलना अगर सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी, यूएस के डेटा से वैश्विक स्तर पर करें तो गोरखपुर दुनिया के ऐसे 20 देशों में शामिल दिखता है जहां शिशु मृत्यु दर सर्वाधिक है।
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हेल्थ ऐक्टिविस्ट बॉबी रमाकांत बताते हैं कि इस ग्लोबल स्केल पर आधारित 20 देशों में 44.5 लाख की आबादी वाला गोरखपुर शिशु मृत्यु दर के मामले में 18वें स्थान पर आता है। इस तरह गोरखपुर ने पश्चिमी अफ्रीका के 19.18 लाख आबादी वाले देश रिपब्लिक ऑफ गाम्बिया की जगह ले ली है। 62.90 और 64.60 शिशु मृत्यु दर वाले जाम्बिया और साउथ सुडान गोरखपुर को टक्कर दे रहे हैं। इस लिस्ट में अफगानिस्तान टॉप पर है जहां शिशु मृत्यु दर 112 है।
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5 साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के मामले में गोरखपुर की स्थिति राष्ट्रीय और राज्य औसत की तुलना में भी काफी खराब है। भारत में 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर का औसत 50 जबकि यूपी में 62 है। गोरखपुर की बात करें तो यह औसत 76 है। स्वास्थ्य मामलों से जुड़ी आरती धर कहती हैं, ‘इतने ज्यादा शिशु मृत्यु दर की वजह कुपोषण, अधूरा टीकाकरण, खुले में शौच और गंदा पानी है।’
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चौथे नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों का हवाला देते हुए आरती बताती हैं, ‘गोरखपुर में 35 फीसदी से ज्यादा बच्चे कम वजन (कुपोषित) के हैं, जबकि 42 फीसदी बच्चे कमजोर हैं।’ उन्होंने बताया कि गोरखपुर टीकाकरण के मामले में भी पीछे है। यहां हर 3 में से एक बच्चे का जरूरी टीकाकरण का चक्र पूरा नहीं हो पाता है। गोरखपुर में केवल 35 फीसदी घरों में टॉइलट हैं। यहां खुले में शौच की दर ज्यादा है। इसी वजह से यहां के 25 फीसदी बच्चे डायरिया से प्रभावित हैं।
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बाल रोग विशेषज्ञों के मुताबिक कुपोषण और अधूरे टीकाकरण की वजह से बच्चों में इंसेफलाइटिस का खतरा बढ़ जाता है। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी की फैकल्टी मेंबर प्रफेसर शैली अवस्थी कहती हैं, ‘कुपोषण से पीड़ित बच्चों के अंदर इंफेक्शन से मुकाबले की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। इसी वजह से डायरिया और सांस के संक्रमण जैसी आम बीमारियों से भी बच्चों की मौत हो जाती है।’ बीआरडी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि इंसेफलाइटिस से पीड़ित 70 फीसदी बच्चे कुपोषित थे।
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