गलत खुफिया रिपोर्ट पर इराक युद्ध में शामिल हुआ ब्रिटेन

लंदन
साल 2003 में इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन को हटाने के लिए अमेरिका के नेतृत्व में हुए हमले में ब्रिटेन का शामिल होना अंतिम उपाय नहीं था और यह गलत खुफिया जानकारी पर आधारित था। इराक युद्ध को लेकर हुई एक जांच की रिपोर्ट में आज यह बात कही गई। इसमें युद्ध में शामिल होने के तत्कालीन प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर के फैसले को गलत ठहराया गया है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ब्लेयर ने युद्ध के नतीजों के बारे में ना तो सोचा और ना ही इसकी सही तरीके से तैयारी ही की। इसमें कहा गया है कि इराक युद्ध को लेकर बढ़ा-चढ़ाकर बयान दिए गए। रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्लेयर और ब्रिटिश सरकार ने इराक में पेश आने वाली मुश्किलों को कम करके आंका। रिपोर्ट का कहना है कि ब्लेयर ने अमेरीकी राष्ट्रपति बुश पर इस युद्ध के द्वारा प्रभाव स्थापित करने की संभावनाओं को भी बढ़ा-चढ़ाकर देखा।

साल 2009 में शुरू की गई आधिकारिक जांच के अध्यक्ष जॉन शिलकॉट ने कहा कि ब्रिटेन ने इराक पर हमले में शामिल होने से पहले सभी शांतिपूर्ण विकल्पों को नहीं तलाशा था। पूर्व वरिष्ठ नौकरशाह ने मीडिया से कहा, ‘हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि निरस्त्रीकरण के लिए शांतिपूर्ण विकल्प तलाशने से पहले ब्रिटेन ने इराक पर हमले में शामिल होने का फैसला किया। उस समय सैन्य कार्रवाई अंतिम उपाय नहीं थी।’

शिलकॉट ने यह भी कहा कि इराक के पास जनसंहार के हथियार होने के बारे में जिस पुख्ता तरीके से बात रखी गई, वह सही नहीं थी और युद्ध के बाद की योजना पूरी तरह नाकाफी थी। इराक युद्ध पर शिलकॉट की यह 26 लाख शब्दों की रिपोर्ट 12 हिस्सों में है। तत्कालीन प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन द्वारा जांच का आदेश दिए जाने के 7 साल बाद यह रिपोर्ट आई है। मालूम हो कि साल 2003 से 2009 के बीच इराक युद्ध में करीब 180 ब्रिटिश सैनिक मारे गए थे।

शिलकॉट ने अपनी रिपेार्ट में इराक के राष्ट्रपति की कुर्सी से सद्दाम हुसैन को हटाने और अमेरिका के साथ युद्ध में शामिल होने के ब्रिटेन के फैसले के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री ब्लेयर को जिम्मेदार मानते हुए उनपर सख्त फैसला दिया है। शिलकॉट की इस रिपोर्ट का लंबे समय से इंतजार था। इसमें 2001 से 2009 के बीच करीब एक दशक के दौरान ब्रिटिश सरकार के नीतिगत फैसलों को शामिल किया गया है।

जांच रिपोर्ट में ब्लेयर द्वारा 28 जुलाई 2002 को तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बुश को भेजे गए एक नोट का भी जिक्र है। इस नोट से संकेत मिलता है कि युद्ध शुरू करने के फैसले पर कितनी जल्दी काम शुरू हो गया। यह नोट इराक पर हमले से कुछ महीने पहले भेजा गया। इसमें ब्लेयर ने लिखा, ‘जो भी हो, मैं आपके साथ रहूंगा। लेकिन यह साफतौर पर मुश्किलों को आंकने का वक्त है। इसपर योजना और रणनीति आखिर में बेहद सख्त होने वाले हैं।’

बुधवार को रिपोर्ट जारी किए जाने के बाद प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने संसद में कहा कि साल 2002 में इराक पर हमला करने के अमेरिकी फैसले में शामिल होने के ब्लेयर के निर्णय से सबक सीखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इससे तय होगा कि युद्ध किसी भी मुद्दे का सबसे आखिरी हल होता है। रिपोर्ट के नतीजों पर अगले सप्ताह 2 दिवसीय संसदीय चर्चा की घोषणा करते हुए कैमरन ने हाउस ऑफ कॉमन्स में सांसदों से कहा, ‘कुछ ऐसे सबक होते हैं जिन्हें हमको सीखना चाहिए और सीखते रहना चाहिए। देश को लड़ाई में झोंकना हमेशा आखिरी रास्ता होना चाहिए और ऐसा तभी ऐसा किया जाना चाहिए जब आपने सभी तरीकों और विकल्पों को तलाश लिया गया हो।’

उधर ब्लेयर ने दावा किया कि शिलकॉट रिपोर्ट उन्हें किसी ‘झूठ या छल-कपट’ के आरोप से बरी करती है। लेबर पार्टी के 63 वर्षीय नेता ब्लेयर ने कहा कि वह किसी भी गलती की पूरी जिम्मेदारी लेंगे। हालांकि उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि यह जांच साफ करती है कि ना तो कोई जालसाजी की गई और ना ही खुफिया जानकारी का गलत इस्तेमाल ही किया गया।

ब्लेयर ने कहा, ‘मैं बिना किसी बहाने के किसी भी गलती की पूरी जिम्मेदारी लूंगा। जिम्मेदारी लेते समय ही मैं बताउंगा कि मैं क्यों मानता हूं कि सद्दाम हुसैन को हटाना सही फैसला था। मैं यह भी साफ करूंगा कि आखिर मैं क्यों नहीं मानता कि आज पश्चिम एशिया या दुनिया में कहीं हमें जो आतंकवाद देखने को मिल रहा है, उसकी वजह सद्दाम का जाना ही है।’ ब्लेयर ने कहा, ‘सद्दाम हुसैन के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के मेरे फैसले से लोग सहमत हैं या नहीं यह अलग मुद्दा है, लेकिन मैंने इसे अच्छे के लिए किया था और मुझे इस फैसले में देश का हित नजर आया था।’

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