कॉरपोरेट टैक्स में कटौती की शुरुआत बजट से की जाए
| रमेश शाह
2017-18 में भारत में बड़े स्ट्रक्चरल रिफॉर्म हुए और इकनॉमी इन बदलावों के हिसाब से खुद को एडजस्ट कर रही है। इनका ग्रोथ पर कुछ हद तक बुरा असर हुआ है, सीएसओ के अनुमान और आर्थिक सर्वे दोनों से इसकी पुष्टि हुई है। हालांकि, इसकी पहले से ही उम्मीद की जा रही थी। जब भी बड़े स्ट्रक्चरल चेंज होते हैं तो उससे डिसरप्शन होता है और कुछ समय तक अनिश्चितता बनी रहती है। इन रिफॉर्म्स का पॉजिटिव असर अभी से ही दिखने लगा है। नोटबंदी और जीएसटी के बाद संगठित क्षेत्र का बाजार बढ़ा है। आर्थिक सर्वे में टैक्सपेयर्स के डेटा से इसकी पुष्टि होती है। जीएसटी के बाद इनडायरेक्ट टैक्सपेयर्स की संख्या में 50 पर्सेंट की बढ़ोतरी हुई है और नवंबर 2016 के बाद से इंडिविजुअल इनकम टैक्सपेयर्स की संख्या में 18 लाख का इजाफा हुआ है। सरकार जीएसटी के स्ट्रक्चर में और सुधार के लिए काम कर रही है। हम उम्मीद करते हैं कि टैक्स स्लैब की संख्या आगे चलकर कम होगी और सभी सेक्टर्स को जीएसटी के दायरे में लाया जाएगा।
जब सिस्टम स्टेबल हो जाएगा और टैक्स बेस बढ़ेगा तो इकनॉमी को इन सुधारों का और फायदा मिलेगा। सर्वे में जीडीपी ग्रोथ को लेकर जो संभावना जताई गई है, उससे भी इसका पता चलता है। मूडीज ने भारत की जो सॉवरेन रेटिंग बढ़ाई थी, उसमें भी इन सुधारों के पॉजिटिव असर को शामिल किया गया था। हम उम्मीद करते हैं कि सरकार आने वाले वर्ष में आर्थिक सुधारों के एजेंडा पर काम करती रहेगी। इसके साथ इकनॉमिक ग्रोथ को भी तेज करने की जरूरत है। मुझे लगता है कि आगामी बजट के जरिये सरकार यह काम कर सकती है। फिक्की के कई सर्वे में बताया गया है कि अब तक प्राइवेट इनवेस्टमेंट में बढ़ोतरी नहीं हुई है क्योंकि कंपनियां पूरी प्रॉडक्शन कैपेसिटी का इस्तेमाल नहीं कर पा रही हैं। इसलिए फिक्की ने कॉरपोरेट टैक्स में कटौती का सुझाव दिया है। इसके साथ उसने प्राइवेट सेक्टर की तरफ से निवेश बढ़ाने को लेकर कई इंसेंटिव भी सुझाए हैं। भारतीय इंडस्ट्री को दूसरे देशों की कंपनियों का मुकाबला करने की हालत में भी होना चाहिए। खासतौर पर जब दूसरे देशों में कॉरपोरेट टैक्स में कटौती की जा रही है। अमेरिका में टैक्स कोड में बदलाव हो रहा है। वहां कॉरपोरेट टैक्स रेट को 35 पर्सेंट से घटाकर 21 पर्सेंट किया जा रहा है। ऑल्टरनेट मिनिमम टैक्स खत्म करना और लॉस को बेमियादी समय तक आगे बढ़ाना बड़े सुधार हैं। हमें इनके असर को समझना होगा और उस हिसाब से अपनी टैक्स पॉलिसी में बदलाव करने होंगे। तभी भारतीय कंपनियां दूसरे देशों की कंपनियों का मुकाबला कर पाएंगी। टैक्स रेट में कमी से उद्यमिता को भी बढ़ावा मिलेगा और अधिक से अधिक कंपनियां टैक्स के दायरे में आएंगी। सरकार को इस बजट में कॉरपोरेट टैक्स को 30. पर्सेंट से घटाकर कम से कम 27.5 पर्सेंट पर लाना चाहिए। इसके साथ वह दरों में कमी की शुरुआत कर सकती है।
फिक्की ने इनोवेटिव और नए दौर के सेक्टर्स में इनवेस्टमेंट बढ़ाने के लिए विशेषतौर पर पोर्ट्स के नजदीक रेगुलेशन फ्री-जोन बनाने का सुझाव दिया है। इसके साथ ही उसने एक्सपोर्ट के लिए भी इंसेंटिव देने की जरूरत बताई है। ग्लोबल ग्रोथ में तेजी आने के अनुमान के कारण एक्सपोर्ट से जुड़े सेक्टर्स को मदद देने से देश की कुल ग्रोथ में काफी मदद मिल सकती है।
इकनॉमिक सर्वे में बताया गया है कि देश के एक्सपोर्ट में टॉप 1 पर्सेंट कंपनियों की 38 पर्सेंट हिस्सेदारी है। यह स्थिति भारत के समान इकनॉमी वाले अन्य देशों की तुलना में अलग है।
इंसेंटिव मिलने के बाद अपैरल सेक्टर का एक्सपोर्ट बढ़ा है और सर्वे में अन्य सेक्टर्स के लिए भी इंसेंटिव दिए जाने की उम्मीद जताई गई है।
रेट कट की भी गुंजाइश है जिससे प्राइवेट इनवेस्टमेंट बढ़ सकता है। सर्वे में कहा गया है कि इन्फ्लेशन के प्रेशर का एक बड़ा कारण कृषि में सप्लाई से जुड़ी मुश्किलें हैं और ऐसी उम्मीद है कि इसके मद्देनजर RBI ग्रोथ को लेकर चिंताओं पर भी ध्यान देगा। प्रोक्योरमेंट, डिस्ट्रीब्यूशन और जोखिम कम करने के उपायों पर भी ध्यान देने की आशा व्यक्त की गई हैष इसके साथ ही मौसम से बेअसर बीजों की किस्मों को बढ़ावा देने के लिए कृषि में रिसर्च एंड डिवेलपमेंट की भी जरूरत है।
सरकार ने लघु अवधि में चुनौतियों के अनुमान के बावजूद रिफॉर्म पर ध्यान बरकरार रखने को लेकर अच्छा कार्य किया है। इस पॉलिसी को जारी रखने से देश को ढांचागत रूप से और मजबूत करने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही सरकारी खर्च में बड़ी वृद्धि के साथ ग्रोथ बढ़ाने के उपायों से प्राइवेट सेक्टर का इनवेस्टमेंट बढ़ाने में मदद मिल सकती है। इन सभी उपायों से इकनॉमी की रफ्तार बढ़ेगी और यह आने वाले वर्षों में 10 पर्सेंट की ग्रोथ भी हासिल कर सकती है।
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