कैबिनेट मीटिंग में बुधवार को होगा रेल बजट को आम बजट में समाहित करने का फैसला
|लगभग 92 साल बाद रेल बजट की परंपरा समाप्त करने के बारे में बुधवार को अंतिम फैसला हो सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में होने वाली कैबिनेट की बैठक में रेल बजट को आम बजट का ही हिस्सा बनाने को लेकर विचार किया जाएगा और अगर सहमति बनी तो बुधवार को ही इसके बारे में ऐलान भी कर दिया जाएगा। ऐसी स्थिति में सुरेश प्रभु अंतिम रेलमंत्री होंगे, जिन्होंने रेल बजट पेश किया। इस फैसले के बाद रेल बजट की बजाय सिर्फ आम बजट ही पेश किया जाएगा और उसमें रेलवे का उसी तरह हिस्सा होगा, जिस तरह अभी अन्य मंत्रालयों का होता है।
बता दें कि नीति आयोग के इस प्रस्ताव को रेलमंत्री सुरेश प्रभु पहले ही अपनी मंजूरी दे चुके हैं। अब इस बारे में तैयार किया गया कैबिनेट नोट बुधवार को कैबिनेट की बैठक में रखा जाएगा। उम्मीद की जा रही है कि कैबिनेट से इसे मंजूरी मिल जाएगी।
यह होगा असर
इस फैसले के बाद रेलवे का बजट वित्त मंत्रालय ही तय करेगा। हालांकि पेंशन की देनदारी, लाभांश, रेलवे को वित्त मंत्रालय से मिलने वाली बजटीय सहायता, किराया तय करने संबंधी अधिकारों पर अभी सहमति नहीं बन पाई है कि इस पर फैसला रेल मंत्रालय करेगा या फिर वित्त मंत्रालय। दरअसल, रेल मंत्रालय चाहता है कि रेल किराया तय करने और मार्केट से पैसा उधार लेने का अधिकार उसे ही मिले।
रेलवे सूत्रों का कहना है कि बजट समाहित होने का एक फायदा तो यही होगा कि रेलवे पर नई ट्रेनें शुरू करने और गैर फायदे वाले रूट्स पर ट्रेनें चलाने, बढ़ाने या स्टॉपेज आदि के बारे में रेलवे पर कोई दबाव नहीं आएगा। इसके अलावा रेलवे को बजटीय सहायता के लिए उसे वित्त मंत्रालय के पास गिड़गिड़ाना नहीं पड़ेगा। इस तरह से रेलवे को वित्तीय तौर पर आजादी मिल सकेगी।
होंगी ये दिक्कतें
लेकिन दूसरी ओर दिक्कत यह होगी कि रेलवे की स्वतंत्रता लगभग समाप्त हो जाएगी। उसे दूसरे मंत्रालयों की तरह ही अपने प्रॉजेक्ट्स की मंजूरी के लिए वित्त मंत्रालय का मुंह देखना पड़ेगा। यही नहीं, इस बात की भी संभावना है कि जब रेल बजट ही नहीं होगा तो संसद में न तो इस पर चर्चा होगी और न ही सांसद इसके गुण-दोषों पर बात कर सकेंगे। इसके अलावा सबसे बड़ी आशंका यह है कि ऐसा होने के बाद रेलवे की पारदर्शिता प्रभावित होगी।
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